धन्नासेठों की सफ़ेद-काली कमाई से चुनाव लड़ती हैं पार्टियाँ, तभी आरटीआई की जद से बाहर रहने पर सारी हैं लामबंद!
निर्वाचन आयोग ने उम्मीदवारों के लिए खर्च सीमा तय कर दी है पर प्रमुख पार्टियाँ और उनके उम्मीदवार पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं. इसमें ज्यादा हिस्सेदारी काले धन की है. सत्तारूढ़ होने के नाते भाजपा सबसे रईस पार्टी है और दिल खोल कर पैसा खर्च कर रही है. राजनैतिक दलों और सरकार को छोड़ सब चुनाव में काले धन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं.इंडिया टुडे ने इस मुद्दे पर बड़ी रिपोर्ट छाप चुनाव को बेहिसाब नकदी के लेनदेन वाला त्यौहार घोषित किया है.
रिपोर्ट बताती है 2014 के लोकसभा चुनाव में पैंतीस हजार करोड़ करोड़ रुपये खर्च किए गए जबकि अधिकारिक अनुमान सात-आठ हजार करोड़ है.मतलब 27 हजार करोड़ का हिसाब ही दर्ज नहीं है.अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में खर्च 50-60 हजार करोड़ तक जा सकता है.दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा कांग्रेस और भाजपा को विदेशी चंदे का दोषी बताने के बाद सरकार ने विदेशी चंदे को हरी झंडी दिखा दी है.उसने अनाम चंदे की सीमा भले बीस से दो हजार कर दी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.होगा यह की पार्टियाँ दो हजार के चंदे को दस गुना ज्यादा दिखा दिया करेंगी.
रिपोर्ट कहती है की पिछले साल पार्टियों को बंटे 365 करोड़ के चंदे में से सत्तर फीसदी याने 251 करोड़ भाजपा को मिले.कांग्रेस के हाथ 71.15 करोड़ आए.साल 16-17 में छह राष्ट्रीय पार्टियों ने 1,559.17 करोड़ की आय घोषित की जिसमे से 46 फीसदी याने 710.80 करोड़ अज्ञात स्त्रोत से मिला चंदा था.?.उधर कार्पोरेट चंदे में कंपनी के तीन वित्त वर्षों के शुद्ध लाभ के 7.5 % की सीमा हटाने से पार्टियों के लिए बोगस कंपनियों के मार्फ़त कालाधन लेना आसान हो गया है.
आयोग द्वारा तय खर्च सीमा अवास्तविक होने से चोर दरवाजे को प्रोत्साहन मिलता है.फायदा उन्हें मिलता है जिनके पास भरपूर काला धन है.पार्टियां भी ऐसों को टिकट देती हैं जो चुनाव खर्च खुद वहन करने में सक्षम हैं.मध्यप्रदेश के एक मौजूदा विधायक कहते हैं की पांच साल पहले मैंने 90 लाख खर्च किए थे जिसमे 25 लाख पार्टी के थे.चुनाव जीतने के लिए खर्च के नए-नए तरीके आजमाए जाते हैं. मध्यप्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता ने पिछले चुनाव में हर गाँव के असरदार लोगों को एक-एक बाइक इस शर्त पर दे दी की गाड़ी का पंजीयन यह पक्का हो जाने के बाद होगा की उन्होंने दावे के मुताबिक वोट दिलाए..!
काले धन के चलते पार्टियों में सूचना अधिकार से बाहर रहने पर एकजुटता की वजह से सरकार ने सूचना आयोग का आदेश ख़ारिज कर दिया. तब भाजपा के मुख़्तार नकवी ने यह बेजान तर्क दिया था की ऐसा होने पर पार्टी को इस काम के लिए अलग पदाधिकारी रखना होता.सब जानते हैं की पार्टियों में इन दिनों थोक के भाव पदाधिकारी भरे रहते हैं. इतने कि कईयों के पास मक्खी मारने के अलावा कोई काम नहीं होता,यहाँ तक की मक्खियाँ भी कम पड़ जाती हैं..!
लेखक श्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं।