बेचारे भक्तों ने जब समझ लिया कि “भक्त” शब्द अब एक व्यक्ति विशेष की बेगार करनेवालों के लिए पक्की पहचान बन गया है तो वो झुंझलाए. बुद्घि तो थी नहीं कि ढंग से विरोधी का काउंटर करते. ऐसे में किसी ने एक दिन सुझाया होगा कि देखो जब तुम्हें कोई पहचान ले और भक्त कहे तो तुरंत जवाब देना कि कम से कम चमचे से अच्छा हूं. बस, उस दिन से कई भक्तों ने यही लाइन पकड़ ली. आजकल यही जवाब देने का फैशन चल पड़ा है. मैंने इसे कई बार पढ़ा और सुना तो गंभीरता से मनन किया.
उसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि बेचारे भक्तजन तो अब भी बेवकूफी के समंदर में ही गोते लगा रहे हैं क्योंकि देखा जाए तो चमचा भक्त से हर हाल में बेहतर ही है. चमचा इसलिए ठीक है क्योंकि उसे पता है कि कब तक किसकी चमचई करनी है. इधर मलाई खत्म होते ही वो उधर जा कर पादुका उठाने लगता है. उदाहरण के लिए आप दर्जनों कांग्रेसियों के चेहरे याद कर लें जो “गांधियों” की चरण वंदना कर रहे थे और अब मोदी नाम जप रहे हैं.
चमचा चालाक होता है. मौके का महत्व ताड़ लेता है. भक्त बेचारा मुफ्त में खुद को घिसता रहता है और अंत में “शहादत” की गफलत लिए ही निपट जाता है. उसे ना माया मिलती और ना राम. मिलती है तो सिर्फ बेइज्ज़ती. उफ्फ…
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हमने पिछले सालों में जो कुछ किया वो आनेवाली पीढ़ी के लिए चुटकुला होगा. वो हंसेंगे कि कैसे हमने एक हज़ार के नोटों से फैल रहे भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर दो हज़ार का नोट जारी कर दिया था. वो हंसेंगे कि कैसे हमने सरकार की असफलता को मिलकर दबाने के लिए मान लिया था कि असली नोट रंग छोड़ता है. वो हम पर इसलिए भी हंसेंगे क्योंकि हमने एफडीआई, जीएसटी, आधार को नकारनेवालों को पूरे जोश में चुना और फिर जब उन्होंने भी यही लागू किया तो अचानक हम भी इनके फायदों को साबित करने लगे.
उन्हें हंसी आएगी कि हम ही थे जिन्होंने योगी, साक्षी, बिप्लब जैसों को एक ही वक्त पर चुना और नेता माना. उनको हैरत से हंसी छूटेगी कि विज्ञान से चमकती बीसवीं सदी के अंत के बाद हमने ऐसे लोगों को देश सौंपा जो गणेश की सर्जरी, महाभारत में इंटरनेट और पुष्पक की थ्योरी बाकायदा सिलेबस में डालने पर आमादा थे. वो हंसेंगे कि हमने चुनाव में उस बोफोर्स पर बहसें सुनीं जिसके सारे खलनायक गुज़र चुके पर उस राफेल की हमने फिक्र नहीं की जिसके सूत्रधार चुनाव लड़ और लड़वा रहे थे. वो हंसेंगे और उस दिन हमें भी अहसास होगा कि हां यार वाकई बेवकूफी तो हुई थी.
सोशल मीडिया के चर्चित लेखक और टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर की एफबी वॉल से.
उमानन्द सुबेदी
June 11, 2021 at 7:47 am
भक्ति का उदहारण आप ने ठीक नहीं दिया
1, माँ बाप की सेवा करना भक्ति है
2, गुरु की सेवा करना भक्ति है
3, भगवान कि सेवा करना भक्ति है
4, देश की सेवा करना भक्ति है
इन सेवा मे से मिलने वाला मन की शांति ही है इनसे ना मुँह फेरा जा सकता न फ़ायदा देखा जाता है न ही कभी सेवा करना छोड़ा जा सकता है
और चमचो की तो
1, जहां तक अपनी फ़ायदा हो तभी तक वहां तलवे चाटने को तैयार हो जाते है वरना उधर ताकतें भी नहीं
2, चमचो उन चिट्टीयो की तरह है जब तक खाने को चिनी हैं उसी आसपास मडंराते हैं खतम होने से सभी गायब होते हैं