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‘अग्‍न‍िपथ’ स्‍कीम को सफल बताने की सुपारी टीवी चैनलों को दी जा चुकी है, सच्चाई यहाँ जानिए!

गिरीश मालवीय-

टीवी पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सड़क पर प्रदर्शन करते हुए विजुअल चलाए जा रहे हैं… यह प्रदर्शन और इसके विजुअल एजेंडा सेटिंग के लिए बहुत बढ़िया काम आएगा…

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ठीक इसी वक्त सेना में भर्ती के लिए मोदी सरकार की अग्‍न‍िपथ योजना का बिहार की सड़को पर कड़ा विरोध हो रहा है… सेना भर्ती की तैयारी करने वाले युवाओं ने बक्‍सर में ट्रेन रोकी है और मुजफ्फरपुर और बेगूसराय में सड़क पर आगजनी की है…

इसकी कोई ख़बर कोई रिपोर्ट न्यूज़ चैनल पर नही है ?

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दरअसल यह एजेंडा सेटिंग में दिक्कत देने वाली ख़बर है… मोदी ने जो चार साल की भर्ती की अग्‍न‍िपथ स्‍कीम लाई है उसे पूरी तरह से सफल बताने की सुपारी टीवी चैनल को दी जा चुकी है…

लोग ख़बर के बारीक पहलू देखने से चूक जाते है इसलिए बताना जरूरी है

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श्याम मीरा सिंह-

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आर्मी भर्ती का बड़ा रोल है। अपने गाँव के दोस्तों से “अग्निपथ” योजना पर कुछ पूछ रहा था, इसके कारण बड़े से बड़े मोदी भक्त भी इस सरकार को गाली दे रहे हैं। लेकिन विपक्ष को इस योजना के प्रभाव का अंदाज़ा नहीं, पेगासस पर आंदोलन करने वाले आर्मी भर्ती पर ग़ायब हैं।

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सोचने वाली बात है, आर्मी भर्ती जैसा बड़ा मुद्दा विपक्षी पार्टियों के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है। सरकार लाख हिंदू मुस्लिम कर ले, अगर आप आर्मी भर्ती पर खड़े हों जाएँ तो वो मूवमेंट खड़ा हो सकता है जो किसान आंदोलन से भी बड़ा होगा। नौजवानों की ताक़त और जज़्बाती मुद्दे नहीं पहचान पा रहे आप, ऐसे कैसे इनसे लड़ेंगे।

सौमित्र रॉय-

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दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज सेना में 25 लाख भारतीय जवान थे। जंग खत्म हुई तो 20 लाख जवान रिटायर कर दिए गए।

सब अपने गांव पहुंच गए। 20-21 साल के छोकरे। बंदूक से लेकर तोप चलाने तक में कुशल।

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1947 में देश आज़ाद हुआ। भयानक साम्प्रदायिक दंगे हुए। कई अनुमानों में दंगों के शिकार लोगों की संख्या दोनों तरफ (भारत और पाकिस्तान) 10 से 20 लाख बताई जाती है।

आपको यह संख्या सामान्य लगती है? क्या इस लाखों के नरसंहार में ब्रिटिश सेना से रिटायर हुए जवानों का भी हाथ था?

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सवाल गंभीर है। अनदेखा नहीं किया जा सकता। सवाल फिर उठा है, क्योंकि अग्निपथ योजना से मोदी सरकार देश को उसी रास्ते पर ले जा रही है।

साल-दर-साल 23 हज़ार युवाओं की बेरोज़गार फ़ौज। हथियार चलाने में माहिर। महज़ 6 महीने की ट्रेनिंग के बाद गोलीबारी कर चुकी। खून का स्वाद चख चुकी।

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4 साल बाद इनका कोई सुनिश्चित भविष्य नहीं। समाज पर इसका क्या असर होगा? सवाल तो ये भी बड़ा है।

बीजेपी ने 2014 में चुनाव घोषणा पत्र में लिखकर दिया था कि सालाना 1.5-2 करोड़ रोज़गार देंगे। 5 साल में अवाम पुलवामा और बालाकोट की नौटंकी में सब भूल गई।

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मोदी का GIFT सिटी का वादा भी याद रखें, जिसमे रोज़गार का वही आंकड़ा था, जो कल जुमले में फेंका गया। ये सवाल आज बेशक इतने बड़े न हों, क्योंकि इसके नतीजे सामने नहीं हैं।

सोचिए 2026 के उस दौर के बारे में, जब 23 हज़ार की फ़ौज सेना से निकलकर सड़कों पर होगी। बचेंगे तो आप भी नहीं। कोई नहीं।

यह भी याद रखें कि अस्सी के दशक में पंजाब के उग्रवाद को बढ़ावा देने में सेना से रिटायर लोगों का भी हाथ रहा था।

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सिर्फ़ 35 साल की उम्र में सेना से निकले इन लोगों के पास करने को कोई काम नहीं था। पाकिस्तान ने उन्हें बरगलाकर खालिस्तान आंदोलन में झोंक दिया।

बाद में सरकार ने सेना से रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाई और इन प्रशिक्षित लोगों के लिए नौकरी के विकल्प भी खोजे, पर कोई फायदा नहीं हुआ।

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नतीज़ा आज भी देश के सामने है।

वैसे सेना का नाम आते ही कुछ पाखंडियों में राष्ट्रवाद का कोढ़ उभर आता है। ये मूर्ख- तथ्यों, आंकड़ों, प्रमाणों से वंचित गिरगिट की तरह से रंग बदलकर सरकार की ग़लत नीतियों का साथ देने उतर पड़ते हैं। ताज़ा मिसाल मोदी सरकार के आज फेंके गए अग्निवीर जुमले की है।

ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि हर साल 80 हज़ार जवानों की भर्ती करने वाली सरकार अग्निपथ में सिर्फ़ 45 हज़ार जवानों को 4 साल के लिए क्यों भर्ती कर रही है?

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खर्च घटाने और तकनीक लाने का तो सिर्फ़ बहाना है। असल में भारत सरकार कंगाल हो चुकी है। उसके पास कॉर्पोरेट को देने के लिए पैसा है। अपने जवानों को सैलरी, पेंशन देने के लिए नहीं।

ठीक वैसे ही, जैसे केंद्र और राज्यों के कुल मिलाकर 1.60 करोड़ पद इस वक़्त खाली हैं। लेकिन भर्ती नहीं हो रही है, क्योंकि सैलरी, पेंशन का पैसा नहीं है।

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क्या सेना में आधुनिक तकनीक 2014 से पहले नहीं आई? हिम्मत है तो गिरगिट की तरह रंग बदलने से पहले सरकार से सवाल पूछिये, पढिये, आंकड़े जुटाइये।

उसी सरकार से जिसने अगले 17 महीनों में 10 लाख नौकरियों का जुमला फेंका है। वही सरकार, जो 8 साल में भी 10 लाख नौकरियां नहीं दे सकी।

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लोगों को बरगलाने से पहले संसद की वेबसाइट्स में टहलिए। सवाल-जवाब में नौकरियों की संख्या तलाशिये।

ईमानदार को मेहनत करनी पड़ती है। बीजेपी से थैली लेने वालों के लिए IT सेल का फॉरवर्ड ही काफ़ी होता है।

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फेंक दीजिए अपना दोहरा मुखौटा। मुझे इनबॉक्स में नसीहत देने की ज़रूरत नहीं। 128 GB की मेमोरी में 60 GB से ज़्यादा आंकड़े हैं।

शीशे में अपना अक्स देखिये।

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श्याम सिंह रावत-

झांसाराम पर भरोसा कैसे करें? यह मास्टरस्ट्रोक नहीं, बिग ब्लंडर है…

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‘अग्निपथ योजना’ को आज सोशल मीडिया पर खूब प्रचारित करवाया जा रहा है। केंद्र सरकार के मंत्री, संघ-भाजपाई नेताओं, पालतू मीडिया और जैविक रोबोट्स को इस काम पर ठीक वैसे ही जुटा दिया गया है जैसे जीएसटी को ‘आर्थिक आजादी’ कहने के बाद वाहवाही के लिए जुटा दिया गया था। नतीजा क्या निकला, यह जगजाहिर है।

अब उसी इतिहास को फिर से दोहराया जा रहा है। गुलाम और भांड एक-दूसरे से होड़ बांधकर बिना कुछ सोचे समझे ठीक वैसी ही जै-जैकार कर रहे हैं, जैसी वे अब तक नोटबंदी, फर्जिकल स्ट्राइक, लॉकडाउन, वैक्सीनेशन, अनुच्छेद 370 को कमजोर करने जैसे तमाम कामों के लिए कर रहे थे।

यह योजना देश के युवाओं के साथ भद्दा और क्रूर मजाक है। दीर्घकालिक नौकरी का भरोसा देने में असफल मोदी आदतन एक बार फिर हवा-हवाई योजना लेकर आये हैं। जिसका सीधा मतलब यह है—

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18 साल की आयु में भर्ती हुए और 22 साल में सेवानिवृत्त!
वेतन के रूप में प्रति माह हाथ में आयेंगे—
पहले साल 21,000 रु.
दूसरे साल 23,100 रु.
तीसरे साल 25,580 रु.
चौथे साल 28,000 रु.
इसके अलावा सेवानिवृत्त होने पर 11.71 लाख रुपये सरकार सेवा निधि के तौर पर देगी।

चार साल बाद कहने को तमाम भाजपाई मुख्यमंत्री पुलिस और अर्धसैनिक बलों में नौकरियों का आश्वासन दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अब तक इन लोगों ने जनता के भरोसे की हत्या कर डाली है तो फिर इन पर एक बार फिर भरोसा किया जाए? ये सभी झांसा देने के एक से बढ़कर एक उस्ताद हैं। ‘असत्यं वद अधर्मं चर’ ही जिनका जीवन आदर्श है, क्या वे भरोसे लायक हैं भी?

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सैन्य विश्लेषक बता रहे हैं कि यह योजना सेना, युवाओं तथा उनके परिजनों के लिए नुकसानदायक होगी। अनिश्चित भविष्य की आशंकाओं से घिरा हुआ नौजवान सेना की छोटी से छोटी नौकरी के लिए कैसे उपयुक्त होगा, यह सरकार तथा उसके सलाहकारों को समझ नहीं आ रहा है।

इस योजना के तहत भर्ती किये जाने वाले कथित ‘अग्निवीर’ 4 वर्ष बाद निजी क्षेत्र में नौकरी पा जायेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्या 25-30 या उससे भी ज्यादा साल सेना में सेवा करने के बाद रिटायर हो चुके सभी सैन्यकर्मियों को नौकरियां मिल चुकी हैं? क्या उनमें से कोई बेरोजगार होकर धक्के नहीं खा रहा है? क्या सरकार बता सकती है कि सभी पूर्व सैनिकों को रोजगार दिया जा चुका है? यदि नहीं, तो फिर यह झांसा देकर लोगों को क्यों गुमराह किया जा रहा है?

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सरकार की मंशा पर संदेह होता है कि कहीं उसकी ‘अग्निपथ योजना’ अंबानी-अडाणी जैसे पूंजीपतियों के लिए चौकीदार टाइप युवाओं को सरकारी खर्च पर प्रशिक्षित करने वाली तो नहीं है?

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