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सियासत

यह तस्वीर हज़ार किताब के बराबर है!

प्रकाश के रे-

पश्चिमी मीडिया और बौद्धिक लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन को लेकर तोता रटंत बातें कर रहे हैं!

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यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पश्चिमी मीडिया और बौद्धिक (भारत में भी) चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन को लेकर वही तोता रटंत बातें कर रहे हैं- ताइवान, हांगकांग, मानवाधिकार, एकाधिकार आदि. न कोई तर्क और न तथ्य.

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का देश, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, दुनिया की जीडीपी में १८.५% योगदान देने वाला देश, दुनिया के सप्लाई चेन में लगभग एक चौथाई हिस्सेदारी वाला देश, हर तरह के संसाधनों से संपन्न देश, हज़ारों साल पुरानी सभ्यता, भाषा, लिपि, संस्कृति का देश जब आज भविष्य की नीतियों का निर्धारण कर रहा है, जिसका असर पूरी धरती और समूची मनुष्यता पर होगा, तो चर्चा सम्मेलन के मुद्दों और विमर्शों पर होनी चाहिए. चीन और शेष दुनिया पर उनके प्रभावों पर बात होनी चाहिए.

लिखकर रख लिया जाए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इस सम्मेलन में केवल चीन के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए मामला तय होने जा रहा है. दीपावली के लिए झालर और हेलोवीन सजावट के सामान लेना न भूलें.

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यह तस्वीर हज़ार किताब के बराबर है!

कहा जाता है कि एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है, पर यह तस्वीर हज़ार किताबों के बराबर है. इस तस्वीर में पाँच चीनी नेताओं की तस्वीरें हैं, जिन्होंने लगभग साढ़े सात दशकों से चीन को नेतृत्व दिया है. इन पाँच नेताओं की तुलना अतीत व वर्तमान के किसी देश के नेताओं से नहीं की जा सकती. ये नेता दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के देश के नेता रहे हैं.

माओ को जो देश मिला, वह तब दुनिया का सबसे अपमानित, ग़रीब और बीमार देश था. उसकी आबादी अनेक महादेशों की संयुक्त आबादी से अधिक थी. वहाँ से जो कारवाँ चला और आज जहाँ पहुँचा है, वह दुनिया के इतिहास में कभी नहीं हुआ. पहले कभी नहीं हुआ, जब कई करोड़ लोगों को बहुत कम समय में ग़रीबी से उबारा गया, ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई लाचार-बीमार देश कुछ दशकों में दुनिया का सबसे स्वस्थ, कुशल, शिक्षित, पारंगत आबादी वाला देश बन गया.

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पिछले साल चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी (CCP) के सौ साल पूरे हुए. इस पार्टी के नेतृत्व में चीन का महाशक्ति बनना एक अद्भुत महागाथा है. चीन को अंग्रेज़ों ने अफ़ीम से इस क़दर तबाह किया था कि एक सदी तक उसे कई देशों ने रौंदा और लूटा. इस दौर को चीन के इतिहास में अपमान की सदी कहा जाता है. उस सदी की स्मृति चीन के संकल्प का मुख्य आधार है.

आज देखिए, विश्वविद्यालयों की रैंकिंग देखिए, चीन से बाहर पढ़ने, काम करने और घूमने जाने वालों की संख्या देखिए, ओलंपिक खेलों की पदक तालिका देखिए, अर्थव्यवस्था से जुड़े चार्ट व ग्राफ़ देखिए, आश्चर्यजनक उपलब्धियों की गिनती बहुत लंबी है.

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PS: हमारे देश में सिनोफोबिया का बड़ा ज़ोर रहा है, सो कुछ लोगों को यह पोस्ट अच्छी नहीं लगेगी. बहरहाल, मेरा सुझाव है, जैसा कि फ़िल्म ‘गॉडफ़ादर’ में एक डायलॉग है- Never hate your enemies. It affects your judgment. जब गंभीर चुनौतियों और ख़तरनाक मुश्किलों का सामना हो, तो डेढ़ जीबी रोज़ाना की पॉलिटिकल इकोनॉमी से ऊपर उठकर सोचा जाना चाहिए. लाहौरी नासिर ज़ैदी की चिंता हमारी भी चिंता होनी चाहिए-
क्या हुए रह-रवान-ए-मंज़िल-ए-शौक़
क्यूँ है सुनसान रास्ता कुछ सोच


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग ने चीनी ताइपे (ताइवान) पर अपना रूख स्पष्ट कर दिया है. हालाँकि चीन की ओर से हमेशा से यह कहा जाता रहा है, पर आज का भाषण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपति शी ने हांगकांग पर पूर्ण नियंत्रण का उल्लेख भी किया है.

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मुझे लगता है कि चीन की कोशिश शांति से ताइवान के एकीकरण की होगी. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर के इस बयान को याद किया जाना चाहिए कि चीन ने युद्धों पर एक पैसा भी खर्च नहीं किया है. चीन का कोई भी गम्भीर अध्येता यह जानता है कि चीनी दूरगामी सोचते हैं.

पश्चिम को अगले बैलेंस शीट की चिंता रहती है. ख़ैर, ताइवान के मसले में चेयरमैन माओ से जुड़ा एक प्रसंग ध्यान में आता है. जब 1971-72 में अमेरिका और चीन के बीच संबंध स्थापित हो रहे थे, तब भी ताइवान सबसे अहम मुद्दा था. ताइवान, जो एक टापू है और किसी भी अर्थ में एक देश नहीं है, को बीस साल से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिली हुई थी.

अमेरिका ने तब वन चाइना नीति अपनायी और शेष दुनिया ने भी उसे स्वीकारा. ताइवान को सुरक्षा परिषद से हटाया गया और उसका स्वतंत्र देश होने दर्जा भी ख़त्म हो गया. तब ताइवान को यथास्थिति में छोड़ते हुए माओ ने कहा था कि इस मामले से हम सौ साल बाद निपटेंगे. पचास साल पूरे हो चुके हैं.

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अगर पश्चिम चीन को उकसाता रहा, जैसा उसने यूक्रेन मसले में रूस को बिदका कर किया, तो मिलिटरी कमीशन के चेयरमैन के रूप में शी को विवश होकर कार्रवाई करनी पड़ेगी. भारत भी वन चाइना नीति को मानता है. चीन को भी वन इंडिया नीति को मानना होगा. दोनों देशों को अपने सीमा विवाद बातचीत से सुलझाना चाहिए.

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1 Comment

1 Comment

  1. Prabhat Pandey

    October 19, 2022 at 3:44 am

    Aap china ke dalal hain kya?

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