शीतल पी सिंह-
उत्तर भारत के अनेक गांवों के नौजवानों को आपने सड़कों के किनारे सुबह सुबह दौड़ते देखा होगा। ये नौजवान फ़ौज/पुलिस/अर्ध सैनिक बलों के लिए तैयारी करते रहते हैं अपने घर के खर्चे पर।
भर्ती निकलती है तो इनमें से कुछ वर्दी पा जाते हैं और बाकी बहुत सारे अगली बार की तैयारी में वापस उन्हीं सड़कों पर दौड़ने चले जाते हैं।
पर बीते तीन सालों से फ़ौज की भर्ती बंद है। कोई विकल्प सूझाने वाला भी कोई नहीं है।
तो ऐसे फैसले भी आ रहे हैं! दिल भर आता है लेकिन बेबसी है क्योंकि बेरोजगारी पर संवाद ही संभव नहीं! देश तो मुल्ले टाइट करने में लगा दिया गया है!
अनुपम-
जिस मैदान में दौड़ लगाकर वर्षों से फौजी बनने का सपना देखता था पवन, वहीं रेत पर लिख दिया..
“बापू! इस जन्म में तो फौजी नहीं बन पाया, अगले में जरूर बनूंगा..”
3 साल से सेना में भर्ती न होने के कारण लाखों युवा अब ओवरएज हो रहे हैं। बेरोजगारी युवाओं की जान ले रहा है, लेकिन युवा देश की सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं!
जिन युवाओं को अपने भविष्य की परवाह है, उन्हें अब सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर जाना चाहिए। वरना सब कुछ नष्ट हो जाएगा और कोई आह करने वाला भी न होगा..