सरगुजा रेंज में पुलिस कस्टडी में एक महीने के अंतराल में दो युवकों की हुई थी मौत…. दोनों मामलों में परिजन ने पुलिस पर लगाए थे आरोप… आंकड़ों पर गौर करें तो अंबिकापुर की घटना सहित छत्तीसगढ़ प्रदेश में पुलिस अभिरक्षा में पिछले 8 महीनों में 8 लोगों की मौत हुई है…
छत्तीसगढ़ के सरगुजा रेंज में जून-जुलाई माह में सूरजपुर जिले के चंदौरा थाने और अंबिकापुर के कथित साइबर सेल में एक-एक युवकों की मौत ने वर्दीवालों की कार्यप्रणाली के बारे में बता दिया है. इन दो कस्टोडियल डेथ ने पुलिस विभाग की नींद उड़ा दी है. इन दो हत्याओं के मामले में पुलिस ने एक टीआई समेत 9 पुलिसकर्मियों पर 25 नवम्बर रविवार की रात संबंधित थानों में अपराध दर्ज कर लिया है.
पहला मामला सूरजपुर जिले के चंदौरा थाने का है जहां 26 जून को राजपुर थाना क्षेत्र के ग्राम कदौरा निवासी 30 वर्षीय कृष्णा सारथी की लाश हवालात में लटकी मिली. दूसरा मामला सरगुजा जिले के कोतवाली थाने का है जहां चोरी के मामले के कथित आरोपी भटगांव थाना अंतर्गत ग्राम अघिना निवासी पंकज बेक का 22 जुलाई को पुलिस लाइन के पीछे एक प्राइवेट हास्पिटल के कैंपस में फांसी से लटका शव मिला था. पंकज को पुलिस ने चोरी के मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था. दोनों मामले बहुचर्चित हैं और इसको लेकर काफी राजनीति हुई, हंगामा भी हुआ था. दोनों की मौत में करीब एक महीने का अंतर है लेकिन इनमें कार्रवाई एक साथ ही रविवार यानि 25 नवम्बर की रात हुई है.
पंकज बेक मामले में शामिल एक टीआई सहित 5 पुलिसकर्मियों पर धारा 306, 34 के तहत अपराध दर्ज हुआ है. अंबिकापुर का पंकज बेक इंटरनेट सेवा प्रदान करने के साथ cctv लगाने का काम करता था. वह शुशांत वर्मा नाम के व्यक्ति के यहाँ काम करता था. पंकज अंबिकापुर जैसे छोटे शहर में साथी इमरान के साथ cctv लगाता रहा है. घरों से लेकर सरकारी दफ्तरों में भी पंकज को लगभग लोग जानते-पहचानते थे. आरटीओ में काम करने वाले राजेश अग्रवाल बताते हैं कि पंकज बड़ा सीधा और ईमानदार होने के साथ मेहनती भी था. जब भी कैमरे में कोई समस्या आती थी तो हम पंकज के मालिक को फ़ोन करने के बजाय सीधे पंकज को ही फोन कर लेते थे और समय पर काम भी हो जाता था. कभी एक पेन्सिल तक हमारे घर में चोरी नहीं हुयी.
शहर के एक व्यवसायी के यहां 13 लाख की चोरी के मामले में पंकज बेक व उसके साथी इमरान के खिलाफ कोतवाली में अपराध दर्ज हुआ था। इसी मामले में 21 जुलाई को कोतवाली पुलिस दोनों को हिरासत में साइबर सेल ले गई थी। यहीं से रात में पंकज बेक भाग गया था और पुलिस लाइन के पीछे एक प्राइवेट हास्पिटल के परिसर में दूसरे दिन उसका फांसी से लटका शव मिला था। उसके शरीर में चोट के निशान मिले थे। पुलिस कह रही है कि चोरी के मामले में एक आरोपी इमरान से कुछ रकम जब्त हो गई थी। शेष राशि पंकज से जब्त होनी थी। इससे डरकर वह पुलिस को चकमा देकर भाग गया और आत्महत्या कर ली।
पर सच्चाई कुछ और ही है क्योंकि पुलिस के कोर्ट में 164 के तहत दिए बयान को मानें तो पुलिस अपने ही बुने जाल में फंस गयी. सीआरपीसी 164 के तहत दिए गए अपने बयान में पुलिसकर्मियों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि पंकज के साथ अन्य सन्देहियों के किसी भी मोबाइल रिकॉर्ड तथा सीडीआर लोकेशन से कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ. सहायक उप निरीक्षक प्रियेश जॉन ने अपने बयान के पैराग्राफ 5 में स्पष्ट कथन किया है कि “…हमारे पास शिकायत पत्र के अलावा और कोई सबूत नही था…” तो मात्र सन्देह के आधार पर पुलिस ने 9 जुलाई से 21 जुलाई 2019 तक पंकज को इतनी अमानवीय यातनाएं क्यों दीं जिसके परिणाम स्वरूप उनकी मौत हुई?
सीआरपीसी164 के अपने बयान के पैरा 6 में प्रियेश जॉन का कथन है कि तनवीर सिंह (शिकायतकर्ता ) ने उसे बताया कि 1 टीवी की हार्ड डिस्क होने के कारण 1 जुलाई तक की ही रिकॉर्डिंग उसके पास है.. तो पुलिस ने तनवीर सिंह के उक्त कथन की जांच क्यों नहीं की? जबकि 1 टेरा बाइट की हार्ड डिस्क से युक्त जो कैमरा तनवीर सिंह के यहां लगा है, कम से कम 3 माह का रिकॉर्ड रख सकता है। तनवीर सिंह का 13 लाख चोरी होने का आरोप सही भी है या नहीं, इस बात की जांच किये बगैर पंकज जो कि दलित युवक था, उसकी हत्या सवर्ण जाति के थाना प्रभारी एवं उसके सहयोगियों द्वारा कर दी गयी, पुलिस ने इस दिशा में अब तक जांच क्यों नहीं की?
9 जुलाई 2019 से 21 जुलाई 2019 तक जब जब पुलिस ने पंकज को थाने बुलाया तो क्या एक चोर को पुलिस से ज़रा भी भय नहीं था जो लगातार पुलिस की मदद करने थाने में चला जा रहा था.
मृतक पंकज की डेड बॉडी जिस स्थान पर पाइप से लटकी मिली वो शहर के परमार अस्पताल का परिसर है. वहां सीसी टीवी कैमरा बिल्कुल डेड बॉडी की दिशा में ही था. पुलिस ने उसकी रिकॉर्डिंग क्यों जब्त नहीं की? जिस तनवीर सिंह नाम के व्यक्ति ने झूठी शिकायत की, उसके घर में लगे सीसीटीवी में भी दोनों कथित आरोपियों की कोई संदिग्ध हरकत नहीं आई. उल्टे उसका रिकार्डिंग नहीं है, आवेदक द्वारा यह बताया गया, और, पुलिस ने मान भी लिया।
पुलिस जो सभी अत्त्याधुनिक उपकरणों से लैस होती है, उसके साइबर सेल, शहर के कोतवाली तथा परमार अस्पताल सभी के रिकॉर्डिंग एक ही समय में क्यों काम नहीं कर रहे थे। पुलिस ने पोस्टमार्टम से पहले कई कोरे कागजों में मृतक के परिजनों से जबरन हस्ताक्षर क्यों कराये? शव के घर पहुँचने के पहले ही पुलिस ने मृतक के शव को जलाने उसके दाह संस्कार वाले स्थान पर लकड़ियाँ क्यों भिजवाई? क्यों बार बार परिजनों पर दबाव बनाया जा रहा था कि लाश को जल्दी जलाओ?
पुलिस के दबाव के बाद भी जब परिजनों ने शव को जलाने के बजाए दफन कर दिया तो कई दिनों तक पुलिस वाले दफ़न करने वाले जगह पर जाकर घूमते क्यों रहे? ग्रामीणों से ये क्यों पूछते रहे कि पंकज को किस स्थान पर दफ़नाया गया है?
चूँकि मजिस्ट्रियल जांच में मौत के कारण को उल्लेखित किया गया है, ‘सांस अवरुद्ध होने से मृत्यु’, जिसे चिकित्सीय भाषा में asphyxia कहा जाता है, इसके साथ ही 10 प्रकार के चोटों में से 9 प्रकार के चोट कैसे लगे, यह उल्लेखित नहीं किया गया है.. मृतक की पत्नी रानू बेक का बयान कोर्ट में नहीं लिया गया है।
जांच की दिशा किसी गला दबाने तक सीमित रहा जबकि थर्ड डिग्री टॉर्चर उपरांत पंकज के अचेत हो जाने के उपरांत पुलिसकर्मियों द्वारा फांसी देकर हत्या कारित करने या अन्य आशंकाओं पर समुचित दिशा में जांच नहीं हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट जानबूझकर बहुत देर से दिया गया। अतः उक्त जांच में हुई गम्भीर त्रुटियों की सम्बंधित शिकायत रानू बेक ने हाईकोर्ट में किया है।
सभी प्रमाणित तथ्यों, बयानों एवं दस्तावेजों का यदि निष्पक्ष अवलोकन किया जाए तो स्पष्ट हो जावेगा कि तनवीर सिंह (शिकायतकर्ता) ने अपने पार्टनर का पैसा हड़पने अथवा किसी अन्य गबन की रकम डकारने हेतु दोषी पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर षड्यंत्र पूर्वक पंकज की हत्या करवाई है।
भाजपा ने दोनों मामले में कमेटी बनाकर जांच कराई थी। कमेटी ने पार्टी हाईकमान व विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष को रिपोर्ट सौंपी थी। केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह की पहल पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे संज्ञान में लिया था जहाँ अमित शाह ने आश्वासन दिया था। साथ ही मानवाधिकार आयोग ने इसमें रिपोर्ट मांगी थी।
पंकज बेक की पत्नी रानू बेक को मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ अपराध दर्ज होने के बारे में पता चला तो रानू की आँखें भर आयीं. मीडिया के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं इस कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हूं। मेरे पति पर चोरी का झूठा आरोप लगाया गया। भविष्य में मेरे बच्चे जब बड़े होंगे तो उन्हें लोग ये कहेंगे कि तुम्हारा बाप चोर था, तब क्या जवाब दूंगी? पुलिस ने मेरे निर्दोष पति से बर्बरता से मारपीट की है। उन्होंने आत्महत्या नहीं की है। मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए।
अंबिकापुर कोतवाली के तत्कालीन टीआई विनीत दुबे, एसआई मनीष यादव, प्रियेश जान, आरक्षक दीनदयाल सिंह व लक्ष्मण राम आरोपी बने हैं। इनके खिलाफ धारा आईपीसी की धारा 306, 34 के तहत कोतवाली में मामला दर्ज हुआ है। इनके ऊपर मृतक को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का आरोप है।
वही कृष्णा सारथी मामले में सूरजपुर जिले के चंदौरा थाने में तत्कालीन प्रभारी एएसआई रामदास सिंह, प्रधान आरक्षक देवराज, आरक्षक प्रमोद सिंह व नगर सैनिक शोभानाथ सिंह आरोपी बने हैं। इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 342, 34 के तहत चंदौरा थाने में मामला दर्ज हुआ है। इनके ऊपर मृतक को अवैध रूप से थाने के हवालात में बंद करने का आरोप है।