शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट ने पत्रकारिता के पेशे पर चिंता व्यक्त की और दूसरे दिन रविवार को कानपुर में कुछ फर्जी पत्रकारों को पुलिस ने चकलाघर चलाते पकड़ा। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हाईकोर्ट की फिक्र लाज़मी है, लेकिन इस विषय पर पहली चिंता या समाधान के लिए पत्रकार संगठनों को आगे आना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ। मुंसिफ ही मुजरिम हो तो इंसाफ या समाधान की उम्मीद कैसे करेंगे !
अब हाईकोर्ट भी पत्रकार संगठनों पर सवाल उठा रहा हैं। ये बात आम इंसान भी जान गया है कि अवैध, असंवैधानिक, असमाजिक, गैर कानूनी और नाजायज़ काम करने के लिए मीडिया का मुखौटा इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसका एक नेक्सस है।
पत्रकार संगठन मैगी की तरह हो गये हैं। दो मिनट में तैयार। एक नाम सोचिए, उसका लेटरहेड बनाइए और तैयार पत्रकार संगठन। बस अब बिना इनवेस्टमेंट के पत्रकारिता को बेचने की खूब कमाई वाली दुकान खुल गयी। जिलों-जिलों अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को इसके कार्ड बेचिए। कार्ड खरीदने वाला संदिग्ध ना सिर्फ पत्रकार बल्कि संगठन का पदाधिकारी/सदस्य बनके पत्रकार नेता भी बन जाता है।
ऐसे लोग चकलाघर चलाने से लेकर कोई भी गैर कानूनी काम करने में भय मुक्त हो जाते हैं। ब्लैकमेलिंग से लेकर पुलिस/सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बनाने के रास्ते खुल जाते हैं। एक ठेले वाले से हफ्ता वसूली से लेकर झुंड बनाकर अधिकारियों से काम करवाने के लिए फर्जी मीडिया गिरोह खूब फल-फूल रहे हैं। हांलाकि ये अच्छी बात है कि मौजूदा भाजपा सरकारें ऐसे लोगो/संगठनों को रडार पर लिए है।
प्रेस के नाम पर काले कारनामों को अंजाम देने के जिम्मेदार सिर्फ पत्रकार संगठन ही नहीं हैं, यू ट्यूब चैनल़ और फर्जी अख़बार (फर्जी का आशय जो अखबार रजिस्टर्ड तो हैं पर नियमित छपते नहीं) भी हैं।
हालांकि इस हम्माम में इनके अलावा भी तमाम लोग नंगे हैं। ब्लैकमेलिंग और तमाम अवैध कामों में बड़े-बड़े अखबारों और चैनलों के लोग भी शामिल हैं। नामी पत्रकारों, चैनलों/अखबारों के मालिकों की भी गिरफ्तरी मंजरे आम पर आ चुकी है।
कुल मिलाकर ज़रूरत इस बात की है कि नाजायज या फर्जी पत्रकारिता की भीड़ में खोये ईमानदार और वास्तविक पत्रकारों को अपने पेशे की पवित्र गंगा को खरपतवार मुक्त करने के लिए खुद सामने आना होगा। संगठित होकर एक ऐसे पत्रकार संगठन को ताकत देनी होगी जो पत्रकारिता के पेशे को बदनाम होने से बचाये। फर्जी और अनैतिक पत्रकारिता पर लगाम लगाये।
न्यायालय, पुलिस या प्रेस कॉउंसिल आफ इंडिया से ज्यादा जिम्मेदारी वास्तविक पत्रकारों के वास्तविक पत्रकार संगठन की है, कि वो अपनी जिम्मेदारी निभाये। सख्त हों, और पत्रकारिता को बदनाम करने वाली शक्तियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जाये।
बड़े-बड़े चैनलों और अखबारों के पत्रकारों की कार्यप्रणाली से लेकर फर्जी अखबारों (जो छपते ही नहीं), यू ट्यूब चैनल्स और गली-गली संचालित मीडिया संगठनों पर कड़ी निगरानी रखी जाये। अभी भी नही होश आया तो वो दिन दूर नहीं कि पब्लिक पत्रकार से पूछेगी- आप कौन वाले पत्रकार हैं ! खबर लिखने वाले या चकलाघर चलाने वाले?
- नवेद शिकोह
लखनऊ
9918223245
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