लखनऊ : आज जब देश में कारपोरेट लूट और समाज को बाँटने वाली शक्तियों का बोलबाला है तो ऐसे में भगतसिंह के विचार आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हो गये हैं और उन्हें जन-जन तक ले जाने की ज़रूरत है। पूँजीवादी विकास ने भगतसिंह की चेतावनी को सही साबित किया है कि गोरे अंग्रेज़ों की जगह काले अंग्रेज़ों के आ जाने से देश के मेहनतकशों की ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं आयेगा।
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस की पूर्वसंध्या पर ‘भगतसिंह के सपने और हमारा समय: आगे बढ़ने का रास्ता क्या हो?‘ विषय पर 22 मार्च की शाम अनुराग पुस्तकालय, लखनऊ में नौजवान भारत सभा की ओर से आयोजित बातचीत में शामिल छात्रों-नौजवानों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि आज 1947 के बाद से पिछले 68 वर्षों में सरकारों की अदला-बदली होती रही है लेकिन देश के विकास की पूँजीवादी दिशा नहीं बदली है। इस विकास ने भगतसिंह की चेतावनी को सही साबित किया है जिन्होंने कहा था कि गोरे अंग्रेज़ों की जगह काले अंग्रेज़ों के आ जाने से देश के मेहनतकश अवाम की ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं आयेगा।
वक्ताओं ने कहा कि आज भगतसिंह और उनके साथियों को याद करने का एक ही मतलब है कि अन्धाधुन्ध बढ़ती पूँजीवादी-साम्राज्यवादी लूट के खिलाफ़ लड़ाई के लिए उनके सन्देश को देश के मेहनतकशों के पास लेकर जाया और उन्हें संगठित किया जाये। धार्मिक कट्टरपंथ और संकीर्णता के विरुद्ध आवाज़ उठायी और जनता को आपस में लड़ाने की हर साज़िश का डटकर विरोध किया जाये।
कार्यक्रम की शुरुआत में सत्यम ने कहा कि क्रान्तिकारियों के विचारों और जनता के दिलों में बसी उनकी यादों को मिटाने की कोशिशों में नाकाम रहने के बाद पिछले कुछ समय से तमाम चुनावी मदारी और धार्मिक जुनूनी फासिस्ट उनकी छवि को भुनाने की बेशर्म कोशिशों में लगे हुए हैं। जिस वक़्त भगतसिंह और उनके साथी हँसते-हँसते मौत को गले लगा रहे थे, ठीक उस समय, 15-24 मार्च 1931 के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापकों में से एक बी.एस. मुंजे इटली की राजधानी रोम में मुसोलिनी और दूसरे फासिस्ट नेताओं से मिलकर भारत में उग्र हिन्दू फासिस्ट संगठन का ढाँचा खड़ा करने के गुर सीख रहे थे। जब क्रान्तिकारियों की शहादत से प्रेरित होकर लाखों-लाख हिन्दू-मुसलमान-सिख नौजवान ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ़ सड़कों पर उतर रहे थे तो संघ के स्वयंसेवक मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने और शाखाओं में लाठियाँ भाँजने में लगे हुए थे और जनता की एकता को कमज़ोर बनाकर अंग्रेज़ों की मदद कर रहे थे। भाजपा और अन्य संघी संगठनों ने भगतसिंह का नाम लेना तो तभी बन्द कर दिया था जब यह ज़ाहिर हो गया कि भगतसिंह मज़दूर क्रान्ति और कम्युनिज़्म के विचारों को मानते थे और साम्प्रदायिकता तथा धर्मान्धता के कट्टर विरोधी थे। लेकिन जनता के बीच भगतसिंह की बढ़ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए इन फासिस्टों ने एक बार फिर भगतसिंह को भी अपने झूठों और कुत्सा-प्रचार का शिकार बनाने की घटिया चालें चलनी शुरू कर दी हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र अंकित सिंह बाबू और सूर्यकांत दीपक ने कहा कि तमाम पार्टियों के लिए नौजवान आज सिर्फ वोट बैंक रह गये हैं। नौजवानों को भगतसिंह से प्रेरणा लेकर अन्याय का विरोध करने के लिए आगे आना होगा। राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के छात्र पहल और अवनीश ने कहा कि धर्म और संस्कृति का इस्तेमाल आज समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है, हमें इसका विरोध करना चाहिए। पहल ने कहा कि भगतसिंह भावनाओं में आकर शहीद नहीं हुए थे, वे उसूलों के लिए शहीद हुए थे, मगर उन उसूलों से लोग परिचित नहीं हैं।
विवेकानन्द पॉलीक्लिनिक के डा. राजीव कौशल ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और समाज में प्रचलित संस्कार हमें केवल अपने स्वार्थ के बारे में सोचना सिखाते हैं, देश और समाज के प्रति जुड़ाव नहीं पैदा करते। सीतापुर से आये जगदीश चौधरी ने कहा कि भगतसिंह ने हमें हर बात पर तार्किक ढंग से सोचने की शिक्षा दी है, हमें उस पर अमल करना होगा और आज की समस्याओं का समाधान तलाशना होगा।
कवयित्री कात्यायनी ने कहा कि व्यवस्था के सारे छल-छद्म अब उजागर हो चुके हैं। अब हमें नये सिरे से भगतसिंह के विचारों को व्यापक जनता के बीच लेकर जाना होगा और एक आमूलगामी क्रान्ति की लम्बी तैयारी के काम में लगना होगा। हमें शहर-शहर, गाँव-गाँव में मज़दूरों, ग़रीब किसानों, छात्रों-नौजवानों के जुझारू क्रान्तिकारी संगठन खड़े करने होंगे और एक नयी क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने की ओर बढ़ना होगा जिसका खाका भगतसिंह ने ‘क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा’ में पेश किया था। राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष को भगतसिंह समाजवादी क्रान्ति की दिशा में यात्रा का एक मुकाम मानते थे और इसके लिए मज़दूरों-किसानों की लामबन्दी को सर्वोपरि महत्त्व देते थे। इन सच्चाइयों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावना-सम्पन्न युवाओं को परिचित कराना ज़रूरी है जिनके कन्धों पर भविष्य-निर्माण की कठिन ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी है। भगतसिंह और उनके साथियों के वैचारिक पक्ष के बारे में जनता में व्याप्त नाजानकारी का लाभ उठाकर ही भाजपा और आर.एस.एस. के धार्मिक कट्टरपन्थी फासिस्ट भी उन्हें अपने नायक के रूप में प्रस्तुत करने की कुटिल कोशिशें करते रहते हैं। अब केजरीवाल जैसे पाखण्डी भी भगतसिंह की क्रान्तिकारी छवि को भुनाने की टुच्ची कोशिश कर रहे हैं।
नेशनल पीजी कालेज के राहुल, राष्ट्रीय विषविज्ञान संस्थान के शोधछात्र सुनील, जागरूक नागरिक मंच के अमेन्द्र कुमार, पीडब्ल्यूडी इंजीनियर्स एसोसिएशन के सीताराम सोनी, स्त्री मुक्ति लीग की रूपा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। बातचीत का संचालन सत्यम ने किया।
भगतसिंह के विचारों की रौशनी में आज की दुनिया और संघर्ष के नये तौर-तरीकों को जानने-समझने के लिए नियमित सामूहिक अध्ययन और चर्चा का सिलसिला चलाने और इन विचारों को लेकर लोगों के बीच जाने के निर्णय के साथ बातचीत समाप्त हुई।
इस अवसर पर ‘विहान’ की टोली ने शहीदों को समर्पित कुछ क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये। क्रान्तिकारियों के जीवन और विचारों तथा आजके हालात पर एक विशेष पोस्टर प्रदर्शनी ‘भगतसिंह की बात सुनो’ भी कार्यक्रम स्थल पर लगायी गयी थी।
(‘हस्तक्षेप’ से साभार)