Sheetal P Singh : मोदी जी का तीसरा पन्द्रह अगस्त और हमारा सत्तरवां… मोदी जी ने आज लालक़िले से अपना २०१९ के लोकसभा चुनाव का एजेंडा पेश किया। वे जानते हैं कि उनके समर्थक उनसे काले धन, दो करोड़ सालाना नौकरियों, मंहगाई कम करने पर तो कुछ पूछने से रहे… अब वक़्त है कि उन्हे नया एजेंडा दे दिया जाय! बलूचिस्तान और गिलगित अगला चुनाव लड़ेंगे! हम जानते हैं कि सिवाय इसके कि हमारे या उनके क़ब्ज़े के कश्मीर में कुछ और लोग मार डाले जांय, कुछ और सुरक्षा कर्मी राष्ट्रीय झंडों में लपेट कर अपने गाँव वापस किये जांय, कुछ और दिन कर्फ़्यू रहे… कुछ बदलने वाला नहीं है! पर चुनाव में देशभक्ति की फ़सल काटने का यह बेहतर औज़ार है, तब जब दाल के भाव नीचे आने नहीं हैं और प्रापर्टी के ऊपर जाने नहीं हैं! तो आज के पन्द्रह अगस्त को भगत मंडली के भजन का मुखड़ा कुछ यूँ है “क्वेटा और गिलगित में दिया पाकिसतान को ललकार ……”। ये लाइनें आलोचक जोड़ेंगे- “विकास” वाले मोदी करो देस बंटाधार….। चलिये पतंग उड़ाते हैं। जै हिन्द।
Anil Jain : लाल किले की प्राचीर से ऐतिहासिक गलती… जैसे जम्मू-कश्मीर का मसला हमारे देश का अंदरुनी मसला है वैसे ही बलुचिस्तान भी पाकिस्तान का अंदरुनी मसला है। हम कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान को हमेशा नसीहत देते हैं कि वह हमारे घरेलू मामलों में टांग न अडाए। लेकिन आज लाल किले के प्राचीर से हमने बलुचिस्तान का मुद्दा उठाकर न सिर्फ पाकिस्तान को यह नसीहत देने का नैतिक अधिकार खो दिया बल्कि पाकिस्तान जो कुछ हरकतें कश्मीर को लेकर करता और करवाता आ रहा है उन्हें भी एक तरह से वैधता प्रदान कर दी। अब हम किस मुंह से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की लानत-मलानत कर पाएंगे कि वह हमारे घरेलू मामलों में नाजायज दखलंदाजी करता है। अब तो पाकिस्तान को भी खुलकर यह कहने का मौका मिल गया कि भारत बलूच विद्रोहियों की मदद कर पाकिस्तान के अंदरुनी मामलों में दखलंदाजी कर रहा है। यह सही है कि पाकिस्तान से उसके पूर्वी हिस्से को अलग कर बांग्लादेश का निर्माण करवाने में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी लेकिन तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी या भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मॉनेक शा ने किसी आमसभा में या रेडिया/टीवी पर या लाल किले से यह मुनादी नहीं की थी कि भारत शेख मुजीब की मुक्ति वाहिनी की हर तरह से मदद करेगा और पाकिस्तान के दो टुकडे करवा देगा। कहने का आशय यह कि कूटनीतिक कार्रवाइयां ढोल पीट कर नहीं की जाती है। जय हिंद…जय भारत….आजादी अक्षुण्ण रहे।
Yashwant Singh : इस लिंक को क्लिक कर पढ़िए… http://goo.gl/eEV6YC मामला सीरियस है भाई. बत्ती जली तक नहीं, जुमला महाराज ने क्रेडिट ले लिया… इस विद्युतीकरण से क्या फायदा जब गांव में अंधेरा अब भी कायम है… ये आदमी जनता को पूरी तरह से मूर्ख समझ कांच की हाड़ी को बार बार चूल्हे पर चढ़ा दे रहा है. जब यह टीवी पर बोलता दिखता है तो चैनल बदल देता हूं. माफ करिएगा, बहुत दिनों बाद इतने मूर्ख आदमी को इतने बड़े पद पर देख रहा हूं.. मैं सोचता था कि यह आदमी कांग्रेस से बेहतर साबित करने के लिए कुछ तो जमीनी और आम जनता के हित की काम करेगा लेकिन मैं गलत साबित हुआ. यह सिर्फ और सिर्फ कारपोरेट्स के लिए पीएम बना है. जनता तो महंगाई, बेरोजगारी और टैक्स की भयंकर मार के तले कराह रही है.
Om Thanvi : लोग पूछ रहे हैं प्रधानमंत्री ने नई योजनाओं के सपने नहीं दिखाए। जब पुराने सरेआम धुल रहे हों, नए कैसे गढ़ेंगे! कहाँ गया मेक इन इंडिया? नीति आयोग? आदर्श ग्राम? शौचालय और जन-धन गिनाते थक जाएँगे तो रेल टिकट और एलईडी बल्ब से ही न गुज़र होगी! और बलूचिस्तान? देश के स्वाधीनता दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर से? निपट अजूबा। उधर, राष्ट्रपति ने दलितों पर अत्याचार का मामला अपने सम्बोधन में उठाया और विभाजनकारी ताक़तों की निंदा करते हुए देश में बढ़ती असहिष्णुता की बात की। यह उन लोगों लोगों सीधा सम्बोधन है जो तमाम गोरखधंधे अंजाम देकर भी पूछते फिरते हैं कि कहाँ है असहिष्णुता, कहाँ है? प्रधानमंत्री ने दलितों पर हमलों की आख़िरकार मलामत की है। क्या लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों पर हो रहे हमलों पर भी वे आज मुख खोलेंगे?
सौजन्य : फेसबुक
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