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कॉरपोरेट मीडिया को आईना दिखाने निकला ‘मीडिया विजिल’ तो कॉरपोरेट का बाप निकला!

कॉरपोरेट मीडिया को आईना दिखाने निकला मीडिया विजिल तो कॉरपोरेट का बाप निकला। ऐसी मनमानी तो एक से एक घाघ मीडिया घराने नहीं करते। मै मशहूर चिंतक आनंद स्वरूप वर्मा का एक लेख खोज रहा था। जब बहुत देर तक खोजने के बाद भी उनका लेख नहीं मिला तो मैंने पड़ताल की। पता चला मीडिया वीजिल के मालिकों ने हर उस स्तंभकार का नाम उड़ा दिया है जो उनको मालिक की तरह नहीं साथी को तरह देख रहे थे।

दरअसल मालिक कहलाने की भूख बड़ी कमाल होती है। किसी भी उम्र में किसी को भी लग जाती है। और जब लग जाती है तो उसकी तमाम प्रगतिशीलता के ढोंग बहुत घिनौने तरीके से बेपर्दा होने लगते हैं। मीडिया विजिल इसका ताजा उदाहरण है। संपादकीय दायित्वों और ट्रस्ट से अभिषेक श्रीवास्तव इस्तीफे के बाद मीडिया विजिल शुद्ध रूप से पारिवारिक मालिकाना हक वाली एक संपत्ति है।

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जिस कॉरपोरेट टीवी को गालियां देकर मीडिया वजिल के संचालकों ने मालिक होने का दर्जा हासिल किया वो पहली फुरसत में कॉरपोरेट से बड़े कॉरपोरेट हो चुका है। लेकिन ये तो किसी के बौद्धिक श्रम पर डकैती का मामला है। अकेले Anand Swaroop Verma ही नहीं मीडिया विजिल की यात्रा के स्तंभ रहे कई स्तंभकारों के योगदान पर ये संस्थान डाका मारकर बैठ गया है। Abhishek Srivastava से लेकर Nityanand Gayen और तमाम लेखकों का नाम और योगदान दोनों को मीडिया विजिल बेशर्मी के साथ निगल गया है। इनके नाम शातिराना तरीके से उड़ा दिए गए हैं।

यह आपराधिक सोच है और इसके लिए उच्च कोटि की निर्लज्जता चाहिए। नाम देना न देना सस्थान और लेखक के बीच का समझौता होता है। लेकिन एक बार बाइलाइन दे देने के बाद व्यवस्थागत बदलाव के कारण नाम हटा देना बेहयाई है। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है।

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जहां तक मुझे जानकारी है मीडिया वीजिल के फंडर्स ने शर्त रखी थी कि सभी लेखों पर संस्थान का अधिकार होगा। आनंद स्वरूप वर्मा और अभिषेक श्रीवास्तव जैसे लेखक इसके लिए हरगिज़ तैयार न होते। ये लोग लेखन को समाज की चीज मानते रहे हैं, खुद को उसका मालिक नहीं। यही बात मीडिया विजिल के नए मालिकों को खल रही होगी। इसलिए उनके नाम और काम दोनों को खारिज करके पूर्ण कॉरपोरेट मालिक बनने का खयाल उनके दिमाग में आया होगा। उन्हें अच्छी तरह पता है कि ये लोग किसी तरह का दावा नहीं करने वाले।

मीडिया विजिल ने लेखकों की शराफत का फ़ूहड़ तरीके से मजाक उड़ाया है। अब मीडिया विजिल के लिए ना कॉमेंट्स फ्री रहे हैं और ना ही फैक्ट्स सैक्रेड।

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टीवी पत्रकार नवीन कुमार की एफबी वॉल से.

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