अनुरंजन झा-
भारत में अब क्रिप्टो लीगल होगा ! सोचिए जो सालों से इसको अपनाना चाहते थे और अवैधानिक होने की वजह से नहीं अपना पाए उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा ! खैर कहिए – देर आए दुरुस्त आए।
राजीव रंजन झा-
निर्मला सीतारमण जी, विगत कई वर्षों से मोदी सरकार PMO India ने क्रिप्टोकरेंसी पर जो सख्त रुख अपना रखा था, उसे वर्चुअल डिजिटल एसेट्स पर टैक्स की घोषणा करके एकदम से ढीला क्यों किया गया है? यह पिछले दरवाजे से क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता देने जैसा नहीं है क्या? यदि आपको इसे मान्यता देनी है, तो खुल कर मान्यता दे दीजिए।
लेकिन यदि ऐसा नहीं है, और क्रिप्टोकरेंसी पर कानून के पिछले मसौदों के अनुरूप ही आपकी सरकार का इरादा इन पर प्रतिबंध लगाने का है, तो वर्चुअल डिजिटल एसेट्स पर टैक्स की घोषणा करके जनता को इसके जाल में फँसाने का काम क्यों किया जा रहा है? इस कदम से जनता तो अब यही मानेगी कि सरकार को क्रिप्टोकरेंसी में लोगों के निवेश से कोई समस्या नहीं है, बस सरकार को थोड़ा ज्यादा टैक्स देना होगा। ऐसा समझ कर जनता इसमें फँसेगी और बाद में आप इस प्रतिबंध की घोषणा करें तो जनता ठगी नहीं जायेगी क्या?
क्या इससे पहले क्रिप्टोकरेंसी पर कानून के जो कम-से-कम दो मसौदे बने, उनसे एकदम विपरीत जाकर आपकी सरकार अब क्रिप्टोकरेंसी के नियमन (रेगुलेशन) के नाम पर उन्हें मान्यता देने जा रही है? क्या आरबीआई की ओर से जतायी गयी सारी आशंकाओं के समाधान हो गये हैं?
दिल्ली और बहुत-से शहरों में कई कच्ची कॉलोनियाँ काटी जाती हैं, जिन्हें प्रशासनिक मान्यता नहीं होती, सरकार कोई सुविधा नहीं देती, पर वहाँ मकान-जमीन की रजिस्ट्री पर टैक्स वसूलने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होती। क्या क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाना भी कच्ची कॉलोनियों जैसा मामला होगा, कि मकान तो अवैध है पर मकान खरीदने-बेचने पर सरकार को टैक्स जरूर दिया जाये?
क्या क्रिप्टोकरेंसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से अंदेशे जताने और सख्ती बरतने के संकेत देने वाले जो नये-पुराने बयान रहे हैं, उन्हें भी अब हम भूल जायें? क्या “रूलिंग एलीट” के हित क्रिप्टोकरेंसी से इतने अधिक जुड़े हुए हैं कि वे नरेंद्र मोदी और निर्मला सीतारमण के बयानों पर और आरबीआई की तमाम आशंकाओं पर भारी पड़ गये हैं?
और यदि आपकी सरकार को क्रिप्टोकरेंसी के रूप में काले धन के नये अड्डे को मान्यता देनी ही थी, तो टैक्स चोरी रोकने के लिए नोटबंदी, जीएसटी जैसे तमाम सुधार करने की जरूरत ही क्या थी? बेनामी जैसा कानून बनाने की क्या जरूरत थी, जब क्रिप्टोकरेंसी जैसा निवेश का डार्कवेब ही आपको डिजिटल संपत्ति के रूप में स्वीकार हो गया है जहाँ कौन किससे लेन-देन कर रहा है यह पता करना असंभव है?