Connect with us

Hi, what are you looking for?

गुजरात

बीबीसी की गुजरात डाक्यूमेंट्री के पहले पार्ट में है क्या… विस्तार से जानें

संजय कुमार सिंह-

बीबीसी की डाक्यूमेंट्री…. गुजरात दंगों पर इसके पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं, गुजरात दंगों के केवल एक दो घटनाओं पर आधारित राहुल ढोलकिया की फिल्म “परजानिया” तो भारत के राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत तक की जा चुकी है। फिर BBC की इस डाक्यूमेंट्री पर इतना हो हल्ला क्यों ? क्योंकि दो एपीसोड की यह डाक्यूमेंट्री वर्तमान भारत में केंद्र सरकार द्वारा किए गए मुस्लिम विरोधी कार्यवाही और‌ दमन का कच्चा चिट्ठा है और सारे मामलों को संकलित करके वह 60 मिनट में रख देती है।

इस डाक्यूमेंट्री का पहला एपिसोड तो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2014 तक के मुस्लिम विरोधी कामों का लेखा जोखा है , दूसरा एपिसोड उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद मुसलमानों के खिलाफ उनके फैसलों का लेखा जोखा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दरअसल केंद्र सरकार को समस्या यह है कि BBC का पहला एपिसोड डाक्यूमेंट्री गुजरात दंगों को सबूतों के साथ संपुर्णता में समेटे हुए डाक्यूमेंट के रूप में कंपाईल है।

दरअसल 28 फरवरी 2002 को 4 ब्रिटिश नागरिक शकील ,सईद दाऊद, उनका 18 साल का भतीजा इमरान और मोहम्मद असवत भारत घूमने आए थे और आगरा से ताजमहल देखकर कार से गुजरात आ रहे थे कि दंगाईयों ने उनपर आक्रमण कर दिया। जिसमें शकील, इमरान और असवत मारे गए। सईद दाऊद किसी तरह बच गये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारत में मौजूद ब्रिटिश उच्चायोग ने स्वतन्त्र तरीके से इसकी जांच कराई थी , ब्रिटेन के तत्कालीन गृहमंत्री जैक स्ट्रा जांच के इन मामलों में शामिल थे। उसी जांच के कुछ सबूत डाक्यूमेंट्री में दिखाए गए हैं।

डाक्यूमेंट्री मैंने नहीं देखी पर जैसा कि सुनने में आया है कि इसमें गोधरा की घटना से लेकर हिरेन पांड्या, बाबू बजरंगी,गोरधन झडफिया, प्रवीण तोगड़िया , भाजपा नेता भट्ट की भूमिका को सबूतों के साथ रेखांकित कर दिया गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिखाया गया है कि जब गुजरात के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री हिरेन पांड्या गुजरात दंगों का सच जांच एजेंसी को बताने ही वाले थे तो कैसे उनकी हत्या कर दी गई।

तमाम अधिकारियों का इंटरव्यू है कि कैसे 3 दिनों के लिए प्रशासन को निष्क्रिय रहने का मौखिक आदेश दिया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

संजीव भट्ट से लेकर तीस्ता सीतलवाड के साथ सरकार की दमनात्मक कार्रवाई को रेखांकित किया है तो पूर्व सांसद एहसान जाफरी के गुलबर्गा सोसायटी के उस घर में जाकर छिपे 68 लोगों की कैसे हत्या की गयी इसका पूरा मौखिक सीन ही क्रिएट कर दिया है।

उसी जगह ऐसे गवाहों को BBC ने सामने लाकर इंटरव्यू किया कि कैसे उस मुहल्ले के लोग डर कर एक पूर्व सांसद एहसान जाफरी के घर में मदद की आस में आकर छिपे। एहसान जाफरी तमाम अधिकारियों को फोन करते रहे कोई मदद नहीं मिली। अंततः राज्य के तत्कालीन सत्ता प्रमुख को मदद के लिए फोन किया तो उन्हें गंदी गंदी गालियां मिलीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अंततः एहसान जाफरी अपने टेरिस पर आए और दंगाईयों से कहा कि मुझे मार डालो मगर घर में मौजूद सभी को छोड़ दो। एहसान जाफरी उस भीड़ में अकेले गये और कैसे उनकी विभत्स हत्या की गई और फिर उन 68 लोगों को भी मार दिया गया।

परजानिया में भी थोड़ा बहुत यह सब दिखाया गया है मगर परजानिया कितने लोगों ने देखा ? शायद बेहद कम।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खैर सुनी सुनाई बातों पर मैं तब तक यकीं नहीं करता जबतक कि डाक्यूमेंट्री नहीं देखता , और सरकार के प्रतिबंध के निर्णय के समर्थन के कारण देखूंगा भी नहीं।

बीबीसी की डाक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित करने का असर यह हुआ कि कल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इस डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गयी तथा अमेरिका और ब्रिटेन तक को बयान देना पड़ रहा है और व्हाट्स ऐप तथा इनबॉक्स के माध्यम से यह डाक्यूमेंट्री करोड़ों करोड़ लोगों तक पहुंच चुकी है। और अब लोगों को BBC के दूसरे एपिसोड का इंतजार है जो प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी राज में उनके मुस्लिम विरोधी खेल का लेखा जोखा है।
पहला एपिसोड तो केवल दूसरे एपिसोड का आधार है , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का असली रिपोर्ट तो दूसरे एपिसोड में है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mohd Zahid की पोस्ट का अंश। जिनने फिल्म देखी है उनका कहना है कि, फिल्म की प्रस्तुति ऐसी है कि बिना कहे सब कुछ कह देती है। फिल्म जो नहीं बताती है उसे लोग जानते हैं। जैसे किस मामले में गवाह हिरेन पंड्या थे, उनकी रहस्यमयी मौत हो गई और अदालत में क्या हुआ। तीन दिन दंगाई उधम मचाते रहे, आरोप है कि मुख्यमंत्री ने कहा था कि गुस्सा निकालने दो (या ऐसा ही कुछ) और जिसने इसकी गवाही दी वो जेल में है। उसकी बेटी से बात-चीत भी है। बाकी तथ्य है कि मुख्यमंत्री इस पर सवाल पूछने से नाराज हो जाते हैं और इंटरव्यू छोड़ चुके हैं। जो जनता जानती है कि जज लोया की मौत हार्ट अटैक से हुई वो ये भी जानती है कि उनके पास किसका मामला था और वे कितना कायदे से तारीखों पर उपस्थित होते थे या एक मामले में जिन जज साब ने अनुकूल फैसला दिया उन्हें क्या ईनाम मिला। फिर भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बोलने और उसकी चिन्ता करने की योग्यता तो सिर्फ मंत्री और सरकार को है। नागरिकों का क्या? इसलिए फिलहाल इतना ही।

बीबीसी पर भरोसा करने वाले अब क्यों नाराज हैं?

Advertisement. Scroll to continue reading.

अंग्रेजों से माफी मांगने वाले, उनके समर्थक और साठ साल नाक रगड़ने वालों के सत्ता में होने का हासिल अगर यह है कि कुछ लोग अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता से नहीं उभरे हैं तो यह किसके बारे में है? शासितों के बारे में है तो सोचना शासकों को है कि उनका शासन औपनिवेशक है?

सत्ता में नहीं थे तो बीबीसी पर भरोसा था अब बीबीसी सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करता दिख रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर भारत में अभी भी यह कहा जा रहा है कि कुछ लोगों को बीबीसी सुप्रीम कोर्ट से ऊपर लगता है तो उसे क्या कहा जाए जो सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के लिए कंधे तलाशता है और दावा करता है कि चुनाव जीतने वाला ही जनमत का प्रतिनिधित्व करता है। चुनाव जीतने वाले को मनमानी का अधिकार चाहिए?

पहले दूरदर्शन, आकाशवाणी पर विश्वास नहीं था। अब बीबीसी का हाल आप जानते हैं। तो एएनआई का विकास देखिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement