अमिताभ बच्चन एहसान फ़रामोश है!

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गोलेश स्वामी-

कहते हैं न सच्चा प्यार, प्यार ही होता है। वो छुपता नहीं। खासकर आज प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री रेखा का अमिताभ बच्चन से प्यार। जया भादुड़ी लाख चाहें,लेकिन रेखा के जज्बात को छुपा नहीं सकते। आज के इंडियल आयल के एपिसोड में रेखा ने अमिताभ के प्रति अपने प्यार का सरेआम इजहार किया।

मैं जानता हूं अमिताभ भी रेखा से प्यार करते हैं, लेकिन डरपोक हैं। प्रवीन बाबी का क्या हश्र किया इस शख्स ने। अमर सिंह ने क्या नहीं किया? अंत समय में अमर सिंह को देखने तक नहीं गए।

सहारा श्री सुब्रत सहारा ने इनके बंगले को नीलामी से बचाया, लेकिन यह शख्स उनके मुसीबत में आते ही बदल गया। अमिताभ अहसान फ़रामोश हैं। महान कलाकार विश्वजीत, गुरूदत्त, राज कपूर, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, सुनीलदत्त, देवानंद, धर्मेद्र, राजेश खन्ना, शशि कपूर, राजेंद्र कुमार और मनोज कुमार जैसे सुपर स्टार के सामने कैसे अमिताभ बच्चन सदी का मेगा स्टार कैसे हो गया और किसने इसको सदी का मेगा स्टार घोषित किया, कोई बता सकता है।

ठीक है एक्टर अच्छा है, लेकिन इसका मतलब यह नही कि आप सदी के मेगा स्टार हो। अहंकारी जबरदस्त है। किसी को मेरे लिखे पर गलत लगे तो प्रतिक्रिया आमंत्रित हैं। मैं इसलिए भी यह सब लिख रहा हूं कि मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री आदरणीय (अब स्वर्गीय) श्री अटल विहारी बाजपेई मेरे पडोसी थे और अमिताभ सहारा श्री के साथ उनसे मिलने को व्याकुल थे। उनके इर्द गिर्द चक्कर पर चक्कर लगा रहे थे। अटल जी ने मुझे आंखों से इशारा किया। अमिताभ बच्चन की बाकी कहानी फिर कभी, सादर, गोलेश स्वामी।

प्रद्युम्न तिवारी की इस पर प्रतिक्रिया देखें-

अमिताभ का संपूर्ण आकलन कुछ दुर्लभ सा लगता है। अमिताभ एहसान फरामोश हो सकते हैं, अकड़ू और खुदगर्ज हो सकते हैं। हो सकता है कि अमिताभ में अवगुण ही अवगुण हों, लेकिन सत्य यह भी है कि इस आदमी में ऐसा कुछ तो है ही कि कभी सकारात्मक और कभी नकारात्मक भूमिका में इसे ही याद किया जाता है। कोई कहता है कि 8-10 फिल्मों को छोड़ दें तो अमिताभ कहीं नहीं ठहरते। अमिताभ ठहरें इसलिए कि उन्होंने देश के मूल की नब्ज पकड़ी। यह काम भी विरले ही करते हैं।

अब आइये नब्ज पर। अपना मूल अमिताभ फिल्मों में भी जाहिर करते रहते हैं। केबीसी के माध्यम से इस अभिनेता ने अपनी बोली बानी से हिंदी को जो मान दिया, वह बड़े बड़े साहित्यकार भी खून पसीना बहा कर और व्यापक अध्ययन तथा मन और मस्तिष्क का इस्तेमाल करके ही कर पाते हैं। कहने का तात्पर्य साहित्यकार को छोटा करना नहीं, बल्कि सहजता से समझा देने के स्तर पर है। अमर सिंह से तुलना करके किसी की मित्रता की मिसाल और फरामोशी की बात करना मैं बेमानी समझता हूं। जैसी करनी वैसी भरनी।
अमर सिंह की मित्रता और अहसानों की बात करनी तो तुलना नेता जी के साथ करनी चाहिए न कि अमिताभ के साथ। अमर ने उनके लिए किया और अमिताभ ने अहसान फरामोशी की तो अंतिम समय में अमर सिंह ने अमिताभ के प्रति क्षमा भाव क्यों व्यक्त किये?

किसी का आकलन करने से पहले उसके हर पहलू पर गहन जानकारी जरूरी है। मैं भलीभांति ढंग से अमिताभ की समालोचना और आलोचना कर सकता हूं लेकिन प्रासंगिक अवसर पर। बहस छिड़ ही गयी है तो इस पर वे लोग समालोचना या आलोचनात्मक लेख लिखें। पर घदू को छोड़कर अन्य टिप्पणीकारों को शायद ही यह रास आये। किसी की आलोचना, वह भी किसी एक दो पहलू को लेकर की जाये, मैं इसका हिमायती नहीं हूं। अमिताभ की सबसे बड़ी कमी इनमें से किसी ने नहीं की। सिर्फ अवगुण देखा। जिस व्यक्ति में सौ गुण होते हैं, उसमें एक अवगुण भी होता है और जिसमें सौ अवगुण होते हैं, उसमें एक गुण भी होता है। हमें क्या लेना है, यह हमारे सोच पर निर्भर करता है। जरूरी नहीं कि सब मेरी बात से सहमत हों। तर्क और वितर्क चलते रहने चाहिए

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