एक आईएएस को दबंग महिला सीएम के पैरों में बैठ माफी मांगते देखा तो आईएएस बनने का इरादा बदल दिया

Mayank Saxena : मेरे पिता चाहते थे कि मैं आईएएस बनूं, मैं सोचता था कि बन सकता हूं…फिर सच्चाई से साबका पड़ा…पिताजी को एक बार चुनाव की ड्यूटी पर लखनऊ के रमाबाई अम्बेडकर मैदान गया, तो एक आईएएस को सीएम रही एक दबंग महिला के पैरों में बैठ कर माफी मांगते देखा… उसके बाद पढ़ता और पता करता गया…अहसास हुआ कि आईएएस बन गया, तो या तो पैरों में पड़ा रहूंगा-व्यवस्था से मजबूरी में समझौता कर लूंगा या फिर रोज़ ट्रांसफर, सस्पेंशन, जांच होती रहेगी…और जीवन नर्क हो जाएगा…

हैरान हूं कि इस चैनल के सम्पादक सतीश के सिंह हैं!

Mayank Saxena : ग़लती से Live India चैनल लगा लिया… सोचा 2 मिनट हेडलाइन सुन ही लेता हूं… हैरान हूं कि इस चैनल के सम्पादक सतीश के सिंह हैं। मैंने सतीश जी के नीचे, ज़ी न्यूज़ में तब काम किया है, जब वह बीजेपी का मुखपत्र भी नहीं था और न ही दलाली के मामले में लिप्त था। तब ज़ी न्यूज़ वाकई एक गंभीर चैनल था। लेकिन बात ज़ी की नहीं, लाइव इंडिया की…

ये कैसा आक्रोश है जो माखनलाल के एक एचओडी पर गाज गिरने के बाद ही भड़कता है!

Mayank Saxena : भोपाल से पत्रकारिता विश्वविद्यालय विवाद की आवाज़ें थोड़ी बहुत सुन रहा हूं और हंस रहा हूं। आखिर ये किस तरह का आक्रोश है, जो हर बार तब ही भड़कता है और आंदोलनधर्मी हो जाता है, जब किसी एचओडी पर गाज गिरती है? क्या जब एचओडी को पद से नहीं हटाया गया था, तब हालात अच्छे थे? क्यों आखिर हर बार इस नौटंकी का इंतजार किया जाता है?

प्रबंधन के साथ मिलकर बुढ़ापा काटने की तैयारी में हैं स्वघोषित ईमानदार सम्पादक!

Mayank Saxena : साल 2008 की बात है, मीडिया में काम करने वालों और नए आने वालों के बीच एक नाम की बहुत चर्चा थी…नाम था Voice of India…यह एक नया आने वाला चैनल था, जो एक साथ कई सारे चैनल और एक मीडिया इंस्टीट्यूट ले कर आ रहा था। भोकाल ऐसा था कि बड़े-बड़े अखबारों में इश्तिहार छप रहे थे और कोई मित्तल बंधु थे, जो इसके कर्ता धर्ता थे। मीडिया पढ़ा कर इंस्टेंट पत्रकार बनाने वाले संस्थान के साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल लांच होने थे और लोगो में शेर बना था। संस्थान के साथ मीडिया के तमाम नए पुराने बड़े चेहरे पहले ही जुड़ चुके थे, जिनमें आज तक के पूर्व कर्ता-धर्ताओं में से एक राम कृपाल सिंह (नवभारत टाइम्स वाले) के अलावा मुकेश कुमार, किशोर मालवीय, सुमैरा, अतुल अग्रवाल जैसे तमाम नाम शामिल थे। ज़ाहिर है कि इस चैनल से न केवल बड़े-बड़े संस्थान भी संशय में आ गए थे बल्कि मीडिया समुदाय के लिए ये एक अनोखी सी चीज़ थी।

चम्पादक कथा : विकास की सेल्फी : डांडिया टीवी के चम्पादक हनुमानी मुद्रा में उनके चरणों में बैठे थे….

Mayank Saxena : माननीय ने तय किया था कि जिस चौथे खम्भे की रंगाई पुताई कर के उसका हुलिया ही बदल देने में उन्होंने (उनके प्रायोजकों ने) करोड़ों खर्च किए थे, उनसे भी मिल लेंगे। माननीय को देश का सबसे बड़ा वक्ता (भाषणबाज़) बनना था और वो चाहते थे कि वो हर कहीं से भाषण देते हुए, हर कहीं दिखाई दे। वो बचपन से ही वक्ता बनना चाहते थे, बनिए के यहां तेल भी लेने जाते थे तो भाषण कर के मुफ्त में ले आते थे, मतलब वो मुफ्त दे कर हाथ जोड़ लेता था कि भाई और ग्राहक भी हैं, तुम दो घेटे से बिज़नेस मॉडल पर बोल रहे हो, यहां बिज़नेस ठप हुआ जा रहा है। तो सबसे बड़ा वक्ता बनने का सपना इसी चौथे खम्भे ने पूरा किया था, क्योंकि खम्भे पर सैकड़ों टीवी लगे थे और वो हर वक्त माननीय को ही प्रसारित करते थे।