दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आईटी ऐक्ट के सेक्शन 66 ए को रद्द कर दिया है। इस फैसले पर कई वरिष्ठ पत्रकारों ने ट्विटर के माध्यम से अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। उनका कहना है कि इस संबंध में दिशानिर्देश तो होने चाहिए लेकिन सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया है- “स्वतंत्र अभिव्यक्ति का एकमात्र अपवाद नफरत से भरी अभिव्यक्ति और हिंसा को शह देना होना चाहिए। कानून के मुताबिक मानहानि/बदनामी। #Sec66A”। ओपन मैगजीन के पूर्व संपादक और सीनियर पत्रकार मनु जोसफ ने कहा है- आईटी ऐक्ट के सेक्शन 66ए की फ्रेमिंग बेवकूफाना थी। इस सेक्शन को बनाने के पीछे राजनैतिक वर्ग का हाथ था जोकि लोगों की आवाज को दबाना चाहते थे। हम लकी हैं कि हमारे देश की पुलिस ने कई मौकों पर ऐसी हरकत की कि सभी को इस सेक्शन के हास्यास्पद होने का पता चला और यह भी पता चला कि किस तरह से उसका दुरुपयोग किया जा सकता है। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि मोदी सरकार इस सेक्शन का समर्थन कर रही थी।
सीनियर पत्रकार शेखर गुप्ता ने लिखा है- #Sec66A पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत। इस एक कानून पर भाजपा और कांग्रेस एक साथ हैं। दोनों के दौर में इसका दुरुपयोग होता रहा है। इसलिए अच्छा हुआ कि पुलिस स्टेट से पीछा छूटा। प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी ने इस ट्वीट का समर्थन करते हुए कहा है- अच्छा हुआ कि #Sec66A से पीछा छूटा, जोकि राजनैतिक हितों के लिए तोड़ा-मरोड़ा जाता रहा है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद दिया जाना चाहिए और पूरे फैसले को सावर्जनिक मंच पर प्रचारित किया जाना चाहिए।
NDTV के ग्रुप सीईओ विक्रम चंद्रा ने ट्वीट किया है – सेक्शन 66A बहुत अस्पष्ट था जिसका दुरुपयोग संभव था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन विक्रम ने इस बात की तरफ भी इशारा किया कि हमें इंटरनेट पर भड़काऊ कंटेंट डालने या बदनामी फैलाने की करतूतों को भी नियंत्रित करना चाहिए। पर कैसे? हिंदू अखबार के पूर्व संपादक और सीनियर पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने ट्वीट किया है – सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभूतपूर्व है। अभिव्यक्ति की आजादी की जीत हुई है। NDTV की एंकर बरखा दत्त ने ट्वीट किया है – जो काम हमारे राजनेता नहीं कर पाए, वह सुप्रीम कोर्ट ने कर दिखाया। 66 ए केबाद अब 377 से भी छुटकारा मिलना चाहिए।
हिंदुस्तान टाइम्स के कॉलमिस्ट माधवन नारायणन ने कहा है – इस फैसले से अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार को मान्यता मिलती है और इस बात को भी मान्यता मिलती है कि सोशल मीडिया को भी दूसरे मीडिया की तरह स्वतंत्रता है लेकिन इसकी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। हमें इस बात को याद रखना चाहिए कि#Sec66A पर आया फैसला हमें किसी को बदनाम करने का लाइसेंस नहीं देता। हमें आजादी, परिवाद और गाली-गलौच के बीच में फर्क करना आना चाहिए।
सीनियर पत्रकार दिबांग कानून का महत्व बताते हुए कहते हैं, #SupremeCourt ने केंद्र के #Sec66A को बचाने के अनुरोध को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट जानता है कि सरकारें आती-जाती रहती हैं लेकिन कानून हमेशा रहता है।
(समाचार4मीडिया से साभार)