Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

आज के अखबार : आप के एक मंत्री का इस्तीफा बनाम सात सदस्यों वाली एनपीपी का भाजपा से अलग होना!

संजय कुमार सिंह

आज एक जैसी दो खबरें हैं। इनमें एक दिल्ली की सरकार और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के एक मंत्री के पार्टी छोड़ने की है और दूसरी मणिपुर में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी और सात सदस्यों वाले एनपीपी के भाजपा से अलग होने की खबर है। आम स्थितियों में दिल्ली के अखबार के लिए दिल्ली की खबर महत्वपूर्ण और बड़ी होगी लेकिन दिल्ली के अखबारों का जो संस्करण एनसीआर में बंटता वह राष्ट्रीय अखबार होता है वैसे ही जैसे कोलकाता या मुंबई शहर में बंटने वाला स्थानीय अखबार होते हुए भी राष्ट्रीय होता है। इस लिहाज से इन दिनों मणिपुर की राजनीतिक खबरें दिल्ली में किसी भी तरह कम महत्व की नहीं हो सकती हैं। वह भी तब जब मणिपुर में भाजपा की डबल इंजन की सरकार डेढ़ साल से वहां चल रही हिंसा को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। अब जब दोबारा हिंसा भड़की है तथा कल महाराष्ट्र में अपने चुनाव प्रचार के काम छोड़कर केंद्रीय गृहमंत्री को दिल्ली लौटना पड़ा हो, प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हैं। यही नहीं, हमेशा की तरह आम आदमी पार्टी ने कहा है कि मंत्री पद छोड़ने वाले कैलाश गहलोत ने भाजपा के दबाव में पार्टी छोड़ी है जबकि भाजपा छोड़ने वालों के साथ ऐसी बात नहीं हो सकती है। इतना ही नहीं, एक इस्तीफे से अगर दिल्ली की सरकार नहीं गिरेगी तो एनपीपी के सरकार से अलग होने पर मणिपुर की सरकार भी नहीं गिरेगी। इस संबंध में तथ्य यह है कि दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 62 सदस्य हैं और भाजपा के सिर्फ आठ। इसलिए इस आरोप में दम लगता है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने यह खेल किया होगा। हालांकि, अभी यह मुद्दा नहीं है।  

जहां तक मणिपुर की बात है,  60 सदस्यों वाली विधान सभा में एनपीपी के सात सदस्य हैं और यह पूरी पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा से अलग हो गई है। यहां जनता दल यू से भाजपा में शामिल हुए विधायकों समेत भाजपा के सदस्यों की कुल संख्या 36 है। इसके अलावा जनता दल यू के एक विधायक मुहम्मद अब्दुल नासिर का समर्थन भी है। ऐसे में सात सदस्यों वाले एनपीपी के अलग होने से अभी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन सरकार पहले की तरह मजबूत भी नहीं रही जबकि दिल्ली के मामले में ऐसा नहीं है। ऐसे में पाठकों को तय करना है कि कौन सी खबर ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज मैं बताता हूं कि मणिपुर और दिल्ली की इन दो खबरों को दिल्ली के अखबारों ने कैसे छापा है। अखबारों की निष्पक्षता पर फैसला आप कीजिये। सबसे पहले हिन्दी के दोनों अखबार। नवोदय टाइम्स में आज चार-चार कॉलम की दो खबरें बराबर में छपी हैं। गहलोत ने मंत्री पद छोड़ा, पार्टी भी शीर्षक से यह खबर बाईं तरफ लीड जैसी ही है। दूसरी खबर का शीर्षक है, मणिपुर : चार और विधायकों के घर जलाये, सीएम के घर पर दावा। यह दो लाइन का शीर्षक है इसलिए लीड इसी को मानना चाहिये। वैसे भी विधायक का घर जलाया जाना और मुख्यमंत्री के घर पर धावा बड़ी खबर है। इसके मुकाबले दिल्ली के एक मंत्री का इस्तीफा  बराबर की खबर तो नहीं ही है पर दिल्ली की है इसलिए अखबार ने इसे बराबर महत्व दिया है। दूसरे अखबार मणिपुर की खबर की खास बात गोल कर गये हैं और संभव है, जानबूझकर दिल्ली की खबर को ज्यादा महत्व देने लायक बनाया गया हो।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

जहां तक (इस मौके पर) सात विधायकों वाले एनपीपी के मणिपुर सरकार या सत्तारूढ़ भाजपा से अलग होने की खबर है, यह एक मंत्री या विधायक के किसी राजनीतिक पार्टी से होने के बराबर की खबर है। इसलिए यह दिल्ली के एक विधायक या मंत्री के मुकाबले मणिपुर के सात विधायकों वाली पार्टी के मुकाबले की खबर है और निश्चित रूप से एक के मुकाबले सात का मामला है। फिर भी दिल्ली के एक मंत्री की खबर चार कॉलम में है और एनपीपी के मणिपुर सरकार से समर्थन वापस लेने की खबर मणिपुर में हिंसा की खबर के साथ सिंगल कॉलम में है। अखबार ने महाराष्ट्र में रैलियां रद्द कर दिल्ली लौटे गृहमंत्री (शाह), की स्थिति की समीक्षा के बराबर में रखा है। अमर उजाला ने मणिपुर में हिंसा की खबर की पांच कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ लीड बनाया है और इसके साथ की खबरों में एनपीपी के अलग होने, गृहमंत्री के दिल्ली लौटने और मुख्यमंत्री के पुश्तैनी घर पर हमले की कोशिशों को तीन अलग-अलग खबर और उपशीर्षक बनाया है। अमर उजाला में आम आदमी पार्टी के मंत्री के इस्तीफे की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इसलिए तुलना का कोई मामला नहीं है। स्पष्ट रूप से अखबार ने मणिपुर के मामले को ज्यादा महत्व दिया है और इसमें एनपीपी का अलग होना शामिल है।

अंग्रेजी अखबारों में इंडियन एक्सप्रेस ने एनपीपी के एनडीए से अलग होने की खबर को टॉप पर छह कॉलम में छापा है और दिल्ली के एक मंत्री के इस्तीफे की खबर को लीड बनाया है। पहले मणिपुर की खबर और उसकी प्रस्तुति की खास बातों की चर्चा कर लूं। इससे यह भी पता चलेगा कि इंडियन एक्सप्रेस ने इसे पांच कॉलम में क्यों छापा है और सिंगल कॉलम में छापने वाले चूक गये या सही किया। हालांकि, खबर को जिन बातों से प्रमुखता मिलती है उनकी चर्चा करके ही खबर को महत्व दिया जा सकता है वरना, “आतंकी अपने घरों में डरने लगे : मोदी” जैसा हिन्दुस्तान का शीर्षक किसी भी अन्य शीर्षक के मुकाबले हास्यास्पद या हल्का लगेगा। कोई नया बना प्रधानमंत्री भी ऐसी बात करता और कोई अखबार उसे लीड बना देता तो मामला हल्का ही लगता। यह दस साल प्रधानमंत्री रहे व्यक्ति के बताने की चीज नहीं है। अगर वाकई ऐसा होगा तो लोग महसूस करेंगे इसलिए यह खबर नहीं है। भले अखबार ने कल फ्लैग शीर्षक से बताया था कि प्रधानमंत्री ने यह बात एचटी लीडरशिप समिट के उद्घाटन सत्र में कही थी। और दावा किया था कि इस सरकार ने लोगों में भरोसा बहाल किया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर का फ्लैग शीर्षक है, अशांत भाजपा में प्रमुख सहयोगी ने कदम उठाया। मुख्य शीर्षक है, “मणिपुर में संगमा की एनपीपी ने एनडीए सरकार से समर्थन वापस लिया : ‘संकट निपटाने में नाकाम रही, निर्दोष जानें गईं’। इस मुख्य शीर्षक के तहत दो उपशीर्षक और दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक है, शाह ने महाराष्ट्र दौरा छोड़ा; ‘अगर लोग नया जनादेश चाहते हैं’ तो कांग्रेस विधायक इस्तीफा देंगे। बढ़ती हिन्सा के केंद्र में जिरीबाम परिवार है जो शिविर से सुरक्षित जगह पर जाना चाहता है लेकिन जा नहीं सकता। छह कॉलम की इस खबर के बराबर में दिल्ली की खबर दो कॉलम की लीड है। शीर्षक है, आम आदमी पार्टी को झटके में दिल्ली के मंत्री गहलोत ने सरकार और पार्टी छोड़ी। फ्लैग शीर्षक है, इस अलगाव पर आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर निशाना साधा। उपशीर्षक है, मुख्यमंत्री आवास पर ‘अपमानजनक’ विवाद का उल्लेख किया और कहा, ‘महत्वाकांक्षाएं प्रतिबद्धताओं से बढ़ रही हैं’। अखबार ने इस खबर के साथ कैलाश गहलोत की फोटो छापी है जिसका कैप्शन उनका बयान है, आम आदमी पार्टी लोगों के अधिकार के लिए लड़ने की बजाय अपने एजंडा के लिए लड़ने लगी है। नेता लोग पार्टी छोड़ने के समय ऐसे डायलॉग मारते थे तो पहले के दिनों में उनसे पूछा जाता था, अब समझ में नहीं आया, अभी ऐसा क्या हुआ है या इतने दिनों तक क्या कर रहे थे आदि आदि। इससे उनकी पोल खुलती थी पर अब यह सब नहीं होता। कई लोग 56 ईंची झूठ की राजनीति करने लगे हैं। 

हिन्दुस्तान टाइम्स ने दोनों खबरों को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। एनपीपी के भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने की खबर मणिपुर में हिंसा की मुख्य खबर के साथ दो कॉलम में छपी है जबकि गहलोत ने आप से इस्तीफा दिया, कहा पार्टी के अंदर गंभीर चुनौतियां हैं शीर्षक से एक विधायक या मंत्री के इस्तीफे की खबर तीन कॉलम में पास-पास ही छपी है। मणिपुर वाली मुख्य खबर चार कॉलम की लीड है। इसका शीर्षक है, ताजा हमलों, आगजनी के बीच मणिपुर तनावग्रस्त बना रहा। इसके साथ सिंगल कॉलम की खबर है जो बताती है कि डबल इंजन के गृहमंत्री अमित शाह ने समीक्षा बैठक की जबकि संगमा की एनपीपी ने मणिपुर की (भाजपा) सरकार से समर्थन वापस ले लिया। स्पष्ट रूप से अखबार ने हिंसा की खबर को सबसे ज्यादा महत्व दिया है और सेकेंड लीड (उसपर आगे) को छोड़ दूं तो गहलोत के आप छोड़ने को  मणिपुर की भाजपा सरकार से एनपीपी का समर्थन वापस लिये जाने की खबर के मुकाबले कम महत्व दिया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी गहलोत के इस्तीफे को आम आदमी पार्टी के लिए झटका बताया है और सरकार व पार्टी से अलग होने की खबर को लीड बनाया है। मणिपुर हिंसा की खबर चार कॉलम की लीड के नीचे तीन कॉलम में है। इसका शीर्षक है, दो और शव बहकर नदीं में आये; मणिपुर में विधायकों के घरों पर हमले जारी। इसके साथ सिंगल कॉलम में दो खबरें हैं, शाह ने रैलियां रद्द कीं, स्थिति की समीक्षा की। दूसरी का शीर्षक है, भाजपा के सहयोगी ने बिरेन की आलोचना की, समर्थन वापस लिया। अखबार ने सात विधायकों वाले एनपीपी द्वारा मणिपुर की भाजपा सरकार से इस्तीफा वापस लिये जाने की खबर के मुकाबले दिल्ली की सरकार से एक विधायक या मंत्री के इस्तीफे की खबर को न सिर्फ ज्यादा महत्व दिया है बल्कि भाजपा के इस आरोप को भी कमजोर साबित करने की कोशिश की है कि गहलोत का इस्तीफा भाजपा के दबाव में हुआ है। अखबार ने इस आरोप के बराबर में छपी खबर का शीर्षक लगाया है, अतिशी के आगे बढ़ने से पार्टी के अंदर गहलोत के संबंध खराब हुए। अखबार ने गहलोत के शीश महल के आरोप को भी प्रमुखता से छापा है जबकि मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर भारी खर्च कर उसे शीशमहल बनाने का आरोप तब लगा था जब अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री थे। अब तथ्य यह है कि उन्होंने जेल से छूटने के बाद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया और जेल में रहते हुए नहीं दिया था (भाजपा इसके लिए मजबूर नहीं कर पाई) और अब मुख्यमंत्री निवास खाली कर दिया है और उसमें भाजपा के शुरुआती विरोध (रोड़े) के बाद अब मुख्यमंत्री अतिशी रह रही हैं। भाजपा पर हजारों करोड़ के घपलों-घोटालों के आगे सरकारी घर को सरकारी खर्च से सजाने के विवाद को इतना तूल देना खबर का राजनीतिक रंग बता देता है। और इस खबर को मणिपुर की खबर के मुकाबले ज्यादा महत्व मिलने का कारण समझा जा सकता है। आम तौर पर पाठक समझेगा (या समझाया जा सकता है) कि ऐसा दिल्ली की खबर होने के कारण दिल्ली के अखबार में किया गया है। यह सही भी हो तो सवाल है कि भाजपा की मणिपुर की राजनीति क्या आप दिल्ली में नहीं जानना चाहेंगे?

हिन्दू में मणिपुर की खबर लीड है। शीर्षक है, दो और शव मिले; इंफाल में सेना तैनात की गई। उपशीर्षक है, छह अपहृत लोगों में से पांच के शव मिले; सिर में गोली लगी एक कुकी-जो व्यक्ति का शव मिला; अमित शाह ने मणिपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की; सेना, सीआरपीएफ के अधिकारी राजधानी पहुंचे। चार कॉलम की इस लीड के साथ एनपीपी द्वारा बिरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस लिये जाने की खबर सिंगल कॉलम में है। इस अखबार में आम आदमी पार्टी की दिल्ली की खबर लीड के आस-पास नहीं, पर चार कॉलम में है। दो लाइन के शीर्षक में ही आप का आरोप भी है। पूरा शीर्षक इस तरह है, दिल्ली के मंत्री ने इस्तीफा दिया; आप ने कहा भाजपा ने केंद्रीय एजेंसियों के उपयोग से उनपर दबाव डाला। कहने की जरूरत नहीं है कि यहां भी मणिपुर की हिंसा और राजनीति के मुकाबले दिल्ली के एक मंत्री के इस्तीफे को रखा गया है और इसमें एनपीपी के भाजपा अथवा राजग से अलग होने की खबर को कम महत्व दिया गया है। इसका कारण यह हो सकता है कि दिल्ली में मणिपुर की खबर कौन पढ़ता है या सभी अखबार ऐसा करते हैं। कुल मिलाकर, ऐसा कहना (अगर कोई कहता है) पहले आदत खराब करने और फिर आदत के अनुसार सामग्री परोसने का मामला है। इसमें आप टेलीविजन के शुरुआती कंटेंट और टीवी समेत अब यू ट्यूब पर जो सब आ रहा है उसकी तुलना कर सकते हैं। अखबार भी इससे अछूते नहीं हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दि एशियन एज में दोनों ही खबरें पहले पन्ने पर हैं लीड कोई और खबर है। मणिपुर की खबर, हिंसा बढ़ी, चार और विधायकों के घर जलाये गये तीन कॉलम में शीर्षक के साथ ऊपर है। उससे काफी नीचे (बीच में एक खबर के बाद) कैलाश गहलोत ने आप, दिल्ली सरकार से इस्तीफा दिया चार कॉलम में है। मुझे लगता है कि पत्रकारों-संपादकों की ‘आप’ विरोधी मानसिकता ने इस खबर को चार कॉलम का और मणिपुर में हिंसा, डबल इंजन की सरकार और उसके काम-काज पर प्रभाव वाली खबर को तीन कॉलम में छपवाया है। मौजूदा माहौल में यह भले ही सामान्य पत्रकारिता लगे, मान ली जाये या दावा किया जाये। स्पष्ट रूप से यह पक्षपाती पत्रकारिता है और हेडलाइन मैनेजमेंट का दूरगामी प्रभाव लगता है। यह स्थिति किसी एक दिन के आदेश से नहीं हो सकता है और इसका कारण जो मुझे शक है वह नहीं हो तो और गंभीर होगा। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। दि एशियन एज की खबर के दो उपशीर्षक हैं। पहला, भाजपा ने मंत्री के पार्टी छोड़ने का स्वागत किया और दूसरा भाजपा के पूर्वांचली नेता आप में शामिल हुए। यहां दूसरा मुद्दा महत्वपूर्ण है जिसकी चर्चा पहले के किसी और उपशीर्षक में नहीं है। अगर एक मंत्री ने आप छोड़ी तो दो बार के विधायक और भाजपा के पूर्वांचली नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये हैं। और राजनीतिक दृष्टि से मामला बराबरी का ही है। दूसरे अखबारों ने इस आखिरी तथ्य को महत्व नहीं दिया यह उनकी बेईमानी या पक्षपात है। 

इसी तरह, दि एशियन एज की खबर के अनुसार, अरविन्द केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली विधानसभा के आगमी चुनाव महाभारत की तरह धर्मयुद्ध हैं। इसे भी अखबारों में आमतौर पर महत्व नहीं मिला है। दूसरी ओर, फर्जी आरोप में पूरी सरकार और मंत्रिमंडल को परेशान किये जाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जनता की अदालत में आने के उनके फैसले का मामला भी कम नहीं है। यह जितना महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है उतना महत्व इसे नहीं मिलता है जबकि भाजपा के आरोपों या झारखंड में घुसपैठ की कथित समस्या को तूल दिया गया है। इससे पहले बिहार चुनाव के समय भाजपा ने बिहार को बीमारू राज्यों से अलग करने का दावा किया था जिसकी सच्चाई यह है कि बीमारी राज्य कोई मानक या दर्जा नहीं है और हिन्दी पट्टी के चार प्रमुख राज्यों – बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के नामों को अंग्रेजी वर्णमाला क्रम के अनुसार रखने और पहले दो के पहले दो अक्षर और बाद वाले के दो अक्षरों को मिलाने से बनने वाला अंग्रेजी का एक्रोनिम है और इसका हिन्दी के शब्द बीमार या बीमारी से कोई शब्द नहीं है। फिर भी भाजपा ने दावा किया और एक काम कर दिया है। इसे उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया जा चुका है। बाकी बिहार जहां पहले था वहीं आज भी है। सबसे गरीब, सबसे अशिक्षित। अगर एकाध सीढ़ी चढ़ भी गया हो तो बिहार में कोई क्रांति नहीं हुई है और ‘अच्छे दिन’ जैसा कुछ नहीं हुआ है। लेकिन प्रचार में कोई कमी नहीं रही। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

टेलीग्राफ में लीड झारखंड चुनाव पर है और मणिपुर की खबर अलग दो कॉलम में अलग, लीड के बराबर में छपी है। शीर्षक है, सहयोगी ने मणिपुर में भाजपा को छोड़ा, कहा स्थिति ‘सबसे’ खराब। यह अखबार चुनाव के समय चुनाव क्षेत्र की खबर को पहले पन्ने पर रखने की प्राथमिकता पर चल रहा लगता है। इस क्रम में अखबार ने गरीबों के बैंक खातों से संबंधित परेशानी का जिक्र किया है जो किसी राजनीतिक दल की चिन्ता का विषय नहीं है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जन धन खाते खुलवाने का श्रेय खूब लिया था। टेलीग्राफ की आज की खबर पढ़ने-पढ़ाने लायक है। बताती है कि इस सरकार ने आम आदमी का जीवन कितना मुश्किल बना दिया है। शीर्षक है, गरीब केवाईसी के जाल में फंसे हैं बैंक और नेताओं पर कोई असर नहीं। झारखंड के गोड्डा / धनबाद डेटलाइन से फ़िरोज़ एल विंसेंट की बाईलाइन वाली खबर इस प्रकार है, वैसे तो चुनावों में पैसा मायने रखता है, लेकिन मतदाताओं के पैसे के मामले ने झारखंड के राजनीतिक दलों में रुचि बहुत कम है। नई तकनीक और वित्तीय ईमानदारी मानदंडों के बेहतर कार्यान्वयन ने यहां के लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। एक ऐसा भूलभुलैया तैयार किया है जिस पर किसी भी राजनीतिक चर्चा के अभाव ने मतदाताओं और यहां तक ​​कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिये भी इस समस्या को सुलझाना मुश्किल हो गया है।

केवाईसी के जाल में फंसे गरीब

Advertisement. Scroll to continue reading.

निरसा निर्वाचन क्षेत्र में बैंक ऑफ इंडिया की केलियासोल शाखा के अधिकांश ग्राहकों को अपना केवाईसी नये सिरे से कराने में लगभग पांच महीने लग गए। केवाईसी मानदंड ग्राहक से जुड़े जोखिम स्तर के आधार पर हर कुछ वर्षों में इनके विवरण का पुन:सत्यापन अनिवार्य करते हैं। छोटे बचत खाते कम जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं, जिनका सत्यापन हर 10 साल में होता है। किसान समीर मंडल ने बताया, “मैं कई बार बैंक गया क्योंकि कुछ वर्तनी की त्रुटि के कारण केवाईसी नहीं हो रहा था। कुछ महीनों के बाद, प्रबंधक ने मुझे और अन्य लोगों को सही वर्तनी के साथ हलफनामा दाखिल करने और उसे सबूत के रूप में जमा करने के लिए कहा।” द टेलीग्राफ से उसने आगे कहा, “इसकी लागत प्रति शपथ पत्र 500 रुपये है। लगभग पांच महीनों तक, मैं अपने खाते का उपयोग नहीं कर सका। मैंने दुकानों से उधार पर खरीदारी की, लेकिन कुछ दुकानदारों के खाते भी बंद हो गए थे और इसलिए उन्हें नकदी की भी आवश्यकता थी।” यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इसकी सूचना जन प्रतिनिधियों को दी है, एक अन्य किसान किशोर मंडल ने कहा, “राजनीतिक नेता हमें यह कहकर अपमानित करते हैं कि ये हमारी अपनी लापरवाही के कारण पैदा हुई समस्याएं हैं। ग्राहक समझते हैं कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है और मैं जानता हूं कि यह सब सरकारी नियमों के कारण है और हाल में 4.5 लाख म्यूल अकाउंट बंद किये जाने की खबर आई थी।  संभव है, इन्हें भी इसी श्रेणी में रखा गया हो। किशोर मंडल ने कहा, यह हमारी मेहनत की कमाई है। बैंकों को सरकार चलाती है।” क्या बैंकों को विधायक (भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता) या सांसद (भाजपा के दुलु महतो) को कुछ नहीं करना चाहिए?” खबर में और भी उदाहरण हैं लेकिन उनपर फिर कभी।

प्रदूषण की खराब हालत जैसी दूसरी खबरें पिट गई

Advertisement. Scroll to continue reading.

 कहने की जरूरत नहीं है कि आज मणिपुर, एनपीपी, कैलाश गहलोत और आम आदमी पार्टी की इन खबरों के चक्कर में दिल्ली में प्रदूषण की खबर दब गई। हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया में यह सेकेंड लीड है और हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है। फिर भी, आम तौर पर भाजपा का एक सहयोगी दल उससे अलग हुआ – यह मुद्दा ही नहीं है जबकि आप के एक विधायक और मंत्री के मामले को कइयों ने तूल दिया है। अंतरराष्ट्रीय खबरों के मामले में भारत की स्थिति वैसे ही कमजोर और खराब है फिर भी आज की दूसरी महत्वपूर्ण खबर नाईजीरिया की है। हिन्दू के एक शीर्षक के अनुसार, प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत और नाईजीरिया मिलकर आतंकवाद, पायरेसी और ड्रग ट्रैफिकिंग (नशे की तस्करी) से निपटेंगे। आप जानते हैं कि कुछ ग्राम नशा बरामद होने पर कितना हंगामा होता रहा है और उसका फुटेज कितने घंटों का है और कितने कॉलम सेंटीमीटर में उसकी खबरें छप चुकी हैं। लेकिन टन और बोरियों में नशा बरामद होने की खबर का कोई फॉलो अप नहीं होता है। सरकार भी नहीं बताती कि बरमदगी से क्या पता चला, रोकने के लिए क्या किया या क्या योजना है। शायद इसीलिए हिन्दुस्तान टाइम्स ने नाईजीरिया की खबर का शीर्षक लगाया है, “भारत नाईजीरिया से संबंधों को प्राथमिकता देता है : मोदी”। 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

भड़ास तक खबर सूचनाएं जानकारियां मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadas_Group_two

Advertisement

Latest 100 भड़ास

Advertisement

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement