‘न्याय के साथ विकास’ नीतीश सरकार का बहुप्रचारित नारा अब असली रूप में सामने आने लगा है. नीतीश सरकार दस वर्षों के शासनकाल के अंतिम पड़ाव पर है। मूल्यांकन का समय तो नहीं आया है, लेकिन छल की शिकार आम अवाम की आह को कौन रोक सकता है.
आज नियोजित शिक्षक सड़क पर हैं, सांख्यिकी-सेवक सड़क पर हैं, जो घर पर हैं, वे भी चैन में नहीं हैं. इनकी जायज मांगों को गौर करने का समय सरकार को नहीं है. सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ‘परमपिता परमेश्वर’ की शैली में ‘सब मंगल हो’ का भाव लिए ‘न्याय के साथ विकास’ की सवारी कर रहे हैं. बिहार म्यूजियम के निर्माण को लेकर पटना उच्च न्यायालय में एक लोकहित याचिका दायर की गई है. बिहार सरकार ने पैरवी के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वकील नागेश्वर राव को लगाया है. दो दिन इनकी बहस हो चुकी है, 17 मार्च 2015 और 7 अप्रैल को राव ने बिहार सरकार की पैरवी की है। प्रतिदिन 30 लाख रुपये की दर से दो दिन की फ़ीस 60 लाख हुई। भुगतान के लिए स्वीकृति की संचिका मंत्री के समक्ष प्रस्तुत की गई है.
बिहार म्यूजियम के शिलान्यास के मौके पर नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा था कि चंचल कुमार को मैंने कला, संस्कृति एवं युवा विभाग और भवन निर्माण का ब्यौरा-प्रभार जान-बूझकर दिया है. ये मेरा ‘टेस्ट’ जानते हैं, उसके अनुरूप ही काम कराएँगे. जनता भ्रष्टाचार से त्राहिमाम कर रही है और अधिकारी ‘परमपिता परमेश्वर’ के ‘टेस्ट’ को कार्यरूप देने में व्यस्त हैं. इसे महज मुख्यमंत्री की फिजूलखर्ची कहना उचित नहीं होगा, एक सामंत का सामंती मिजाज, जो अपने ‘टेस्ट’ के लिए जनता की हर जायज जरूरत की क़ुरबानी देने पर तुला है.
नीतीश कुमार ‘बिहार म्यूजियम’ के छद्मनाम से ताजमहल बनवा रहे हैं और उसमें अपना अमरत्व देख रहे हैं. दुर्भाग्य कि ताजमहल मृतात्मा की याद में बना मकबरा है. एक जीवित व्यक्ति अगर ऐसा करता है तो इसे शुभ तो नहीं ही माना जायेगा! नीतीश कुमार को शब्दों से खेलने का शौक है, ‘न्याय के साथ विकास’, ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस’, ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ (उसमें बेचारी बनी जनता!), ‘विशेष राज्य का दर्जा’ आदि न जाने कितने ही शब्द हैं, जिनसे खेलते हुए नीतीश कुमार अपनी दो कार्य-अवधि पूरा करने के कगार पर हैं, लेकिन उन्हें कौन बताये कि अक्षर ब्रह्म होता है और दंभ से खेलना काफी विध्वंसक होता है !
लेखक अशोक कुमार ईमेल संपर्क : [email protected]