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सियासत

बड़े पद पर आसीन एक भ्रष्ट अधिकारी को जज के कोप से राज्य सरकार द्वारा बचाने का अभूतपूर्व मामला!

संजय कुमार सिंह-

भ्रष्टाचार से संबंधित एक दिलचस्प मामला कर्नाटक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में है। मामला एक सरकारी अधिकारी का है और राज्य सरकार अगर अपने अधिकारी का बचाव करना चाहे तो प्रतिकूल आदेश के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जा सकती है। दूसरी ओर कर्नाटक में डबल इंजन की सरकार है सो अधिकारी राज्य के प्रिय हैं तो केंद्र के भी प्रिय होंगे। वहां मामला दिल्ली, बंगाल या पंजाब जैसा नहीं है।

फिर भी, जिस ढंग से सरकार और सरकारी वकील ने पूरी ताकत झोंक दी है उससे लगता है कि दाल में जरूर कुछ काला है। वैसे भी, अदालतों के बारे में तो कहा ही जाता है कि, न्याय होना ही नहीं चाहिए, होता हुआ दिखना भी चाहिए!

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ऐसे में भ्रष्टाचार का यह मामला ठीक से जांच न होने और हाईकोर्ट के एक जज द्वारा मामले पर नजर रखे जाने से संबंधित है। कालांतर में हाईकोर्ट के जज को एक साथी जज के व्यवहार से लगा कि उन्हें तबादले की धमकी दी जा रही है। यह गलत भी हो तो राज्य सरकार के प्रभावित या परेशान होने का कोई मामला नहीं है। फिर भी राज्य सरकार की कार्रवाई जज के खिलाफ (सुप्रीम कोर्ट आना और अधिकारी का बचाव ताकि वे अगली तारीख पर प्रतिकूल आदेश न करे दें) भ्रष्ट अधिकारी को बचाने की कोशिश नहीं तो और क्या हो सकती है।

वैसे भी कर्नाटक में सरकार कैसे बदली, कौन नहीं जानता है। सबको पता है कि इसमें पैसे लगते हैं और सरकार में रहकर पार्टी को यह खर्चा निकालना होता है। अगर ऐसा हो रहा हो तो कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि गोदी वालों पर भरोसा करके सरकार निश्चितं है और उसे बदनामी की कोई परवाह नहीं है। वैसे भी, जो जैसे हुआ है उसमें कोई यही मतलब लगाएगा लेकिन ऐसी साफ-साफ खबर नहीं मिल रही है। इंटरनेट पर उपलब्ध खबरों के अनुसार, कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज, एचपी संदेश ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा कथित तौर पर उपायुक्त से जुड़े एक मामले में की गई जांच की प्रगति की निगरानी रखने के लिए उन्हें ट्रांसफर की धमकी दी जा रही है (थी)। 

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यह मामला, डिप्टी कमिश्नर, बेंगलुरु अर्बन की ओर से रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति और उसकी ओर से है। जाहिर है, रिश्वत लेने वाले व्यक्ति ने वाकई अधिकारी की ओर से रिश्वत ली होगी या झूठ बोल कर किसी को फांसा होगा। कायदे से यह मामला अधिकारी और गिरफ्तार व्यक्ति के संपर्कों-संबंधों से जांचा जा सकता है। अगर झूठ बोलकर किसी को फांसा हो तो रिश्वत लेने वाला फंसेगा अधिकारी पर कोई आंच नहीं आएगी। इसलिए सरकार के परेशान होने का कोई कारण नहीं है। और यह बहुत ही साधारण पुलिसिया जांच से तय हो जाएगा या हो चुका होगा इसलिए सरकार परेशान है। 

जांच करने वाली एजेंसी एसीबी है और उसी के अधिकारी का मामला है और इसलिए देरी या लापरवाही का कारण नहीं समझ में आने जैसी कोई बात नहीं है। दूसरी ओर, उच्च न्यायालय ने एसीबी के विशेष वकील को रिपोर्ट और एजेंसी द्वारा उसकी स्थापना के बाद से दायर आरोप पत्र सहित रिकॉर्ड डेटा लाने के लिए भी तलब किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। पीठ को बताया गया कि मामला कुछ टिप्पणियों के साथ जमानत याचिका पर उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पारित निर्देशों की एक श्रृंखला से संबंधित है।

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सुप्रीम कोर्ट सोमवार (11 जुलाई) को उस मामले की जांच करने के लिए सहमत हो गया, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के कामकाज के खिलाफ अपनी टिप्पणियों के संबंध में ट्रांसफर की धमकी मिलने का दावा किया है। मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत अगले दिन यानी मंगलवार को याचिका पर विचार करने के लिए तैयार हो गई और मामले को एक उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। यहां गौरतलब है कि हाईकोर्ट जज ने धमकी मिलने की बात खुली अदालत में 4 जुलाई को कही थी। 29 जून को एसीबी से संबंधित विवरण मांगे थे जो नहीं दिए गए। (तकनीकी रूप से इसे कुछ और कहा जा सकता है) 

12 जुलाई को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी थी। ऊपर आपने पढ़ा कि हाईकोर्ट जज ने एसीबी के काम का ब्यौरा मांगा था। जो नहीं दिया गया। सुनवाई के बाद 12 जुलाई की खबर का शीर्षक है, (abplive.com), ट्रांसफर की धमकी मिलने का दावा करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के जज से सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम मामले में आपके पिछले आदेश देखना चाहते हैं।’ यहां मैं जो समझ पा रहा हूं वह यह है कि सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के जज नहीं आए हैं। उनने एसीबी का रिकार्ड मांगा था और अब उन्हीं का रिकार्ड मांगा जा रहा है। इससे लगता है कि उनका यह आरोप सही है कि संबंधित अधिकारी बहुत शक्तिशालीं हैं। सामान्य स्थिति में क्या यह संभव है कि हाईकोर्ट का कोई जज खुली अदालत में कहे और उसके खिलाफ उसी पार्टी का मामला सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार कर लिया जाए। पर नामुमकिन मुमकिन है।

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क्या देश के किसी राज्य में पहले कभी राज्य सरकार अपने अधिकारियों का इस तरह बचाव करती रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह सुनवाई हुई है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कह दिया है कि इस मामले पर सुनवाई तीन दिन (शुक्रवार तक) टाल दें। इस बीच उन्हें यकीन हो जाएगा कि अधिकारी की पहुंच वाकई कितनी है। सुप्रीम कोर्ट में संभवत शुक्रवार को फिर सुनवाई होगी। तब बताउंगा क्या रहा। कुछ भी हो सकता है इंतजार कीजिए।  

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