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सुख-दुख

सोचता हूं, बंद कर दूं, लिखना पूरी तरह…

कुछ दिन पहले बस यूं ही लिख दिया था, आज बस यूं ही सोचा कि आप सबसे ये शेयर भी कर लिया जाए. नहीं तो कल आप कहेंगे – पहले क्यों नहीं बताया?

डरते डरते लिख रहा हूं
लिखते लिखते डर रहा हूं

डर ये मेरा बेनींव नहीं है
सौदागरों ने डाली हैं ये नींवें

सौदागर वो सपनों के हैं कपड़ों के
या मौत के
याकि कोयले या तेल के
पता नहीं.

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p style="text-align: right;"><span style="font-size: 12pt;">कुछ दिन पहले बस यूं ही लिख दिया था, आज बस यूं ही सोचा कि आप सबसे ये शेयर भी कर लिया जाए. नहीं तो कल आप कहेंगे - पहले क्यों नहीं बताया?</span></p> <p style="text-align: center;"><span style="font-size: 12pt;">डरते डरते लिख रहा हूं </span><br /><span style="font-size: 12pt;">लिखते लिखते डर रहा हूं</span></p> <p style="text-align: center;"><span style="font-size: 12pt;">डर ये मेरा बेनींव नहीं है </span><br /><span style="font-size: 12pt;">सौदागरों ने डाली हैं ये नींवें</span></p> <p style="text-align: center;"><span style="font-size: 12pt;">सौदागर वो सपनों के हैं कपड़ों के </span><br /><span style="font-size: 12pt;">या मौत के </span><br /><span style="font-size: 12pt;">याकि कोयले या तेल के</span><br /><span style="font-size: 12pt;">पता नहीं.</span></p>

कुछ दिन पहले बस यूं ही लिख दिया था, आज बस यूं ही सोचा कि आप सबसे ये शेयर भी कर लिया जाए. नहीं तो कल आप कहेंगे – पहले क्यों नहीं बताया?

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डरते डरते लिख रहा हूं
लिखते लिखते डर रहा हूं

डर ये मेरा बेनींव नहीं है
सौदागरों ने डाली हैं ये नींवें

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सौदागर वो सपनों के हैं कपड़ों के
या मौत के
याकि कोयले या तेल के
पता नहीं.

जानना चाहता हूं

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कौन पढ़ता है
कौन छिपता है
कौन बचता है
कौन डरता है
मेरे लिखने से.
कौन डराता है
मेरे लिखने को.

वो आम है या खास
पेशेवर या मज़दूर
पानवाला, चायवाला या परचूनवाला
या हैं वो सौदागर, पढे लिखे पेशेवर
राजा या रानी
इंजीनियर या डॉक्टर

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या है ये सब एक साथ

डराने को निकले हैं
जानवरों सा झुंड बनाकर
झूठ का परचम लहराकर
नफरत का बक्सा उठाकर

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पूछता हूं जब कभी भी
जब किसी से
दौड़ जाता है वो पल भर
डर की उस गली में.

फिर निकल कर
पूछ लेता है केबीसी के कुछ सवाल
या बिगबॉस के कंटेस्टेट्स के नाम
और बिला जाता है
मेरा सवाल.

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डर रहे हैं सब
जवाब देने से भी.
इसीलिए
डर लगने लगा है
लिखने में अब
सोचता हूं बंद कर दूं
लिखना पूरी तरह

पर कोई सांस लेना
कैसे बंद कर सकता है भला.

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अरुण अस्थाना, वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली


20 अक्टूबर को अभी केंद्र सरकार ने सभी राज्यो को एक सर्कुलर भेज कर पत्रकारों की सुरक्षा सुनिचित करने के लिए निर्देश दिए थे कि बीती रात झारखंड पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस के सहयोग से ग़ज़िआबाद में वरिष्ठ पत्रकार एवं एडिटर गिल्ड के सदस्य श्री विनोद वर्मा को जिस अंदाज में हिरासत में लिया वो लोक तंत्र पर सीधा हमला है, जिसकी कड़े शब्दों में निंदा करता हूँ। वर्मा की गिरफतारी से अधिनायक वाद की बू आ रही है, और किसी भी सरकार को यह नही भूलना चाहिए कि कांग्रेस शाशन द्वारा मीडिया का गाला घोटने की कुचेस्टा की गई थी, जिसके परिणाम का इतिहास गवाह है।

-प्रमोद गोस्वामी
वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ

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विनोद वर्मा पत्रकार है कोई आतंकी नहीं जो छतीसगढ़ की पुलिस ने मात्र एक सीडी के लिए गिरफ्तार कर लिया… बीबीसी और अमर उजाला में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे पत्रकार विनोद वर्मा को छत्तीसगढ़ पुलिस ने देर रात उनके घर से गिरफ्तार कर लिया है… उन्हें ‘रंगदारी मांगने’ और ‘जान से मारने की धमकी देने’ के बेजां आरोपों में गाज़ियाबाद स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया…  पत्रकार वर्मा का इस तरह से गिरफ्तार किया जाना निंदा योग्य विषय है… हम सभी के लिए यह जानना जरूरी है कि ये कार्रवाई छतीसगढ़ सरकार के इशारे पर हुई है… अखिल भारतीय पत्रकार मोर्चा  सरकार के इस कृत्य की निंदा करता है… पत्रकार वर्मा को रिहा नहीं किया तो सभी पत्रकार छतीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ देंगे… उन्होंने कहा कि आज के इस दौर में जो पत्रकार सही में सच्ची पत्रकारिता कर रहे हैं, उनकी कलम को दबाया जा रहा है… उनको मीडिया संस्थानों से निकाला जा रहा है… उन पर हमला हो रहा है… यह राष्ट्रहित के लिए घातक है क्योकि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है..

-प्रदीप महाजन
राष्ट्रीय अध्यक्ष
अखिल भारतीय पत्रकार मोर्चा     
दिल्ली

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