ग्लैडसन डुंग-
मोदी सरकार के द्वारा दैनिक भास्कर को चुप कराने के लिए की गई IT रेड की भर्त्सना जरूर होनी चाहिए। लोकतंत्र को बचाने के लिए यह बहुत ही जरूरी कदम है। लेकिन हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश भारतीय मीडिया घरानों को आदिवासी, दलित और ओबीसी पसंद नही हैं और उसमें भास्कर सबसे आगे है।
दैनिक भास्कर के लिए आदिवासी सिर्फ असभ्य, जंगली, नक्सली, विकास विरोधी और देशद्रोही हैं। Pathalgari आंदोलन को बदनाम करने के लिए दैनिक भास्कर ने एडी चोटी एक कर दी थी। फर्जी खबरें छापी और आदिवासियों को देशद्रोही घोषित करवा दिया।
यूपी में दलित और ओबीसी को सत्ता से बाहर रखने के लिए अभियान चलाया और मोदी है तो मुमकिन है का नारा बुलंद किया। भास्कर असल में फर्जी राष्ट्रवादी गुट का ही एक खिलाड़ी है।
मसला बस इतना है कि उसे लाइन में दैनिक जागरण से आगे जगह चाहिए और राजसत्ता से मिलने वाला गांधीछाप कागज भी ज्यादा। भास्कर सिर्फ इसी की लड़ाई लड़ रहा है न की लोकतंत्र बचाने की। फिर भी मौजूदा दौर में हमें भास्कर का साथ देना चाहिए। जय हिंद!
समरेंद्र सिंह-
ये तस्वीरें दिलीप मंडल जी की वॉल से उठाई गई हैं। आप देखिए और सोचिए कि ये किस किस्म की पत्रकारिता है।
लोकतंत्र पर हमला एक सब्जेक्टिव विषय है। उसे हम अपनी सहूलियत के हिसाब से परिभाषित करते हैं। जिन्हें आज लोकतंत्र पर हमला नजर आ रहा है, वही लोग अर्णब की गिरफ्तारी पर चड्ढी बनियान धो रहे थे और समंदर देख कर उद्धव के आगे मुजरा कर रहे थे। वैसे सरकार ने बहुत गलत किया है।
लोकतंत्र पर हमला – जब एनडीटीवी पर छापा पड़ा।
लोकतंत्र सुरक्षित – जब एनडीटीवी ने सैकड़ों लोगों को एक झटके में नौकरी से निकाल दिया।
लोकतंत्र पर हमला – जब क्विंट पर छापा पड़ा।
लोकतंत्र सुरक्षित – जब क्विंट से दर्जनों लोग हटाए गए या उनकी तनख्वाह आधी की गई।
लोकतंत्र पर हमला – दैनिक भास्कर पर छापा।
लोकतंत्र सुरक्षित – जब कोरोना की पहली ही लहर में भास्कर समूह ने सैकड़ों कर्मचारी निकाल दिए।
लोकतंत्र पर हमला- अर्णब गोस्वामी की आजादी
लोकतंत्र सुरक्षित – अर्णब गोस्वामी को जेल
लोकतंत्र पर हमला होता है तो बड़ा पत्रकार क्या करता है? – ड्रामा करता है।
लोकतंत्र सुरक्षित रहने पर बड़ा पत्रकार क्या करता है? – चड्ढी-बनियान धोता है और समंदर देखता है। अपनी सरकार के आगे मुजरा करता है।