Mayank Saxena : भोपाल से पत्रकारिता विश्वविद्यालय विवाद की आवाज़ें थोड़ी बहुत सुन रहा हूं और हंस रहा हूं। आखिर ये किस तरह का आक्रोश है, जो हर बार तब ही भड़कता है और आंदोलनधर्मी हो जाता है, जब किसी एचओडी पर गाज गिरती है? क्या जब एचओडी को पद से नहीं हटाया गया था, तब हालात अच्छे थे? क्यों आखिर हर बार इस नौटंकी का इंतजार किया जाता है?
क्या आप सब को तब बुरा नहीं लगा, जब ज़्यादातर संघ या भाजपा की पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों को ही पीएचडी के लिए चयनित किया गया? क्या जब सिलेबस को संघ की शिक्षा से भर दिया गया, तब विरोध नहीं होना चाहिए था? क्या अपने मनमाने और करीबी लोगों को अहम पदों पर बिठाते जाने और पढ़ाई का स्तर गिरते जाने पर आंदोलन नहीं होना चाहिए था?
क्या आप को तब आंदोलन की राह नहीं पकड़नी थी? याद कीजिए कि पिछली बार आपने कब विरोध किया था…??? तभी न जब एचओडी महोदय…मतलब कि उसके अलावा सब ठीक है…ये सारे मुद्दे और दिक्कतें जो अब उठाई जा रही हैं, बीते पांच साल में क्यों नहीं उठाई गई…मतलब साफ है कि एचओडी की बहाली के साथ ही…आप फिर सब कुछ ऐसे ही झेलने लगेंगे… मैं Pushpendra Pal Singh जी का सम्मान करता हूं…गुरु हैं…उनसे बहुत सीखा है…लेकिन सीधी बात कहना चाहता हूं कि M.C.R.P.V. University, Bhopal (M.P.) की समस्याओं के खिलाफ आंदोलन चलाएं…एक ही आदमी की बात पर सारी बातें करेंगे तो लड़ाई हल्की होती जाएगी…शायद पी पी सर भी ऐसा नहीं चाहेंगे…
बुनियादी सुविधाओं, पढ़ाई न होने, प्लेसमेंट कम होते जाने, संघ के विरोधियों या न्यूट्रल छात्रों से भेदभाव. साम्प्रदायिकता और माहौल के खिलाफ अगर आप लड़ाई करते रहते, तो आज ये न होता…और होता भी तो आपकी लड़ाई ज़्यादा मज़बूत रहती…मेरी बात गंभीरता से समझिएगा…बाकी कुठियाला कि कुटिलता पर मैंने पांच साल पहले 2010 में ही लिखा था, उसे साझा कर रहा हूं….
कुठियाला जी, हम सब आपके इरादे जानते हैं
http://old.bhadas4media.com/article-comment/6736-2010-09-28-09-07-25.html
पत्रकार मयंक सक्सेना के फेसबुक वॉल से.