Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

ये चुनाव सबसे बड़ा सबक है पत्रकारों के लिए!

Mamta Yadav : ये चुनाव सबसे बड़ा सबक है पत्रकारों के लिए। हवा के साथ मत बहिये। व्यक्ति विरोध में आप खुद कब पार्टी बन जाते हैं पता नहीं चलता। आपका अंधविरोध उस व्यक्ति को विक्टिम बनाने के अलावा विजेता भी बना देता है। बुराइयां देख रहे हैं तो अच्छाइयां भी देखते चलें। निरपेक्ष भाव और दृष्टि रखेंगे तो कभी भी चुप नहीं होना पड़ेगा। हालाँकि मुश्किल होता है क्योंकि दबाव हर तरफ से होता है पर खुद को सुकून रहता है। पार्टी समर्थक बनने के बजाय गलत सिस्टम की खिलाफत करें। जनता से जरूर जुड़े रहें और जनता बनकर ही बात करें तभी उसके मन की बात बाहर आती है। जनता मूर्ख नहीं है पर कुछ पार्टियों और उनके समर्थक पत्रकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी खुद को मूर्ख साबित करने में। हवा के साथ न बहें, हवा रुख भी बदल लेती है।

Om Thanvi : प्रज्ञा सिंह जीत गईं। यानी जो भारत वे बनाना चाहते हैं, बना रहे हैं। यह उनका ‘सत्याग्रह’ है, जैसा कि अमित शाह ने कहा था। मगर हमें अब भी उस सत्याग्रह पर नाज़ है, जिसने एक अहिंसक, सहिष्णु, समावेशी और करुणाप्रधान भारत का भरोसा दिया। जैसा कि गांधीजी ने कहा था, जिन ताक़तों को अपने दौर में एक बारगी अपराजेय समझा गया, इतिहास गवाह है कि अंततः वे सब इतिहास के कूड़ेदान की भेंट चढ़ गए। ऐसा हमेशा होता आया है। आज नहीं तो कल होगा। आज भले धर्म-अधर्म, अर्थ-अनर्थ, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय, करुणा और आतंक के भेद मिटते दीखते हों, पर धर्म और सेना के कंधे पर बंदूक़ हमेशा कामयाब नहीं होगी। हाँ, विकल्प को ज़रूर बेहतर तैयारी और तालमेल के साथ समाज के सामने आना होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Abhishek Srivastava : कल राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी का जवाब देते हुए एक वाक्य कहा – प्यार की कभी हार नहीं होती! उस वक़्त मैं एक दफ्तर में टीवी देख रहा था। ठीक सामने बैठी खबर बना रही लड़की के मुंह से अनायास प्रतिक्रिया निकली, “ओह माइ गॉड, सो सिली..”! और वो काफी देर तक हंसती रही।

उसकी प्रतिक्रिया और हंसी अब भी मुझे परेशान करती है। क्या जवानी में प्यार, मोहब्बत, इश्क़ की बात किसी को मूर्खतापूर्ण या हास्यास्पद लग सकती है? क्या हमारे देश का नौजवान उस अधेड़ की तरह हो गया है जिसे प्यार मोहब्बत की बात से कोफ्त होती है? क्या इसीलिए उसे राहुल गांधी पर हंसी आती है जबकि चाकू से अपनी छाती पर मोदी गोदने में उसे दर्द नहीं होता? आज एक लड़के की ऐसी ही खबर अाई है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट हो गया है क्या? आदमी ही गड़बड़ बन रहा है क्या? समाज क्या सहज मानवीय मूल्यों से बहुत आगे जा चुका है? आदर्शवाद के बरक्स यथार्थ के अनावश्यक आग्रह ने कहीं कुछ बुनियादी नुकसान कर दिया है? क्या यह समय अपनी मूल दार्शनिक आस्थाओं को सिर के बल खड़ा करने का है? मसलन, भौतिकवादी लोग आदर्शों की तरफ मुड़ें? मार्क्सवादी लोग हेगेल को फिर से पढ़ें? और गांधीवादी लोग सैमुएल हटिंगटन को?

पत्रकार ममता यादव, ओम थानवी और अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement