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मध्य प्रदेश

‘आप’ बन सकती है मप्र में नकारा कांग्रेस का विकल्प!

लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना अत्यंत जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष की भूमिका दमदार तरीके से निभाई। इसी कारण सत्ता में आने के बाद भी वह कई मर्तबा विपक्ष की भूमिका अदा करती नजर आती है। एक लम्बे समय तक यह धारणा भी रही कि कांग्रेस सरकार चलाने वाली पार्टी और भाजपा विपक्ष की पार्टी है। यही कारण है कि भाजपा का अदना-सा नेता और कार्यकर्ता भी भाषणवीर होता है और कांग्रेस कभी भी दमदारी से विपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर सकी। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी दुर्गति हुई और उसके बाद अधिकांश राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।

<p>लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना अत्यंत जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष की भूमिका दमदार तरीके से निभाई। इसी कारण सत्ता में आने के बाद भी वह कई मर्तबा विपक्ष की भूमिका अदा करती नजर आती है। एक लम्बे समय तक यह धारणा भी रही कि कांग्रेस सरकार चलाने वाली पार्टी और भाजपा विपक्ष की पार्टी है। यही कारण है कि भाजपा का अदना-सा नेता और कार्यकर्ता भी भाषणवीर होता है और कांग्रेस कभी भी दमदारी से विपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर सकी। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी दुर्गति हुई और उसके बाद अधिकांश राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। </p>

लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना अत्यंत जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष की भूमिका दमदार तरीके से निभाई। इसी कारण सत्ता में आने के बाद भी वह कई मर्तबा विपक्ष की भूमिका अदा करती नजर आती है। एक लम्बे समय तक यह धारणा भी रही कि कांग्रेस सरकार चलाने वाली पार्टी और भाजपा विपक्ष की पार्टी है। यही कारण है कि भाजपा का अदना-सा नेता और कार्यकर्ता भी भाषणवीर होता है और कांग्रेस कभी भी दमदारी से विपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर सकी। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी दुर्गति हुई और उसके बाद अधिकांश राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।

दरअसल कांग्रेस को अपने महाभ्रष्टाचार और पापों की सजा ही जनता ने दी और मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ने इसे जबरदस्त तरीके से भुनाया भी। अभी भी केन्द्र में विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका अत्यंत ही दयनीय और लचर नजर आती है। एक तरफ मोदी जी खम ठोंककर और चिल्ला-चिल्लाकर अपनी बात आम जनता के गले उतारने में सफल रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ इसमें तमाम लोचे होने के बावजूद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उतने प्रभावी तरीके से अपनी बात नहीं कह पाते, जिसके कारण जनता के साथ उनका सम्प्रेषण भी स्थापित नहीं हो पाता है, जो मोदी जी बड़ी आसानी से कर लेते हैं। राहुल की तुलना में अरविन्द केजरीवाल अवश्य मुद्दों को सही तरीके से उठाते हैं और तथ्यात्मक बात भी करते हैं।

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अब यह बात अलग है कि मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर और भाजपा सहित उनसे जुड़े संगठनों ने केजरीवाल की छवि विदूषक की बना दी, जबकि ये केजरीवाल की ही ताकत रही कि जब मोदी जी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस वक्त उन्होंने नई दिल्ली के चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त दी, क्योंकि उन्होंने आम जनता से जुड़े मुद्दों को जोरदार तरीकों से उठाया, जिनमें सड़क, बिजली, पानी से लेकर भ्रष्टाचार प्रमुख रहा। गुजरात, गोवा से लेकर पंजाब तक केजरीवाल ने कांग्रेस या अन्य पुरानी पार्टियों की तुलना में विपक्ष के रूप में अपनी उपस्थिति अधिक दमदारी से दर्ज करवाई है। क्या मध्यप्रदेश में भी आप पार्टी का कोई भविष्य हो सकता है?

यह सवाल दरअसल इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि विगत 13 सालों में मध्यप्रदेश की राजनीति में विपक्ष अत्यंत ही नकारा और निकम्मा साबित हुआ है। इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज सरकार ने विकास कार्यों के अलावा समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों के लिए कई अच्छी योजनाएं लागू की है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की विश्वसनीयता जनता के बीच इसीलिए आज भी कायम है और लोग उन्हें भला मानुष समझते हुए काफी हद तक ईमानदार भी मानते हैं। बावजूद इसके शासन-प्रशासन में कई तरह की गड़बडिय़ां हैं और व्यापमं जैसे महाघोटाले भी सामने आते रहे हैं।

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मध्यप्रदेश की कांग्रेस आपसी सिरफुटव्वल और टांग खिंचाई से ही नहीं ऊभर पाई है, जिसके परिणाम स्वरूप हर चुनाव में भाजपा को शानदार सफलता मिलती रही है। मगर देश की तरह मध्यप्रदेश को भी एक सशक्त विपक्ष की निहायत जरूरत है। भोपाल में अरविन्द केजरीवाल की रैली और उसमें उमड़ी भीड़ से क्या यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आप पार्टी के लिए मध्यप्रदेश भी एक बेहतर मैदान हो सकता है, क्योंकि विपक्ष यानि कांग्रेस ने एक तरह से मैदान ही छोड़ रखा है। भाजपा के लिए तो फिलहाल मध्यप्रदेश में आप पार्टी बड़ी चुनौती तो नहीं साबित होगी, मगर नकारा कांग्रेस की जगह प्रमुख विपक्षी पार्टी का रोल जरूर बेहतर तरीके से अदा कर सकती है।

लेखक राजेश ज्वेल इंदौर के सांध्य दैनिक अग्निबाण में विशेष संवाददाता के रूप में कार्यरत् हैं और 30 साल से हिन्दी पत्रकारिता में संलग्न हैं. वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ सोशल मीडिया पर भी लगातार सक्रिय हैं. उनसे संपर्क 9827020830 के जरिए किया जा सकता है.

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