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सुख-दुख

अफ़ग़ानिस्तान में पत्रकारों के घर की तलाशी ले रहे तालिबानियों ने डायचे वैले के रिपोर्टर के परिजन को गोली मारी!

सौमित्र रॉय-

अफ़ग़ानिस्तान में पत्रकारों के घर-घर तलाशी ले रहे तालिबानियों ने आज डायचे वैले के एक रिपोर्टर के परिजन को गोली मार दी।

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वीर विनोद छाबड़ा-

कल रवीश का प्राइम टाइम में मुद्दा था अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान. वहां से भागने वालों का जो फुटेज वहां से मिल रहा है, उनमें सिर्फ मर्द दिख रहे हैं, महिलाएं और बच्चे नहीं. यानी महिलायें कभी भी आसानी से छोड़ी जा सकती हैं. उन्हें दोज़ख में छोड़ कर मर्द भाग रहे हैं. ये बड़ी ख़राब स्थिति है. चूँकि ख़बरें अस्पष्ट आ रही हैं तो गोदी मीडिया और व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के लिए मैदान खुला है.

केंद्र सरकार साफ़ साफ़ नहीं बता रही है कि तालिबान ख़राब हैं या अच्छे. अगर भविष्य में तालिबान सरकार बनाते हैं तो भारत सरकार का क्या रुख रहेगा? मालूम नहीं. लेकिन यूपी के सीएम और मंत्रियों ने तालिबान को ख़राब बता दिया है, और उनकी आलोचना की है तो जो अफ़गानी तालिबान समर्थक हैं. जिसको सस्ता पेट्रोल-डीज़ल चाहिए उन्हें अफ़ग़ानिस्तान भेज दो. जबकि केंद्र सरकार अभी स्थिति पर नज़र रखे हुए है.

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सच तो यह है कि दुनिया भर के मुल्क एक भारत को छोड़ कर अपना नज़रिया पेश कर रहे हैं. रवीश ने समापन में कहा, दो किस्म के लोग होते हैं. एक महामूर्ख और दूसरे अति बुद्धिमान और दोनों की कोई सीमा नहीं होती है.


पंकज मिश्रा-

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2018 से अमेरिका तालिबान से बात चीत कर रहा था क्या इसलिये कि वह पराजित शक्ति के रूप में दिखे … क्या इसलिए कि दुनिया उसकी खिल्ली उड़ाये | क्या अमेरिका इतना कूटनीति मूढ़ हो सकता है | असल मे इससे ज्यादा मूर्खतापूर्ण कोई तर्क हो नही सकता है |

तालिबान जिसके बारे में सबका अनुमान था कि उसे काबुल पर कब्ज़ा करने में कुछ महीने लगेंगे वह कुछ दिनों में ही हो गया , यह बिल्कुल भी नॉर्मल बात नही है | फिर , जिस तरह अफगानी फौजो ने सरेंडर किया यह भी नॉर्मल नही है , अशरफ गनी जिस तरह देश छोड़ कर निकल लिए यह भी नॉर्मल नही है |

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तालिबान , जो कर रहा है , उसकी प्रेस कांफ्रेंसो में जो बातें की जा रही है वह सब फिलहाल अमरीकी डिक्टेशन ही है …… सॉफ्ट हो गया , बदल गया , यह सब सोचा समझा narative है जो चलाया जा रहा है | वह इसलिए कि तालिबान को न केवल दुनिया मान्यता दे दे बल्कि उसे अब स्वीकार्यता भी मिले ..मान्यता एक राजनीतिक उपक्रम है और स्वीकार्यता सामाजिक कवायद … officially तालिबान द्वारा good boy की image बनाना उसकी diplomacy है जिसे अमेरिका की backing है वरना यह narrative इतनी तेजी से न फैलता … वह भी तब जबकि उसका इतिहास और वर्तमान सबके सामने है |

अमेरिका की पकड़ ढीली हो इसीलिए अमेरिका के विरोधी तमाम देश ईरान चीन रूस सबने उसे मान्यता देने में बिल्कुल देर नही लगाई … पाकिस्तान तो इसे अपनी पर्सनल जीत समझ ही रहा है | यह स्थिति तालिबान के लिए बहुत अच्छी है | इस बिना पर भविष्य में वह सबसे बारगेन कर सकता है … तू नही तो और सही की तर्ज़ पर …

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रही भारत की बात तो वह पूरी तरह कूटनीतिक तौर पर विफल रहा है | gallery की तरफ play करने का नतीजा यह है कि , तालिबान वह न निगल पा रहा है , न ही उगल ही पा रहा है | सच यह है कि भारत को अंततः उसे recognize करना ही पड़ेगा मगर तब तक काफी भद्द पिट चुकी होगी | भद्द तो लगातार पिट रही है मसलन ऐन पड़ोस के इतने बड़े देश जिसका दसियों हजार का निवेश हुआ पड़ा है उसे बातचीत तक के लिए न बुलाया जाए यह निहायत शर्मिंदगी की बात है | अभी खबर पढ़ी कि तालिबान ने भारत से export import रोक दिया है वो भी तब जब उसका import ज्यादा था , इससे पहले उसने भारत को चेतावनी दी थी कि , वह अफगानिस्तान में किसी तरह की सैन्य दखल देने की कोई कोशिश न करे ….

यह सारे तथ्य भारत के लिए अच्छे संकेतक तो बिल्कुल नहीं है।

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