बिहार के गया जिले में प्रभात खबर, जागरण, दैनिक भास्कर और दैनिक हिंदुस्तान जैसे अखबारों में विज्ञापन प्रबंधों की बैंड बज गई है। प्रभात खबर ने लॉक डाउन में बेहद सस्ते दर पर विज्ञापन छापने का जो सिलसिला शुरू किया है उसको देखते हुए दूसरे अखबार भी विज्ञापनदाताओं के पास पहुंचने लगे हैं। असली बात ये है कि हमेशा से दोयम दर्जे के तौर पर ट्रीट किया जाने वाला संपादकीय विभाग ही इन मुश्किल के दिनों में फ्रंट फुट पर खेलते हुए रेवेन्यू दिलाते हुए अखबार की इज्जत बचाए है।
पता चला है कि ₹9000 से लेकर ₹20000 तक का वेतन पाने वाले रिपोर्टर्स कंपनी को इस मुश्किल की घड़ी में लाखों का विज्ञापन दे रहे हैं. जितने विज्ञापन प्रबंधक हैं वे टकटकी निगाहों से रिपोर्टर्स को ताक रहे हैं. रिपोर्टर से खबर तो मिल ही रहा है, ये विज्ञापन भी दे रहा है. यानि संकट की घड़ी में कंपनी की बल्ले-बल्ले है.
विज्ञापन प्रबंधक सोच रहे हैं कि क्या आने वाले समय में कंपनी उन्हें पद पर बनाए रखेगी? क्योंकि कंपनी के मालिकान के पास यह जानकारी दी गई है कि हर परिस्थिति में काम करने वाले रिपोर्टर्स जब लाखों का विज्ञापन देते हैं तो उनकी सैलरी इतनी कम क्यों है?
क्यों नहीं उन्हें बेहतर सैलरी मिले साथ ही वह विज्ञापन का काम भी कायदे से कर सके. यानि आने वाले दिनों में विज्ञापन प्रबंधक की भूमिका या तो कम होगी या रिपोर्टर फिर से दमदार तरीके से खबरों के साथ विज्ञापन के काम में लगाए जाएंगे.
वैसे, मीडिया घराने बहुत चालबाज होते हैं. वे हमेशा रिपोर्टरों को दोयम दर्जे के स्टाफ के रूप में ट्रीट करते हैं. पर संकट की इस घड़ी में रिपोर्टर्स ने दिखा दिया है कि असल में वहीं कंपनी को हर परिस्थिति में लाभ दिला सकते हैं. विज्ञापन विभाग वाले तो ₹20000 का विज्ञापन दिलाकर महीने में ₹30000 की सेलरी लेते हैं. वे पार्टी को भी चूना लगा देते हैं.
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.