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अखबार मालिक बेवकूफ बना रहे हैं हॉकरों को, कोरोना का शिकार होने से बचें!

माना कि अखबार बांटने वाले हॉकर कोरोना के खिलाफ वीरयोद्धाओ की तरह जंग कर रहे हैं। जंग से लड़ना इनका बुनियादी कर्तव्य है। सर्दी हो बरसात, गर्मी हो या कर्फ्यू, ये अपनी ड्यूटी को बखूबी अंजाम देते आये हैं और आज भी दे रहे हैं। इनको अब क्यों हीरो की तरह पेश किया जा रहा है, इनको समझना होगा वरना पेशेवर लोग इनको इस्तेमाल कर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे और हॉकर लोग हो सकते हैं कोरोना जैसी महामारी का शिकार।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अखबार बांटने वाले सभी हॉकरों की स्क्रीनिंग क्यों नहीं? इनको वरदान नहीं मिला हुआ है कि ये कोरोना से संक्रमित नहीं हो सकते हैं। जब गुजरात के मुख्यमंत्री, पुलिसकर्मी, चिकित्सक, मीडियाकर्मी तथा पिज्जा डिलीवर करने वाला संक्रमित होकर वायरस की “डिलीवरी” कर सकता है तो हॉकर अछूते कैसे रह सकते हैं? भगवान ने वरदान नहीं दे रखा है कि इनको कोरोना नहीं होगा। फिर सरकार और अखबार मालिक चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं?

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चूँकि हॉकरों की आज तक स्क्रीनिंग हुई नहीं है, इसलिए किसी को पता भी नहीं है कि इनमें से कितने संक्रमित हैं और कितनों को इन्होंने कोरोना परोस कर मौत की ओर धकेला है। सरकार को चाहिए कि “वीरयोद्धा” हॉकरों की अविलम्ब सामूहिक स्क्रीनिंग की जाए ताकि वास्तविकता सामने आ सके। वरना लॉक डाउन का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा। हॉकर कोरोना बांटते रहेंगे और सरकार लॉक डाउन को बढ़ाती रहेगी।

हकीकत यह है कि अखबार मालिक बेचारे हॉकरों को गुमराह करते हुए इन्हें सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। मालिकों को हॉकरों से कोई सहानुभूति नहीं है। सहानूभूति है तो केवल अपने बिजनेस से। अखबार मालिक यह बखूबी जानते हैं कि एक भी हॉकर कोरोना पॉजिटिव पाया गया तो उनका धंधा चौपट होना स्वाभाविक है। इसलिए हॉकरों को गुमराह कर मालिक लोग इनके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। इसीलिए वीर योद्धा का खिताब देकर रोज छापी जा रही है इनकी फ़ोटो। ताकि ये भरम में जीते हुए मालिकों की तिजोरियां भर सकें। वरना जो मालिक चिरी अंगुली पर नहीं मूते, वे इनके रोज फ़ोटो क्यों छाप रहे हैं, आसानी से समझ जाना चाहिए।

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आज जो अखबार वाले अपना उल्लू सीधा करने के लिए उनकी फोटो छाप कर सूली पर चढ़ा रहे है, भगवान ना करें कल कोई हॉकर कोरोना से पीड़ित हो जाये तो ये अखबार वाले अपने योद्धाओं को पहचानने से भी इंकार कर देंगे। हॉकरों को चाहिए कि गलतफहमी का गमछा उतारकर धरातल पर आएं और कराएं अपनी स्क्रीनिंग वरना इतनी देर हो चुकी होगी कि भगवान भी बाद में हाथ जोड़ लेगा।

अखबार वाले हॉकरों को वीर योद्धा मानते हैं। इस बात का रोज जोर जोर से ढिंढोरा भी पीटा जा रहा है। इनकी सहानुभूति के लिए टंसुए भी बहाए जा रहे हैं। तो फिर इन बेचारे को जीवन और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा क्यों नहीं? हॉकर यूनियन को चाहिए कि वे अविलम्ब अखबार मालिकों से न्यूनतम 50 लाख का जीवन बीमा तथा 10 लाख का मेडिक्लेम (कैशलेस) अविलम्ब कराएं।

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लॉक डाउन समाप्त होने के बाद जो लोग फ़ोटो छापकर सूली पर चढ़ा रहे हैं, वे पहचानने से भी इंकार कर देंगे। सरकार को भी इनके कल्याण के बारे में कोई कोई पुख्ता उपाय करना चाहिए। राज्य सरकार ने जिस तरह अन्य योद्धाओं की मृत्यु पर उसके परिजनों को 50 लाख रुपये देने की घोषणा की है, उसी प्रकार मीडियाकर्मी और हॉकरों पर यह योजना लागू कर सरकार को सदाशयता का परिचय देना चाहिए।

लेखक महेश झालानी राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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