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‘जुबली’ का ‘रॉय टाकीज’ क्या वाकई बॉम्बे टाकीज ही है?

संजीव श्रीवास्तव-

कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो ऐसा ही प्रतीत होता है – लेकिन कुछ बातों पर गौर करें तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। दावा है कि यहां देविका रानी और हिमांशु रॉय के द्वंद्व और नजम उल हसन (या हुसैन) के त्रिकोणात्मक रिश्तों (स्कैंडल) को कहानी की बुनियाद बनाई गई है। और उस बुनियाद को अंत तक एक काली छाया के तौर पर चित्रित किया गया है। इसे रॉय टाकीज (अगर बॉम्बे टॉकीज मानें तो) की बर्बादी की सबसे बड़ी वजह भी बताया गया क्योंकि जमशेद खान (अगर नजम उल है तो) के न रहने के बाद सुमित्रा कुमारी (अगर देविका रानी है तो) का दिल रॉय टाकीज के किसी भी प्रोडक्शन में नहीं लगता था, जब तक कि श्रीकांत रॉय (अगर हिमांशु रॉय है तो) ज्यादा दवाब न डालें।

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सीरीज में सुमित्रा कुमारी श्रीकांत रॉय और नकली मदन कुमार (बिनोद दास) से जमशेद की मौत का आखिरी तक बदला लेने की मंशा में लगी रहती है। वह प्रोटेगोनिस्ट नहीं वैम्प लगती है। अगर सुमित्रा कुमारी देविका रानी है तो क्या वही बॉम्बे टाकीज के सीरीज वाले इस अंजाम की जिम्मेदार थीं?

सीरीज के मुताबिक जिस लैब सहायक बिनोद दास को श्रीकांत रॉय जमशेद के बदले मदन कुमार बना देते हैं-अगर वह लैब सहायक अशोक कुमार हैं तो क्या अशोक कुमार का नजम उल के साथ कुछ ऐसा ही कांफ्लिक्ट था और देविका रानी अशोक कुमार से नफरत करती थी? (जबकि हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि जब अशोक कुमार को देविका रानी के साथ सीन करने में घबराहट होती थी तो देविका रानी उन्हें संबल बढ़ाती थी।) जानकार प्लीज विस्तार से बताएं।

दूसरे संदर्भ पर भी गौर करें-

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इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो बॉम्बे टॉकीज से हिंदी और ऊर्दू के कई नामी लेखकों का जुड़ाव रहा-भगवती शरण वर्मा, सअदत हसन मंटो आदि। देविका रानी–हिमांशु रॉय का इनसे विचार-विमर्श होता रहता था और फिल्म के लेखन में इनका योगदान था, इन्हें सम्मानित जगह हासिल थी, लेकिन सीरीज में बॉम्बे टॉकीज के उस पक्ष को एकदम से ना केवल छोड़ दिया गया है बल्कि पूरी सीरीज में राइटर जैसे पोस्ट की अहमियत को ही गोल कर दिया गया है। स्टोरी राइटिंग को लेकर सीरीज में कोई भी बिल्कुल नॉन सीरियल तरीके से कुछ भी टिप्पणी करता है।

लेकिन प्रोडक्शन परफेक्ट है

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इसके बावजदू जुबली बेव सीरीज की मेकिंग बेहद प्रभावशाली और एंटरटेनिंग है। कहानी, पटकथा, संवाद, गीत, संगीत, डायरेक्शन, एक्टिंग, सेट, कॉस्ट्यूम हर एंगल में देह ही दहलीज पर दिल, दिमाग और दौलत का उम्दा प्रदर्शन है। रेट्रो की सोचती विचारती – सी और मन को झकझोरती-सी कड़ीवार मनोहर कहानियां।

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