Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

अतीक की असली कहानी (3) : बीजेपी वाले ‘चाचा’ त्रिपाठी जी का वरदहस्त!

मोहम्मद ज़ाहिद-

नवंबर 1989 में अतीक अहमद पहली बार इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर विधायक बने तो उनके दामन में चांद बाबा की खौफनाक हत्या के ऐसे आरोप थे जो जनता के मनमस्तिष्क में घर गये मगर प्रशासन ने कभी उन्हें इसके लिए आरोपित नहीं किया।

विधायक बनते ही अतीक अहमद ने अपने पिता को तांगा चलाने से मना किया और चकिया तिराहे पर ही अपने आफिस के सामने लकड़ी चीरने का एक कारखाना खरीद कर दे दिया जहां उनके पिता बैठने लगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद का विधायक के तौर पर यह पहला कार्यकाल मात्र दो साल का ही रहा और इन दो सालों में खूंखार अतीक अहमद ने अपनी छवि तोड़ कर इलाहाबाद के तमाम बड़े और इज्ज़तदार लोगों से अपने व्यक्तिगत रिश्ते बनाए दोस्ती की जिसमें इलाहाबाद के एक सबसे बड़े होटल व्यवसाई सरदार जी थे तो एक भगवा राष्ट्रवादी पार्टी के उस समय के सबसे बड़े नेताओं में से एक नेता भी थे जो बाद में विधानसभा अध्यक्ष और कई राज्यों के राज्यपाल बने। अतीक अहमद उन्हें चाचा तो वह अतीक अहमद को बेटा मानते थे।

जनता के बीच अपनी खौफनाक छवि तोड़ने के लिए उन्होंने मंसूर पार्क में कैनवास क्रिकेट टूर्नामेंट करवाए और मंहगे मंहगे प्राइज़ मनी देकर युवाओं को खुद से जोड़ लिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल जब धन कमाने के लिए शूरू किया तब उन्होंने ज़मीन या बालू खनन में हाथ ना डालकर रेलवे के स्क्रेप को खरीदने का टेंडर डालना शुरू किया। करवरिया बंधुओं से एक सामंजस्य बना और करवरिया बंधू अतीक अहमद और अतीक अहमद करवरिया बंधुओं के रास्ते में नहीं आते थे।

रेलवे के इस काम में उन्होंने अकूत दौलत कमाई, ऐसा पब्लिक परसेप्शन है कि रेलवे के स्क्रेप में सोल्डरिंग के लिए प्रयोग में आने वाले चांदी और कापर वगैरह भी भारी मात्रा में स्क्रेप के साथ आ जाते थे। अतीक अहमद की ट्रकें दिन रात स्क्रेप ढोती रहतीं थीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देश और प्रदेश में राम मंदिर आंदोलन शुरू हो चुका था और इसी दौर में शहर के सभी फैसले लेने वाले कांग्रेस के शहर उत्तरी विधायक का सितारा गिरने लगा तथा भगवा राष्ट्रवादी पार्टी के नेताओं का सितारा बुलंद होने लगा।

राष्ट्रीय स्तर पर मार्गदर्शक मंडल में गये इलाहाबाद के एक और नेता का अतीक अहमद के साथ बेहद करीबी संबंध था , बाकी चाचा और‌ बेटे का रिश्ता तो‌ प्रगाढ़ होता चला गया‌ , इतना कि अतीक अहमद इन्हें मौके मौके पर मंहगे मंहगे तोहफे देते रहते जो इलाहाबाद में समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोरतीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इनकी बेटी की शादी में अतीक अहमद ने अपने समय की सबसे महंगी कार गिफ्ट की थी।

इन्हें इलाहाबाद में अतीक अहमद का गाडफादर कहा जाता था जिनके रहते अतीक अहमद सदैव सुरक्षित रहे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खैर , दो सालों में अतीक अहमद ने अपने नेटवर्क को खड़ा किया और हर मुहल्ले और गांव कस्बे के असरदार लोगों को अपने साथ किया जो शहर पश्चिमी विधानसभा के विभिन्न क्षेत्रों में उनका चुनाव संचालन और मतदान तक की जिम्मेदारी उठाने लगे।

ऐसे लोग अतीक अहमद के करीबी बन कर चुनाव के बाद ज़मीन वगैरह का छोटा बड़ा कारोबार करते और अतीक अहमद रेलवे के स्क्रेप का खरीद करते और भेजते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस तरह अतीक अहमद का पूरा साम्राज्य धीरे धीरे खड़ा और बड़ा होने लगा जिसमें सबकी कमाई होने लगी‌ और लोग अतीक अहमद की छत्रछाया में आने लगे।

सबका काम धाम चलता रहा, अतीक अहमद के पास जब पैसे आ गये तो उन्होंने उसे ग़रीब लोगों में लुटाना‌ शुरू कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कोई भी गरीब उनके घर या आफिस से खाली नहीं गया , क्या हिन्दू क्या मुसलमान, क्या मंदिर क्या मस्जिद, क्या मोहर्रम क्या दशहरा, क्या दुर्गा पूजा के पंडाल, अतीक अहमद ने दिल खोलकर पैसे बांटे।

इलाहाबाद में 5 राम लीला कमेटी है , पजावा , पथरचट्टी, कटरा , सिविल लाइंस और चौक।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस जमाने में 1989 से अगले 15-18 सालों तक अतीक अहमद के दिए चंदे से ही राम लीला कमेटी दशहरे का आयोजन करती थी। रामलीला के मंचन पर अतीक अहमद के नाम के जयकारे लगाते, जो जुलूस निकालता उसमें पहले रथ पर अतीक अहमद के बड़े बड़े कट आऊट खड़ा कराकर ऐलान कराया जाता कि हमेशा की तरह इस बार भी रामलीला का मंचन और‌ रथयात्रा अतीक भाई के सौजन्य से हो रही है। दुर्गा पूजा के पंडाल अतीक अहमद के पैसे से सजने लगे और इसके दानकर्ताओं में अतीक अहमद का नाम प्रमुखता से लिखा जाता था।

शहर में जिसे चंदा चाहिए अतीक अहमद के पास पहुंच जाता था , कोई बिमार है तो मदद के लिए अतीक अहमद के पास पहुंच जाता, कोई गरीब है तो अतीक अहमद के पास पहुंच जाता, गरीब की बेटी की शादी है लोग अतीक अहमद के यहां मदद के लिए पहुंच जाते थे, कार्ड लेकर अतीक अहमद रख लेते और अपने लोगों से इस परिवार की आर्थिक स्थिति का पता लगवाते, यदि वाकई ज़रूरत मंद है तो पूरी शादी का खर्च कर देते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इलाहाबाद के एक मशहूर टीवी फ्रिज के दुकानदार से शादी का पूरा इलेक्ट्रॉनिक सामान ऐसे गरीब बेटियों की शादी में भेजवाते रहते जिसमें टीवी फ्रिज रेफ्रिजरेटर इत्यादि सामान होते थे, कभी दिन में दो सेट तो कभी 5 सेट और उस दुकानदार को बुलाकर पाई पाई का पेमेंट करते।

क्या इलाहाबाद विश्वविद्यालय और क्या डिग्री कालेज के चुनाव, हर उम्मीदवार अतीक अहमद से चंदा मांगने पहुंच जाता, अतीक अहमद हिन्दू मुस्लिम नहीं देखते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आज अतीक अहमद को राक्षस बनाने में जुटा मीडिया उस दौर में उन्हें मसीहा बना कर फ्रंटपेज का विज्ञापन बटोरता था , अतीक अहमद की प्रशंसा में कई कई पेज भरे रहते।

अतीक अहमद के घर का दरवाज़ा सबके लिए हमेशा खुला रहता था , अगर फरियादी हिंदू है तो अतीक अहमद की तत्परता देखते बनती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद के सबसे विश्वसनीय लोगों में हिंदू विशेषकर ब्राह्मण लोग ही थे , उनके वकील दया शंकर मिश्र और विजय मिश्र से लेकर उनका वित्तीय और कारोबारी साम्राज्य संभालने वाले एक मिश्रा जी ही थे। मुसलमान लोग तो बस रायफल उठाए उनके काफिले में पीछे पीछे चलते थे।

उनकी हत्या के बाद उनके घर के हिंदू पड़ोसियों का उनके बारे में क्या कहना है आप सुन सकते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद का पहला कार्यकाल मात्र 2 साल का ही था और जनता दल के टूटने के बाद ही मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई‌ और मुलायम सिंह यादव ने “समाजवादी पार्टी” की स्थापना की।

1991 में प्रचंड राम मंदिर आंदोलन की लहर में विधानसभा चुनाव हुआ और अतीक अहमद इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पहले से अधिक वोटों से जीत दर्ज की और 36424 वोट पाकर बीजेपी उम्मीदवार रामचंद्र जायसवाल को 15743 वोटों से हरा दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो समझिए कि राम मंदिर आंदोलन और लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से उपजे सांप्रदायिक वातावरण में भी अतीक अहमद इलाहाबाद शहर पश्चिमी से दूसरी बार निर्दलीय निर्वाचित हुए तो वह केवल मुसलमानों का वोट पाकर तो विजयी नहीं हुए होंगे जबकि कुल पड़े मतों में से अतीक अहमद ने 51.26 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सफलता हासिल की थी।

इसी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 415 में से 221 सीट जीत कर कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई और कल्याण सिंह सरकार में इलाहाबाद पुलिस ने 1992 में अतीक अहमद के आरोपों की सूची घोषित की और बताया कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। हालांकि अतीक अहमद के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

चाचा-भतीजा की जुगलबंदी के कारण अतीक अहमद पर पुलिस कार्रवाई नहीं हो सकी और अतीक अहमद का साम्राज्य और हनक बढ़ता गया और राष्ट्रवादी पार्टी के ही वरिष्ठ नेताओं की छत्रछाया में अतीक अहमद शहर में अपनी पकड़ बनाते चले गए।

6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद की‌ शहादत के बाद उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गयी और‌ विधानसभा भंग कर दी गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पूरे देश और प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव फैल गया मगर इलाहाबाद इससे अछूता रहा क्योंकि तब अतीक अहमद खुली जीप में अकेले पूरे‌ शहर का दौरा करके‌ लोगों को शांत बनाए रखने में सफल हुए। क्या हिन्दू मोहल्ले क्या मुस्लिम मोहल्ले अतीक अहमद बेधड़क सबके बीच खुली जीप से जाकर विश्वास बहाल करने में सफल हुए।

1993 में फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ और अतीक अहमद फिर‌ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जनता के सामने थे और बाबरी मस्जिद की शहादत और राम मंदिर और सांप्रदायिकता से भरे राजनैतिक वातावरण में अतीक अहमद ने निर्दलीय के रूप में जीत का क्रम जारी रखा और इस बार कुल 49.85 प्रतिशत वोट प्राप्त कर बीजेपी के प्रत्याशी तीरथराम कोहली को शिकस्त दी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इन तीनों बैक टू बैक जीत के बाद अतीक अहमद इलाहाबाद के बेताज बादशाह बन चुके थे‌ । राज्य में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के “मिले मुलायम कांशीराम” गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश विधानसभा त्रिशंकु चुनी गई, इसमें भाजपा को 177 , समाजवादी पार्टी को 109 बहुजन समाज पार्टी को 67 सीटें प्राप्त हुईं , अर्थात कुल 176 सीट ही प्राप्त हुई।

और इसी कारण निर्दलीय अतीक अहमद महत्वपूर्ण हो गये , बसपा तथा निर्दलीयों के समर्थन से 04 दिसंबर 1993 को मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब सत्ता और ताकत अतीक अहमद के इर्दगिर्द घूमने लगी , मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से सीधे संबंध के कारण इलाहाबाद और प्रदेश का पुलिस प्रशासन उस दौर में अतीक अहमद के सामने नतमस्तक था , अतीक अहमद की सहमति के बिना इलाहाबाद में कुछ हो जाए संभव ही नहीं था।

जिलाधिकारी और कप्तान हुकूम बजाने के लिए उनके दरवाजे पर खड़े रहते और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जब भी इलाहाबाद आते तो अतीक अहमद के मेहमान होते थे। इससे अतीक अहमद की हनक और बढ़ती चली गयी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मगर इस सबके बावजूद अतीक अहमद ने तीन काम बखूबी किया, पहली यह की लोगों की मदद करने का काम जारी रखा और खुद की छवि मसीहा की बना ली और दूसरे ज़मीन और किसी बहन बेटी पर गलत नज़र से खुद को दूर रखा और तीसरे किसी बड़ी शख्सियत से कभी टकराव मोल नहीं लिया।

लोगों की मदद करने का जुनून ऐसा था कि इसी दौर में एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार वह अतीक अहमद के पास इलाहाबाद के एक नामी स्कूल में अपने भतीजे के एडमिशन के लिए गया था औ वह एक गरीब हिन्दू महिला जो एक डॉक्टर का पर्चा लिए उनके पास आई उससे बात कर रहे थे, अतीक अहमद ने उसे उस दौर में ₹10 हज़ार दिए और ज़रूरत पड़ने पर फिर आकर लेने को कहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वह महिला जैसे ही उनके आफिस से निकली सामने लकड़ी की टाल पर बैठे अतीक अहमद के पिता ने उसके हाथ से पैसे छीने और उसमें से ₹100/- देकर उल्टा सीधा बोलकर उस महिला को भगा दिया।

अतीक अहमद को जब यह बात पता चली तो वह गुस्से से वहीं पड़ी कुर्सी उठाकर अपने पिता के ऊपर पटक दिए और उनके हाथ से पैसे लेकर उस महिला को दे दिया और कहा कि उनके द्वारा लोगों को मदद करते वह देख नहीं सकते तो घर बैठें यहां बैठने की ज़रूरत नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सैकड़ों लोग गवाह थे कि उन्होंने अपने पिता को आफिस आने से रोक दिया और उनके पिता फिर कभी उनके आफिस नहीं आए।

1993 से 1995 के बीच अतीक अहमद लोगों के लिए मसीहा बनकर उभरे, क्या हिन्दू क्या मुसलमान, लोग इज्ज़त से उनको “भाई” कहने लगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इलाहाबाद में “भाई” का मतलब “अतीक अहमद” हो गया।

फिर 2 जून 1995 मायावती ने मुलायम सिंह यादव सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और मुलायम सिंह यादव सरकार अल्पमत में आ गयी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव किए जाने लगे। ऐसे में अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए,जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं।

2 जून 1995 के दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ। 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं कि तभी दोपहर करीब तीन बजे कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और विधायकों की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस दिन एक समाजवादी पार्टी के विधायकों और समर्थकों की उन्मादी भीड़ ने सबक सिखाने के नाम पर दलित महिला नेता की आबरू पर हमला किया‌ और इसमें अतीक अहमद का नाम सबसे अधिक उछला।

यह राजनैतिक जीवन में अतीक अहमद की पहली और सबसे बड़ी गलती थी , जो अतीक अहमद असरदार लोगों से दोस्ती के लिए जाने जाते थे उनका नाम मायावती के चीरहरण करने में सबसे उपर था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती कई बार मंचों से ऐलान कर भी चुकी हैं कि अतीक अहमद ने उन्हें गेस्ट हाउस में मारने की साजिश रची थी।

कहते हैं कि तब गेस्ट हाउस में मायावती ने भाग कर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। गेस्ट हाउस की बिजली पानी काट दी गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

4 घंटे बाद जब कमरा खुला तब उत्तर प्रदेश की राजनीति बदल चुकी थी और भारतीय जनता पार्टी ने मायावती को समर्थन देने का ऐलान कर दिया।

अगले ही दिन मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और अतीक अहमद उनके रडार पर आ गये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती ने अपने शासन काल में अतीक पर कानूनी शिकंजा कसा और उसकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाया और तमाम तरह की बड़ी कार्रवाई हुई। यूपी में मायावती की सरकार में अतीक हमेशा जेल में ही रहे।

नैनी जेल अतीक अहमद का कार्यालय बन गया जहां लोग बेधड़क अतीक अहमद का नाम बताकर अंदर चले जाते थे, चुंकि वह विधायक थे इसलिए वीआईपी मालवीय कक्ष ही उनका बैरक था वहीं अतीक अहमद का दरबार लगता था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती के शासनकाल में सबसे अधिक मुकदमे दर्ज हुए थे जिसमें एक दिन में 100 मुकदमे भी दर्ज कराए गए जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्क्वैश कर दिया और तमाम तमाम मुकदमे में अतीक अहमद बाईज्जत बरी भी हुए जिनमें अख्तर हत्याकांड, नीटू सरदार हत्या कांड , बंगाली होटल की रंगदारी इत्यादि शामिल थी।

चाचा का वरदहस्त जारी था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मगर बसपा जब जब सत्ता में थी तब अतीक अहमद का ऑफिस गिरवाया गया , सिविल लाइंस जैसे पाश एरिया में उनका शापिंग कांप्लेक्स गिराया गया और उसकी संपत्तियों को जब्त किया गया।

और यहीं से अतीक अहमद कानूनी शिकंजे में फंसते गये , अतीक अहमद की बड़ी गलतियों में गेस्ट हाउस कांड सबसे बड़ी गलती थी। उन्होंने राजनीतिक आवेश से बचना चाहिए था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती सरकार से भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण उत्तर प्रदेश में फिर राष्ट्रपति शासन लगा और इसी सबके बीच अतीक अहमद ने 6 अगस्त 1996 को एक मस्जिद में उत्तर प्रदेश पुलिस के एक रिटायर्ड पुलिस कांस्टेबल मोहम्मद हारून की बेटी शाइस्ता परवीन से रिश्ते को कुबूल किया और बेहद सादगी से निकाह कर लिया।

हज़ारों गरीब की शानदार शादियां करवाने वाले अतीक अहमद की शादी इतनी सादगी वाली थी कि किसी को भनक भी नहीं लगी , ऐसा लोग कहते हैं कि अपनी शादी में होने वाले खर्च को बचाकर उन्होंने उसी पैसे से तमाम गरीब बेटियों की शादी करा दी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

साथ ही साथ इलाहाबाद में हर होते अपराध में अतीक अहमद का नाम जुड़ता चला गया, हर होती हत्या पर पहली उंगली अतीक अहमद पर उठने लगी सिवाय सपा विधायक जवाहर पंडित की हत्या के आरोप के।

13 अगस्त 1996, शाम का वक्त स्थान सिविल लाइंस , इलाहाबाद, जब पूरा क्षेत्र एके-47 की गोलियों की गूंज से तड़तड़ा उठा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रतापपुर से विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की सफेद रंग की मारुति कार इलाहाबाद के सुभाष चौराहे से पत्थर गिरजाघर की तरफ बढ़ रही थी।

गाड़ी गुलाब यादव चला रहे थे और कल्लन यादव जवाहर के साथ पीछे वाली सीट पर बैठे थे। पीछे एक टाटा सूमो लगी थी। पैलेस सिनेमा के ठीक सामने एक तेज रफ्तार टाटा सिएरा आई और जवाहर पंडित की गाड़ी को ओवरटेक करते हुए सामने खड़ी हो गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पीछे वाली टाटा सूमो मारुति के एकदम बराबर खड़ी हो गई। सूमो से एके-47 हथियार लेकर निकला रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू और टाटा सिएरा से चार लोग श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला महाराज, कपिल मुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और उदयभान करवरिया।

मौला महाराज ने AK-47 लिए ‌वह जवाहर पंडित की गाड़ी के पास गए और ललकारते हुए कहा, “बाहर निकल जवाहर पंडित।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

धड़-धड़ गोलियां चलने लगीं। तीन लोग सिर्फ जवाहर पंडित पर गोलियां बरसा रहे थे। शहर के सबसे पॉश एरिए में ये पहला मौका था जब AK-47 तड़तड़ाई।

जवाहर पंडित के सिर से लेकर पांव तक गोलियां मारी गईं। सांसे थम गईं। अब गोलियां लगती तो जवाहर यादव की बॉडी 2 इंच ऊपर जंप कर जाती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

और बालू खनन में करवरिया बंधुओं को चुनौती दे रहे जवाहर पंडित को गोलियों से छलनी करके हत्या कर दी गई।

बाद में कपिल मुनि करवरिया बसपा से फूलपुर सांसद चुने गए, उनके भाई उदयभान करवरिया बारा से भाजपा विधायक और तीसरे भाई सूरजभान करवरिया भाजपा से एमएलसी बने।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बाद में इसी जवाहर पंडित की हत्या के जुर्म में इन सभी करवरिया बंधुओं को अदालत ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई।

सज़ा के बाद भाजपा ने उदयभान की पत्नी नीलम करवरिया को उसी सीट से विधानसभा का टिकट देकर विधायक बनाया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खैर, 1996 में फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ और मुलायम सिंह यादव ने अतीक अहमद को शहर पश्चिमी से समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार बना दिया और अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लगातार चौथी बार जीत हासिल किया।

1995 से 2003 तक अगले 8 साल में उत्तर प्रदेश राजनैतिक रूप से अस्थिर रहा , मायावती 3 बार , कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और राम प्रसाद गुप्ता मुख्यमंत्री बने जिसमें मायावती के काल में अतीक अहमद पर प्रशासन की नज़र टेढ़ी रही और जेल में ही रहे तो भाजपा की सरकारों में अतीक अहमद अपने राष्ट्रवादी चाचाओं के बदौलत जेल से बाहर रहे और उसी हनक के साथ अपने‌ दबदबे को कायम रखा।

इस बीच अतीक अहमद और 23 अगस्त 2003 को उत्तर प्रदेश के पुनः मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव के संबंध और प्रगाढ़ होते चले गए , मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के विस्तार के लिए अतीक अहमद के हनक और दबंगई का खूब प्रयोग किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस दौर में अतीक अहमद इलाहाबाद और इसके आसपास , राजा भैया प्रतापगढ़ और उसके आसपास, रमाकांत यादव आजमगढ़ और उसके आसपास,डीपी यादव पश्चिम में मुलायम सिंह यादव के प्रमुख स्तंभ थे।

यह कहने में संकोच ही नहीं कि मुलायम सिंह यादव की सबसे बड़ी ताकत यही लोग थे , इनके बदौलत ही वह समाजवादी पार्टी का विस्तार करते चुनाव जीतते और सरकार बनाते थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मगर अब तक अतीक अहमद ने बालू खनन में उतरकर ना तो करवरिया बंधुओं से दुश्मनी मोल ली ना ज़मीन के कामों में उतर कर अपने लोगों के काम में दखल दिया।

हालांकि अतीक अहमद अपराधों के तमाम आरोपों के साथ राजनीति की दुनिया में बड़ा नाम करते चले गए। किसी ने उनका उपयोग किया तो किसी ने उनसे प्रयोग करवाया और उनकी ऐसी दहशत फैली कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 10 न्यायधीशों ने उनके खिलाफ मुकदमे को सुनने से मना कर दिया और सुनवाई से खुद को अलग कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद पर हत्याओं और अन्य अपराधों के जितने भी आरोप थे‌ वह सब मुसलमानों की हत्याओं के ही थे जिसमें जग्गा से लेकर अख्तर इत्यादि की हत्याओं के थे।

इसमें अधिकतर लोग छोटे मोटे गुंडे थे या उनसे गैंग से दूर होकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए लग हुए अतीक अहमद के साम्राज्य को चुनौती दे रहे थे या अतीक की जान के दुश्मन थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

किसी गरीब या सामान्य आम इन्सान अतीक अहमद के अपराध की जद में कभी नहीं आया। बल्कि उनके लिए अतीक अहमद “भाई और मसीहा” ही रहे।

उनकी हत्या के बाद कुछ लोगों खासकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकीलों ने भास्कर से बातचीत की है उसे आप यहां पढ़ सकते हैं, लोगों को चुनाव के लिए पैसे देते और समझाते थे कि “ठीक है चुनाव लड़ लो जीत लो मगर मां बाप जउन काम से भेजे हैं वह करो और खूब पढ़ो।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतीक अहमद पर अब तक किसी भी एक हिंदू की हत्या या उनको प्रताड़ित करने का आरोप नहीं लगा था। इसके इतर उनका मददगार और मसीहा बनने का कार्यक्रम भी उसी तरह चलता रहा और लोगों की खूब मदद की।

इसी दौर में अतीक अहमद के भाई खालिद अज़ीम उर्फ अशरफ का नाम सुना जाने लगा , अशरफ के दोस्तों की बैठकी सिविल लाइंस के एक प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में होने लगी और साथ में अशरफ़ की वजह से बदनामियों ने अतीक अहमद का पीछा करना शुरू कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी सबके साथ 2004 में लोकसभा का चुनाव हुआ और देश में डाक्टर मनमोहन सिंह की सरकार बनी और रेलमंत्री बने लालू प्रसाद यादव।

शपथ लेते ही लालू प्रसाद ‌यादव ने घोषणा की कि रेलवे के स्क्रेप अब नीलाम नहीं किए जाएंगे, इसे गला कर रेल के पहिए बनाए जाएंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह अतीक अहमद के वित्तीय व्यवस्था पर अब तक की सबसे करारी चोट थी , अतीक अहमद का रेलवे स्क्रेप का आक्सन बंद हुआ और उनका वित्तीय साम्राज्य हिल गया।

जारी…

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक मोहम्मद ज़ाहिद इलाहाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनसे संपर्क [email protected] के ज़रिए किया जा सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement