प्रेस जगत में हर संस्थान कर्मचारी को निकालने वक़्त यही धमकी देता है। तुम्हारे केस करने से कंपनी को कुछ नहीं होगा। यह बहुत बड़ी कंपनी है। ऊपर तक पहुँच है। हमारा एक वकील कोर्ट में ही तैनात रहता है।
लेकिन सच्चाई यह है कि केस करने से कंपनी तबाह हो जाती है। कभी मध्यप्रदेश का नवभारत माना जाना अखबार था। लेकिन 2 हजार केस हुए और संस्थान अर्स से फर्श पर आ गिरा। राजस्थान पत्रिका खुद को बड़ा तुर्रम खां लगता था, आज संघर्ष कर रहा है। दैनिक भास्कर में नई भर्ती बंद कर दी गयी। डीबी कॉर्प में अडानी का शेयर बढ़ने की खबर आ रही है। नईदुनिया में कुछ स्थानों पर सैलरी दो टुकड़ों में दी जा रही है।
केस दीमक की तरह होता है और हर उस संस्थान को धीरे धीरे बर्बाद कर देता है जो कर्मचारियों को हायर एंड फायर समझते हैं। मीडिया संस्थानों में अब स्थिरता इसलिए आ रही है कर्मचारी अपने अधिकार जानते हैं। यदि किसी कर्मचारी को कितने भी नियम से निकाल दिया गया हो लेकिन यदि वह कोर्ट जाएगा तो कंपनी को इतना घाटा होगा कि उससे दो लोगों को रोजगार दे सकता।
कुछ कर्मचारी चाहते हैं कि मेरा नाम सामने न आए लेकिन कंपनी पर केस चले। तो दो रास्ते होते हैं। या किसी यूनियन से कहकर केस लगवा दो या समाज सेवी से। तीसरा तरीका होता है कि गुमनाम से आरटीआई लगा कर कंपनी की कानूनी कमियां पकड़ो और कंपनी मामलों के मंत्रालय या लेबर कोर्ट में शिकायत कर दो। दरअसल यह लेख लिखने के पीछे मानसिकता यही है कि हर कंपनी कर्मचारियों की नौकरी को खिलौना न समझे कि जिसे जब चाहे निकाल दे। किसी की रोजी रोटी छीनने की बजाय उसे ट्रेंड कर स्किल्ड बनाना चाहिए।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.