अपूर्व भारद्वाज-
अपने आप को निष्पक्ष पत्रकारिता का सबसे बड़ा ब्रान्ड बताकर टीआरपी के रेस में “सबसे तेज” चल रहे एक चैनल ने आज नैतिकता और नीचता की सारी हदे तोड़ दी है.अपने आप को जी न्यूज की राजनीति का शिकार बता रहे सुधीर तिहाडी से तो एक प्रतिशत भी सहानुभूति नही है. मीडिया की आजादी की बहसबाज़ी से दूर सच सिर्फ इतना है कि इस सबसे तेज चैनल को मैं सुदर्शन जैसे घटिया चैनल से भी गिरा हुआ मानता हूँ. इसे भी सत्ता के सौदागर ही चला रहे हैं. यह तेज चैनल कोई स्वतंत्र पत्रकारिता नहीं कर रहा है. जिस किसी को भी मुगालता हो वो दूर कर ले.
थोड़ा मेमोरी रिफ़्रेश कीजिए…2007 में इसी “तिहाडी” के कारण एक सभ्य महिला मान मर्दन हुआ था और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इतिहास में पहली बार एक चैनल पर बैन लगा था. नोटबंदी के समय नैनो चिप का ज्ञान देकर काले धन को लाने का दावा करने वाले तिहाडी “जी” खुद काले को सफेद करने का खेल रच रहे थे. आज भी “जी” उस खबर का खंडन नहीं करता है. साहब ने खबरों का एजेंडा और हेडलाइन मैनेजमेंट करने की शुरुआत ऐसे ही “राज-पुत्र ” पत्रकारों को हायर करके की थी और “तिहाडी” उस समय उनका सबसे बड़ा ब्रांड एम्बेसडर था.
बिल्कुल व्हाइट और ब्लैक जैसा फ़ैक्ट है इस सबसे तेज चैनल के मीडिया के जितने भी प्लेटफार्म है वो आज किस किस्म की सरकारी पत्रकारिता कर रहे है वो किसी से छुपा है क्या?? मामूली पत्रिका से शुरू हुआ कारोबार अरबो के व्यापार तक पहुँच गया है और बड़े बड़े लोग इन्हें स्वतंत्र पत्रकारिता का हस्ताक्षर कहते हैं तो मुझे क्या किसी को भी उनकी बुद्धि पर तरस आएगा.
जब सुधीर “तिहाडी” जेल गए थे तो तेज चेनल वाले बड़ा भोकाल मचा रहे थे मुझे पता था कि यह सब जगह से निकल जायँगे और यही आजतक वाले नौकरी पर रख लेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि देश और नेता कैसे चलते हैं. इनके मुँह से मीडिया की आज़ादी बात तब बकवास लगती है जब यह सारे मीडिया हाउस सरकार की गोद मे बैठकर सब्सिडी पर जमीन ले लेते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक को पत्रकारिता के नाम पर मात्र एक रूपए में जगह दी गई है जिस पर करोडों का किराया वसूल रहे हैं तो यह नैतिकता की बातें न करें तो बेहतर है.
मीडिया आज राजनीतिक दलाली और सरकारी ठेकों की लाइजनिंग की उपजाऊ जमीन है मालिकों को राज्यसभा जाना है या अपने वाले नेताओं को मन माफिक मंत्रालय देना है सबके पास सरकार के राज है जिसका इस्तेमाल सच्चाई को दबाने के लिए किया जाता है.
सरकार के डर से आप अपने पुण्य प्रसून जैसे पत्रकार को निकाल देते हैं…खुद करोड़ो कमा रहे हैं फिर भी छोटे रिपोर्टर की तनख्वाह नहीं बढ़ा रहे हैं, महामारी के काल मे भी लोगों की नौकरी खा रहे थे. पुरी जी आप अपने पत्रकारो के नहीं हो सकते तो ….फिर आप पत्रकारिता के क्या होंगे.
केवल नाम में ‘सबसे तेज’ लिखने से कोई सच्चा और तेज नहीं हो जाता, सच्चाई नैतिकता से आती है और आज की मीडिया में नैतिकता नाम की कोई चीज नही है. पूरे कुँए में भांग घुली हुई है और यही अंतिम सत्य है.