महाभियोग नहीं लायी सरकार तो चीफ जस्टिस ने सिटिंग जज के खिलाफ दी एफआईआर की मंजूरी, जस्टिस एसएन शुक्ला की हो सकती है गिरफ्तारी
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार द्वारा मेडिकल एडमिशन घोटाले में प्रथमदृष्टया दोषी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश जस्टिस एसएन शुक्ला के विरुद्ध महाभियोग चलाने की उनकी सिफारिश पर अबतक कोई कार्रवाई न करने के बाद एक अप्रत्याशित ऐतिहासिक फैसला दिया। उन्होंने सीबीआई को जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए कथित तौर पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का पक्ष लेने के आरोप में भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत मामला दर्ज करने की मंजूरी दे दी है।
मुख्य न्यायाधीश ने सीबीआई को इलहाबाद हाई कोर्ट में कार्यरत जज जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधी कानून (प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट) के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दे दी। सीबीआई जल्द ही जस्टिस शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगी। संभव है कि जस्टिस शुक्ला भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत गिरफ्तार भी कर लिए जाएं।
पिछले महीने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर जस्टिस शुक्ला को हटाने का प्रस्ताव संसद में लाने को कहा था। 19 महीने पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी यही सिफारिश की थी, जब एक आंतिरक समिति ने जस्टिस शुक्ला को गंभीर न्यायिक कदाचार का दोषी पाया था।इस घटना के सामने आने के बाद से ही जस्टिस शुक्ल सेन्यायिक कार्य वापस ले लिया गया है। पीएम मोदी को पत्र लिखने से पहले मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने न्यायिक कार्य फिर से आवंटित करने का जस्टिस शुक्ला का आग्रह खारिज कर दिया था।
गौरतलब है कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ कदाचार की उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर सितंबर 2017 में सीजेआई दीपक मिश्रा ने एक आंतरिक जांच समिति गठित कर दी थी। इस समिति में मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस के अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जयसवाल शामिल थे। समिति को जांच कर पता करना था कि क्या जस्टिस शुक्ला ने वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में विद्यार्थियों के ऐडमिशन की समयसीमा बढ़ा दी थी?
सीबीआई ने मुख्य न्यायाधीश गोगोई को पत्र लिखकर उनसे मामले की जांच करने की इजाजत मांगी थी। सीबीआई के निदेशक ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा, ‘उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ पीठ, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला और अन्य के खिलाफ सीबीआई ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की सलाह पर तब प्रारंभिक जांच दर्ज की थी जब न्यायमूर्ति शुक्ला के कथित कदाचार के मामले को उनके संज्ञान में लाया गया था।
दरअसल मेडिकल प्रवेश घोटाले के नाम से जाने जाने वाले इस पूरे मामले की एसआईटी जांच की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में आई, जिसकी सुनवाई 9 नवंबर, 2017 को जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जे चेलामेश्वर की पीठ ने की। पीठ ने इसे गंभीर माना और इसे पांच वरिष्ठतम जजों की पीठ में रेफर कर दिया। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को भी रखा गया और सुनवाई के लिए 13 नवंबर 2017 की तारीख तय की गई। इसी तरह के एक और मामले का जिक्र कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म (सीजेएआर) नाम की संस्था ने भी 8 नवंबर 2017 को जस्टिस चेलामेश्वर की अगुवाई वाली पीठ के सामने रखा था। उस मामले में पीठ ने 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय की थी।
लेकिन 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में हुए एक हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने जस्टिस चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा 9 नवंबर को दिए गए उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत को रिश्वत देने के आरोपों में एसआईटी जांच की मांग वाली दो याचिकाओं को संविधान पीठ को रेफर किया गया था। इस पूरी बहस के दौरान वकील प्रशांत भूषण और चीफ जस्टिस के बीच तीखी नोंकझोंक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी रिपोर्ट या एफआईआर में किसी जज का नाम नहीं है।
दरअसल सीबीआई ने जिस आधार पर ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज कुद्दूसी और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, उसका आधार वह बातचीत थी, जिससे आभास मिलता है कि उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट की अदालतों में रिश्वत देने की योजना बनाई जा रही है। आरोप है कि कुद्दूसी ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय में भी मामले में मनमाफिक फैसला दिलाने का वादा किया था।
इससे तीस साल पहले उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई 1991 को किसी भी जांच एजेंसी को उच्चतम या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायमूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोक दिया था और कहा गया था कि एजेंसी को मुख्य न्यायाधीश को मामले से जुड़े सबूत दिखाए बिना किसी सिटिंग जज के खिलाफ एफआईआर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी। 1991 से पहले किसी भी जांच एजेंसी ने उच्च न्यायालय के सिटिंग जज के खिलाफ जांच नहीं की है। यह पहली बार है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिटिंग जज के खिलाफ जांच एजेंसी को एफआईआर दर्ज करने की इजाजत दी है।
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.