मोदी सरकार को इसलिए भी याद रखा जाएगा कि बिना इमरजेंसी लगाए मीडिया संस्थानों को घुटनों के बल बिठा दिया. आजतक जैसे मीडिया संस्थान जो पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को लेकर तमाम तरह की बातें करता रहता है, इस सरकारी दबाव को झेल न पा रहा है और बिना तर्क-वितर्क किए, चुपचाप सरेंडर कर दे रहा है. समर्पण की ताजी घटना है इस संस्थान से तेवरदार पत्रकार नवीन कुमार का जाना.
छत्तीसगढ़ की बारह साल की आदिवासी लड़की जमालो बडकम की मौत की खबर को नवीन कुमार ने दस बजे वाले आजतक के शो दस्तक पर दिखाया था. इस खबर के बाद सरकार के लोग बेचैन हो गए. अदृश्य आदेश आने जाने लगे. प्रबंधन के कान खड़े हो गए. आनन-फानन में नवीन कुमार से उनका दस्तक शो छीन लिया गया. याद करिए, दस्तक शो कभी पुण्य प्रसून बाजपेयी भी करते थे और इसी शो में उनकी जनपक्षधर स्टोरीज के चलते वे सरकार की आंखों के किरकिरी बन गए थे. नतीजन, उन्हें भी जाना पड़ा था.
नवीन कुमार और आजतक प्रबंधन के बीच क्या कुछ हुआ, इसकी कहानी अधिकृत से रूप से बाहर नहीं आ पाई है लेकिन सूत्रों का कहना है कि नवीन कुमार के आजतक लौटने की संभावना शून्य है. इस्तीफे की चर्चाओं के बाद नवीन फेसबुक व ट्वीटर एकाउंट डिएक्टीवेट कर गए थे. हाल में वे फिर से ट्विटर पर सक्रिय हो गए हैं और सबसे खास बात ये कि वे न्यूज चैनलों की बौड़म-जनविरोधी-तेलू पत्रकारिता पर सवाल उठाने लगे हैं. इससे एक संदेश तो साफ है कि नवीन अब किसी बड़े चैनल में वापसी करने को इच्छुक नहीं हैं.
ट्वीटर पर नवीन कुमार को फालो करने के लिए @navinjournalist सर्च करें.
तब सवाल है कि वे क्या करने वाले हैं? नवीन के कुछ करीबियों का कहना है कि नवीन कुमार जिस तेवर के पत्रकार हैं, जिस रीढ़ के साथ वो जीते हैं, ऐसे लोग आज कल के दौर में कम होते हैं. पापी पेट के नाम पर मीडिया में कुछ भी कुबूल करने वालों की भीड़ और लाखों की सेलरी के पैकेज तले सरोकार-आत्मसम्मान बेचने वालों की फौज पर नजर मारेंगे तो पाएंगे कि नवीन कुमार का होना क्यों सबसे अलग है. संभव है नवीन कुमार डिजिटल जर्नलिज्म के क्षेत्र में कुछ नया प्रयोग करें. पर ये भी तय है कि वो जो प्रयोग करेंगे, वह धमाकेदार होगा और उनके लाखों चाहने वाले उनसे कनेक्ट होंगे.
फिलहाल वो खबर देखिए जिसके प्रसारण के बाद नवीन कुमार के लिए आजतक में काम करने की स्थितियां दुरुह कर दी गईं जिसके चलते उन्होंने इस्तीफा प्रबंधन के मुंह पर मार दिया…
नीचे दिए गए दस्तक शो के पुराने एपिसोड को दस मिनट पचास सेकेंड से देखना शुरू करें और सोलह मिनट पंद्रह सेकेंड तक देखें. एक गरीब आदिवासी लड़की की मौत की खबर के बहाने सिस्टम पर सवाल उठाना भी सिस्टम को पसंद नहीं. इससे आप समझ सकते हैं कि मुख्यधारा का मीडिया किस कदर रीढ़विहीन और जनविरोधी हो चुका है. इन्हें यूं ही गोदी मीडिया नहीं कहा जाता है. आजकल तो वैसे भी आजतक के एंकर-एंकराइन मोदी सरकार की रक्षा में तर्क-कुतर्क बुनते हुए पूरा दिन निकाल देते हैं…
देखें नवीन कुमार की आजतक में प्रसारित आखिरी स्टोरी…
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