कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में मीडिया को लेकर जो वादा कर दिया है उस पर ग़ौर किया जाना चाहिए। अभी तेल कंपनी वाला सौ चैनल खरीद लेता है। खनन कंपनी वाला रातों रात एक चैनल खड़ा करता है, चाटुकारिता करता है और सरकार से लाभ लेकर चैनल बंद कर गायब हो जाता है। इसे क्रास ओनरशिप कहते हैं। इस बीमारी के कारण एक ही औद्योगिक घराने का अलग पार्टी की राज्य में खुशामद कर रहा है तो दूसरी पार्टी की सरकार के खिलाफ अभियान चला रहा है। पत्रकारिता में आया हुआ संकट किसी एंकर से नहीं सुलझेगा। क्रास ओनरशिप की बीमारी को दूर करने से होगा।
मीडिया इस बहस को ही आगे नहीं बढ़ाएगा। यह बहस होगी तो आम जनता को इसके काले धंधे का पैटर्न पता चल जाएगा। कांग्रेस ने कहा है कि मीडिया में “एकाधिकार रोकने के लिए कानून पारित करेगी ताकि विभिन्न क्षेत्रों के क्रॉस स्वामित्व तथा अन्य व्यवसायिक संगठनों द्वारा मीडिया पर नियंत्रण न किया जा सके।” आज एक बिजनेस घराने के पास दर्जनों चैनल हो गए हैं। जनता की आवाज़ को दबाने और सरकार के बकवास को जनता पर दिन रात थोपने का काम इन चैनलों और अखबारों से हो रहा है। अगर आप भाजपा के समर्थक हैं और कांग्रेस के घोषणा पत्र से सहमत नहीं हैं तो भी इस पहलू की चर्चा ज़ोर ज़ोर से कीजिए ताकि मीडिया में बदलाव आए।
2008 में कांग्रेस ने यह संकट देख लिया था, उस पर रिपोर्ट तैयार की गई मगर कुछ नहीं किया। 2014 के बाद कांग्रेस ने इस संकट को और गहरे तरीके से देख लिया है। पांच साल में मीडिया के ज़रिए विपक्ष को ख़त्म किया गया। उसका कारण यही क्रॉस स्वामित्व था। अब कांग्रेस को समझ आ गया है। मगर क्या वह उन बड़े औद्योगिक घरानों से टकरा पाएगी जिनका देश की राजनीति पर कब्ज़ा हो गया है। वे नेताओं के दादा हो गए हैं। प्रधानमंत्री तक उनके सामने मजबूर लगते हैं। मेरी बात याद रखिएगा। कांग्रेस भले वादा कर कुछ न कर पाए, मगर यह एक ऐसा ख़तरा है जिसे दूर करने के लिए आज न कल भारत की जनता को खड़ा होना पड़ेगा।
मैं मीडिया में रहूं या न रहूं मगर ये दिन आएगा। जनता को अपनी आवाज़ के लिए मीडिया से संघर्ष करना पड़ेगा। मैं राहुल गांधी को इस एक मोर्चे पर लड़ते हुए देखना चाहता हूं। भले वे हार जाएं मगर अपने घोषणा पत्र में किए हुए वादे को जनता के बीच पहुंचा दें और बड़ा मुद्दा बना दें ।आप भी कांग्रेस पर दबाव डालें। रोज़ उसे इस वादे की याद दिलाएं। भारत का भला होगा। आपका भला होगा।
एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.
chandra shekhar
April 3, 2019 at 3:00 pm
धंधेबाज़ मीडिया मालिकों से भिड़ेगी कांग्रेस, क्रॉस ओनरशिप की बीमारी दूर होगी?
इसके पहले कांग्रेस के पास मीडिया से लड़ने की ताकत नहीं थी ? जबकि आजादी से भाजपा की सरकार बनाने से पहले तक तो कांग्रेस की ही सरकार थी । क्या कांग्रेस ने देश में मीडिया मालिकों से कोई भी वेज बोर्ड लागू करवा पाई की ?
जयराम तिवारी
April 3, 2019 at 8:58 pm
इसी पोस्ट मे आपने कहा है:काँग्रेस ने औद्योगिक घरानो द्वारा मीडिया के नियंत्रण को 2008 मे भाँप लिया था:समिति भी बनायी,लेकिन कुछ कर नहीं सकी।
मै कहना चाहुँगा:करना नहीं चाही क्योंकि ये मीडिया हाउस इनकी चाटुकारिता कर रहे थे:2G scam,coal scam,Forest Clearance(उस समय के सम्बन्धित मंत्री का वक्तव्य देखिए:सूचि राहुल गाँधी के कार्यालय से आता था)।
मै कहते/लिखते रहा हूँ(कुछ प्रेस क्लब मे भी जहाँ मुझे मुख्य/विशिष्ट अतिथि के रुप मे भी):-यह मीडिया हाऊस ओरिएंटेड का युग है:यह औद्योगिक घरानो के साथ राजव्यवस्था के सभी अंगो(कार्यपालिका,विपक्ष,विधायिका,न्यायपालिका,नौकरशाही)के अनुकुल है।पत्रकार /एंकर बेचारा है(दलालो को छोडकर:इनकी संख्या भी कम नहीं है।
चाणक्य एवं मेकियावेली मे गुणात्मक अंतर है:रोम मे मेकियावेली की विशालकाय मूर्ति है:आपके राहुलजी का मेकियावेली से प्रभावित है।अंधा नही बनिए।
इनका काट बहुत दुरी तक सोशल मीडिया है।मै अनेक बार फेसबुक पर लिखा हूँ:आईडी बनाते समय न्यूनतम पहचान लोग दे:पोस्ट का भी स्क्रीनिंग भी आवश्यक है:विशेषकर तथ्य को तोडमरोडकर एवं गलत पेश करने के मामले मे।