Krishna Kant-
हिंदू वाकई खतरे में हैं. मनीष गुप्ता हिंदू थे. पुलिसिया अत्याचार का शिकार हुए. हाथरस की बेटी हिंदू थी. अत्याचार हुआ, मारी गई और पुलिस ने आधी रात को पेट्रोल डालकर फूंक दिया. लखनऊ के विवेक तिवारी हिंदू थे. पुलिस की गोली से मारे गए. इंस्पेक्टर सुबोध कुमार हिंदू थे. लेकिन भीड़ ने उनकी हत्या की. उस भीड़ को संरक्षण दिया गया. विकास दुबे हिंदू था. राजनैतिक प्रशासनिक संरक्षण में गुंडा बना और गैरन्यायिक हत्या का शिकार हुआ.
अंतर देखिए. एक अधिकारी, एक कारोबारी, एक मैनेजर, एक आम लड़की, एक गैंगस्टर. सब अन्याय के एक ही तराजू में तौले गए. जिसे सुरक्षा मिलनी थी, जिसे सुरक्षा देनी थी, जिससे सुरक्षा की जानी थी और जिसे कानून को सजा देनी थी, सब के सब गैरन्यायिक और आपराधिक ढंग से मारे गए.
ऐसे तमाम हिंदुओं के अलावा इस फेहरिस्त में उन मुसलमानों को जोड़ लीजिए, जिन्हें सिर्फ मजहबी आधार पर सताया जाता है. पूरे उत्तर भारत में कौन सा प्रदेश है जहां लिंचिंग नहीं हुई हो.
गोरखपुर हत्याकांड की कहानी लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड से काफी मिलती जुलती है. यूपी पुलिस का कहना है कि वह हनुमान जी हो गई है. वह जिसकी तरफ ताक दे, वह मर ही जाता है. कोई रास्ते में चेकिंग करते हुए मर जाता है, कोई तलाशी लेते हुए मर जाता है. कोई इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि प्रदेश का मुखिया कहता है ठोंक दो.
पूरा प्रशासन मिलकर कानून, संविधान और अदालती व्यवस्था को ठोंक रहा है. जब कानून का शासन नहीं होता, तब यही होता है. इसे ही असली जंगलराज कहते हैं.
अत्याचारी प्रशासन किसी का नहीं होता. न हिंदू का, न मुसलमान का. न सवर्ण का, न दलित का. न स्त्री का, न पुरुष का. धर्म और जाति के आधार पर विभाजन सिर्फ और सिर्फ पार्टियों को सत्ता दिलाते हैं और अन्याय के पोषक होते हैं. जिन लोगों ने लोकतंत्र का निर्माण किया है, वे जानते थे कि धर्म, जाति, समुदाय से जुड़ी कुंठाएं प्रशासन का आधार नहीं हो सकतीं. एक निष्पक्ष और निरपेक्ष व्यवस्था ही न्यायपूर्ण हो सकती है.
लेकिन धर्म और जाति की राजनीति करने वाले इस व्यवस्था को ठोंक रहे हैं. जो बताते हैं कि हिंदू खतरे में है, अगर उन्हीं के राज में निर्दोष हिंदुओं को ठोंका जा रहा है तो हिंदुओं को खतरा किससे है?
यूपी चुनाव के दौरान रैलियों में कहानियां सुनाई जा रही थीं कि बिहार का लाल सूरत नौकरी करने जाता है तो उसकी मां बहुत डरती है क्योंकि रास्ते में यूपी पड़ता है. अब वे दिन आ गए हैं यूपी की माएं हाथ जोड़कर जिंदगी और न्याय के लिए गिड़गिड़ा रही हैं.
दोस्तो! हिंदू वाकई खतरे में हैं. खतरा चोरों और ठकैतों से नहीं, अबकी बार खतरा उन चौकीदारों से है जिनसे आपने सुरक्षा की उम्मीद लगाई है.
Ravish Kumar –
आज का प्राइम टाइम लिखते हुए और पढ़ते हुए उजड़ गया। लिखते हुए सांसे तेज़ चल रही थीं और बोलते हुए सासें उखड़ रही थीं। इतने साल से शो कर रहा हूं।हर दिन एक नया विषय ज़हन पर नए सिर से सवार हो जाता है। भीतर भीतर झकझोरने लगता है। धीरे धीरे सामान्य होने लगता हूँ लेकिन आज रिकार्डिंग के बाद कई घंटे तक दिमाग़ सुन्न जैसा रहा। उदासी से घिरा रहा।
अब उम्र नहीं रही कि दूसरे के दुख को लिखते हुए और बोलते हुए जीने लग जाएं। उसमें मरने लग जाएँ। इतना कठोर हो नहीं सका। हम एक ऐसे समाज में चीख रहे हैं जिसे अब सुनाई नहीं देता। कानपुर की मीनाक्षी गुप्ता की आवाज़ भीतर तक गूंजने लगी तो तो असम के मोइनुल हक़ की बेआवाज़ लाश बाहर शोर करने लगी। हमने पुलिस को आततायी बनने दिया है। पुलिस यातना की मशीन बन चुकी है। उसके हाथों बारी-बारी सब मारे जा रहे हैं। क्या हिन्दू क्या मुसलमान। ऐसा लगता है हत्यारों ने वर्दी पहन ली हो। इंसाफ़ चाहिए, यह एक शोर से ज़्यादा कुछ नहीं है।
इंसाफ़ मिलता नहीं और मिल भी जाता है तो नाइंसाफी कहीं और होने लगती है। मनीष गुप्ता और मोइनुल हक़ की लाश पड़ी है। एक की छाती पर कोई कूद रहा है और एक का छाती पीट पीट कर बुरा हाल है। अभी तक सामान्य नहीं हो सका हूं। दिमाग़ में झनझनाहट मची है। अब तब रो देने जैसा लग रहा है। हर दिन प्राइम टाइम के बाद अकेला हो जाता हूँ।लगता है आस-पास बाढ़ से घिर गया हूं। कुछ डूबने जैसा लगने लगता है। उजड़ा उजड़ा सा लग रहा है। पर इससे आपको क्या।
Sheetal P Singh-
मीनाक्षी गोरखपुर के उसी होटल में पुलिस के हाईहैंडेडनेस से क़त्ल हुए अपने पति मनीष गुप्ता के लिए न्याय मांग रही हैं।
उत्तर भारत का मध्य वर्ग जो सवर्ण जातियों की बहुलता से बुना हुआ है योगीराज की ठोको नीति का सबसे बड़ा पैरोकार रहा है। पुलिस को निरंकुश बनाने वाली नीतियों ने हमेशा हर जगह ऐसे ही दुष्परिणाम दिए हैं।
जो कानून के राज की बात करते रहे हैं वे कोसे गये धिक्कारे गए । नतीजे सामने हैं । उत्तर प्रदेश में पुलिसिया वसूली ने सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं और वे निरंकुश हो चुके हैं।
इस स्त्री को जवाब दीजिए योगीराज! देखें Video Miankshi justice for manish gupta
Atul Tiwari Aakrosh-
लखनऊ में विवेक तिवारी हों या गोरखपुर में मनीष गुप्ता..या कल हो सकता है आप, मैं या अपना कोई भाई बन्धु.. पुलिस के लिए आप सिर्फ ‘चारा’ हो..
ये जैसे कल थे, वैसे ही आज भी हैं..हां बस समय के साथ मैनेज करने को दो चार छ पुलिसया पेज पर चुनिंदा अच्छे पुलिसकर्मियों के अच्छे कामों का महिमामंडन कर, महीने दो महीने में दो चार सामाजिक कामों में भागीदारी कर छवि चमका ली जाती है और उन्हीं कामों को दिखा दिखा कर असलियत छुपा ली जाती है..असलियत की बात कर दो तो भड़क ऐसे जाएंगे जैसे जनता के पैसे से सैलरी लेकर जनता पर ही अहसान कर रहे हैं..इतना कुछ गिना देंगे की जैसे सारा सामजिक काम यही करते हैं औऱ सारे मानसिक तनाव इन्हीं के पास हैं..
जिन्हें इतना तनाव समझ आता है नौकरी में, तो वो त्यागपत्र देकर सामान्य जीवन क्यों नहीं जीते..?
किसने हाथ पकड़ रखा है कि मानसिक तनाव लेकर नौकरी करें..और दूसरे के बच्चों को अनाथ करें..?
बहुतों ने छोड़ दी, आप भी छोड़ दीजिए..
पर नहीं..इतना रुतबा, रंगबाजी किसी दूसरी नौकरी में कहां..?
कोई सवाल पूछ ले या गलत काम का विरोध कर दे तो गोली मार दो या फर्जी केस में अन्दर कर उसकी जिंदगी बर्बाद कर दो..क्या फर्क पड़ेगा..?
ज्यादा से ज्यादा जांच होगी, सस्पेंशन होगा या तबादला ही तो होगा..नौकरी थोड़े न खा जाएगा कोई..
Sonia Satyaneeta-
अमेरिका में पुलिसकर्मी ने बेरहमी से एक व्यक्ति जॉर्ज फ्लायड को मार दिया था.अमेरिका में विरोध प्रदर्शन हुए.विरोध प्रदर्शन से व्हाइट हाउस के बाहर हालात ऐसे हो गए थे कि ट्रंप को बंकर में जाना पड़ा था.प्रदर्शन करते लोगों के सामने पुलिस फोर्स ने घुटने टेक कर माफी मांगी थी और त्वरित कार्रवाई करते हुए हत्या करने वाले पुलिसकर्मी को 22 साल की सजा सुनाई थी.जॉर्ज के परिवार को अमेरिकी सरकार ने 20 करोड़ की राशि दी थी.यहां सालों-साल तक सरकार को वायदे याद कराते रहते हैं.
पुलिसकर्मियों की क्रूरता के मामलों में अकेले मनीष गुप्ता मामले की बात कैसे करें?पुलिस की लापरवाही,लाठी और गोली से कितने बेकसूरों की मौत हुई है यह गिनती न यहां के पुलिस महकमों के पास है और न ही गिनती की जाएगी.अपराधियों को शूट करने पर या गाड़ी पलटने पर ताली पीट देंगे,हो-हल्ला कर देंगे लेकिन न्याय के थकाने वाले लंबे प्रोसेस पर बात नहीं करेंगे.दंगों की फर्जी स्क्रिप्ट,किसी पत्रकार को बेबात जेल में ठूंस देना,सत्ता के इशारे पर यहां-वहां की कहानियां गढ़ना इतने में है सब-कुछ.
यहां की पुलिस नेताओं-धनाढ्यों की है ना कि आम लोगों की.बेकसूर आम लोगों को जब पुलिस मारती है तो पीड़ितों के खिलाफ ही धर्म-जात देखकर एक तबका खड़ा दिखता है.असम की घटना में भी किन्तु-परन्तु खोजा व उससे पहले वाली घटनाओं में भी.कमी हममें ही है की हम संवैधानिक अधिकारों के हनन पर जब बोलते हैं जब खुद के साथ कुछ होता है या इस दल,उस दल,ये पार्टी,वो पार्टी और मीडिया को उसमें एजेंडा चलाना होता है.
Kranti Kumar-
मृतक मनीष गुप्ता की पत्नी सभी से हाथ जोड़ रही है. समाज, प्रशासन, न्यायपालिका और मीडिया सभी से मदद की बिनती कर रही है. यह तस्वीर बयां कर रही है भारत में न्याय पाना कितना मुश्किल है और सभी को इसका एहसास भी है की न्याय मिलता नही न्याय लड़ झगड़कर छिनकर लेना पड़ता.
RSS कोई रजिस्टर्ड संगठन नही है, कोई बैंक खाता नही. यह संगठन अपना पूरा धन बनिया समुदाय के पास रखता है. मनीष गुप्ता भी बनिया है. उनकी पिटाई करने वाले इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह और अक्षय मिश्र समेत छह पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया है.
मनीष गुप्ता कोई अपराधी नही थे. पुलिस उनकी तलाशी लेने गयी क्यों. तलाशी लेने का कारण पूछने पर दोनों सवर्ण पुलिस अधिकारी को गुस्सा क्यों आया. क्या इन दोनों को पुलिस ट्रेनिंग में ये ही सिखाया गया है कोई आपसे अगर सवाल करे तो उसे इतना बेहरहमी से मारना पीटना की वो मर जाए.
गोरखपुर के SSP ने झूठ भी बोला मनीष गुप्ता की मौत बिस्तर पर से गिरने के लगी चोटें के कारण हुई. आज पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की पूरी पोल खोल दी, सिर चेहरे और शरीर पर गंभीर चोटें के कारण मनीष गुप्ता की मौत हुई.
क्या भारत में जाति वर्ण देखकर तय होता है कौन सा मामला बड़ा है या छोटा है. 2018 में लखनऊ में विवेक तिवारी का गलती से एनकाउंटर कर दिया गया. योगी आदित्यनाथ सरकार ने तिवारी की विधवा को ए-क्लास नौकरी और एक करोड़ रुपए सहायता राशि दी.
मनीष गुप्ता की पत्नी को केवल 10 लाख रुपए सहायता का एलान किया गया है. यह भेदभाव क्यों ? क्या दोषी पुलिस अधिकारियों को मौत की सज़ा मिलेगी ?
SC ST अत्याचार पर ब्राह्मण ठाकुर बनिया सब खामोश रहते हैं. लेकिन हम भेदभाव की नीति पर नही चलते. गुप्ता परिवार को न्याय मिलना चाहिए.