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सही ग्राहक पकड़ना है तो अंग्रेज़ी अख़बार में विज्ञापन दो!

प्रकाश के रे-

आयकर रिटर्न भरने, ऑनलाइन पिज़्ज़ा मँगाने और शाम को टीवी देखनेभर से मध्य वर्ग नहीं हुआ जाता है, भंते!

कल चार अंग्रेज़ी अख़बारों ने विज्ञापनदाताओं को लुभाने के लिए एक विज्ञापन दिया. यह एक भयावह विज्ञापन है. इसमें देश की भारी विषमता दिखती है और यह संदेश दिखता है कि सही ग्राहक पकड़ना है तो अंग्रेज़ी अख़बार में विज्ञापन दो क्योंकि जो ख़रीद सकता है, वह अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ता है. इसके आँकड़ों को देखते हुए यह भी याद आया कि देश में वास्तव में कोई मध्य वर्ग नहीं है.

जिसे मध्य वर्ग कहा जाता है, वह वित्तीय व बाज़ार संस्थाओं के अनुसार मध्य आय वर्ग है. किसी भी मार्केट दस्तावेज़ में मध्य वर्ग श्रेणी नहीं होती क्योंकि असल में यह एक सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक श्रेणी है.

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जिनकी मासिक आय पचास हज़ार से अधिक है, वे सबसे अधिक वेतन पाने वाले एक प्रतिशत लोगों में और जिनकी मासिक आय पच्चीस हज़ार से अधिक है, वे सबसे अधिक वेतन पाने वाले दस प्रतिशत लोगों में हैं. लगभग अस्सी प्रतिशत कामगारों की मासिक आय दस हज़ार रुपए से कम है.

अस्सी करोड़ लोगों की क्रय शक्ति अत्यंत न्यून होने के कारण उन्हें निशुल्क राशन दिया जा रहा है. पचास करोड़ अति वंचितों को निशुल्क चिकित्सा बीमा दिया जा रहा है. केंद्र एवं राज्य सरकारों के ऐसे कई कार्यक्रम चल रहे हैं. चूँकि आय वाले बहुत कम लोग हैं, इसलिए आयकर देने वाले भी बहुत कम हैं.

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देश की राजधानी दिल्ली में अपनी ज़मीन पर बने मकान में केवल सात प्रतिशत रहते हैं. घर का हिसाब लें, तो एक तिहाई दिल्ली किराये पर रहती है. मेरा मानना है कि यह आँकड़ा 60 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए. दिल्ली में केवल 19 प्रतिशत परिवारों के पास कार, कम्प्यूटर, एसी, टीवी और रेफ़्रीजेरेटर (सभी पाँच) हैं. देश के लिए यह आँकड़ा मात्र तीन प्रतिशत है.

मध्य वर्ग के निर्धारण के कुछ आधार यूँ हैं- सबसे पहले शीर्ष के पाँच प्रतिशत को हटा दें. यह करते हुए ऊपर के विवरण देखें. फिर देखें कि कितने लोगों के पास शहरी क्षेत्र में ठीक-ठाक घर है. फिर कितने लोग हैं, जो भविष्य में निवेश कर सकते हैं. यहाँ निवेश से मतलब वित्तीय नहीं है. कितने लोग हैं, जो निश्चिंत होकर स्वतंत्र रूप से व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और नैतिक निर्णय ले सकते हैं.

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