नवनीत चतुर्वेदी-
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय… राहुल जी आपकी कांग्रेस करीब 6 दशक तक सत्ता मे रही है यदि कांग्रेस चाहती तो पुलिस रिफार्म करती, पुलिस act बदल सकती थी, पुलिस को बजाय वर्दी वाला गुंडा बनाने के उसको संविधान के प्रति जवाबदेह बना सकते थे, IPC औऱ Crpc मे बदलाव लाया जा सकता था, अंग्रेजों के ज़माने के क़ानून थोड़े बहुत बदले जा सकते थे.
याद कीजिए अमरीका जहां डोनल्ड ट्रम्प हुए या इंग्लैंड बोरिस जोन्सन वहां की पुलिस या जांच एजेंसीज ने कभी कुर्सी के लिए वफ़ादारी नहीं निभाई, उनकी शपथ संविधान व क़ानून के लिए थी, ज़ब अमरीका व इंग्लैंण्ड की पुलिस व जांच एजेंसीज निष्पक्ष क़ानून के हिसाब से चलने वाली हो सकती है तो यहां इंडिया मे यह ढर्रा बदला क्यूं नहीं गया??
हमारी पुलिस आजादी से पहले भी वर्दी वाला गुंडा थी औऱ आज तक वहीं बनी हुई है
क्या आप इस गलती की जिम्मेदारी नहीं लेंगे राहुल जी??
यदि आपकी कांग्रेस ने पुलिस को वर्दी वाला गुंडा बनाए रखने के बजाय पुलिस रिफार्म किए होते तो आज इस तरह आपको सड़क पर बैठना नहीं पड़ता!
PMLA act जिसके तहत ED काम करती है वो क़ानून भी आपकी कांग्रेस सरकार के दौर मे बनाया गया था, क्या सोच कर ये बकवास act बनाया था आपकी सरकार ने??
एक बार एक ED अधिकारी ने unofficial वार्ता के दौरान बताया कि यह act इतना खतरनाक है कि हम लोग जिसे चाहे एक मामूली किराने परचून दुकानदार तक को लपेट ले अपने शिकन्जे मे इसके प्रावधान बहुत जटिल है.
आशा है ज़ब कभी दुबारा आपकी सरकार बने तो तो आप सबसे पहले पुलिस व प्रशासनिक सुधार करेंगे
विश्व दीपक-
राहुल गांधी नामका यह शख्स जिसके कंधों पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी, उसकी सफलताओं-विफलताओं का बोझ है जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से गांधी भी है — क्या सोच रहा होगा ?
तस्वीर देखिए. उसकी आंखों में अकेलापन, अपनों की धोखेबाजी से मिला दर्द और ढेर सारे अनुत्तरित सवालों का जखीरा दिखाई पड़ेगा.
क्या सोचता होगा राहुल नाम का यह शख्स : क्या यह वही मुल्क है जिसके लिए उसके बाप के चीथड़े उड़ा दिए गए थे? अंतिम संस्कार करते वक्त, वह अपने पिता का मुंह तक नहीं देख पाया था. यही देश है जिसके लिए उसकी दादी ने अपने शरीर में सैकड़ों गोलियां खाई थीं?
जिन लोगों की भावनाओं का लिहाज करते हुए उसकी मां ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ा था, वो सब इसी देश के नागरिक हैं फिर इतना अपमान, इतनी गालियां और इतना जलालत क्यूं?
क्या सिर्फ इसलिए कि वह इटली में पैदा हो गई थी या इसलिए कि उसने इस मुल्क से, इस मुल्क के एक नागरिक से प्यार किया? भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना को अधिकार बनाने वाली स्त्री का योगदान यह मुल्क भूल गया.
पिछले आठ सालों में सोनिया गांधी के लिए जो शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, उन्हें जिस तरह से बदनाम किया गया है उससे यही साबित होता है कि हमारा समाज नैतिक पतन की,निकृष्ठता की हर सीमा पार कर चुका है.
कल दिन भर टीवी मीडिया ने कांग्रेस के सत्याग्रह का मज़ाक उड़ाया. कवरेज इस तरह ट्विस्ट की गई थी जैसे लगा कि प्रदर्शन करना भी घृणित काम हो चुका है. कांग्रेस या किसी भी विपक्षी पार्टी के लोग किस मुद्दे पर, कहां, कितना, किस तरह प्रदर्शन करेंगे यह तय करने का हक उन्हें है न कि बीजेपी के प्रवक्ताओं को या टीवी स्टूडियो में बैठे दलालों को.
याद रखिए वक्त एक दिन सबका हिसाब करता है. जितना राहुल को जानता हूं उस हिसाब के कह सकता हूं कि उनके अंदर पर्याप्त जिद है. इस फ्रॉड और तनाशाही हूकूमत का अंत उसी जिद के हाथों होगा.
कल राहुल ने यूं ही नहीं कहा था कि सत्य ही इस तनाशाही हुकूमत का अंत करेगा.
सचाई के लिए यह जिद और इतना गहरा आग्रह राहुल के अंदर नहीं आ पाता अगर वो भोक्ता नहीं होते. आपके सामने दिल्ली के राजपथ पर जो शख्स आज अकेला बैठा है वह इस दुनिया के सबसे बड़े दर्द भोग चुका है. इसीलिए वह निडर हो चुका है.
उसका आग्रह रंग लाएगा. वक्त, विरासत, उम्र सब कुछ राहुल के पक्ष में है. देर लग सकती है लेकिन अनुभव से कह रहा हूं कि झूठ का हर किला एक न एक दिन ढह जाता है.
मुंडकोपनिषद सदियों से बताता आ रहा कि
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः
यह बात आजतक गलत साबित नहीं हुई. राहुल भी गलत साबित नहीं होगा.