दूरदर्शन के 51 पत्रकारों को अंतत: शानदार जीत नसीब हुई. इस लड़ाई को नेतृत्व प्रदान किया बिहार निवासी दूरदर्शन पत्रकार सुधांशु रंजन ने. सरकार ने सच्चाई के पक्ष में न खड़ा होने को नाक का सवाल बना लिया था और कोर्ट दर कोर्ट जा जा कर मामले को टालने लटकाने की कोशिश करती रही. पर आखिरकार उसे हार का मुंह देखना पड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के पदोन्नति संबंधी मुकदमे में कोर्ट अवमानना की याचिका पर केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के दोषी अधिकारियों के खिलाफ एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. ये अफसर कोर्ट के फैसले को लागू नहीं कर रहे थे.
न्यायमूर्ति न्यायधीश धनंजय चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने 16 अगस्त को सुधांशु रंजन और अन्य बनाम सूचना प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे के मामले में फैसला सुनाया. ये मुकदमा तीन दशक तक चला. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में सुधांशु रंजन और अन्य पत्रकारों के मामले में उनके पक्ष में फैसला दिया था लेकिन इस फैसले को सरकार ने लागू नहीं किया. इसके बाद दुबारा याचिका डाली गई, अवमानना याचिका के रूप में.
कोर्ट ने सुधांशु रंजन को प्रमोशन के बाद बकाया राशि देने का निर्देश दिया है. सुधांशु रंजन दूरदर्शन में इस समय कोलकाता में तैनात हैं और तीन राज्यों के हेड हैं.
1988 में 51 टीवी पत्रकार दूरदर्शन में सीनियर क्लास और क्लास एक स्केल श्रेणी में नियुक्त हुए. उनकी नियुक्ति लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा के आधार पर हुई. 1990 में भारतीय सूचना सेवा शुरू हुई तो उन्हें उसमें शामिल नहीं किया गया. इनमें से कुछ पत्रकारों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और सरकार ने उनके प्रमोशन के लिए एक अलग चैनल बनाने का वादा किया. लेकिन सरकार ने उसे नहीं निभाया तो कुछ पत्रकार कैट (हैदराबाद) चले गए. यहां से फैसला पत्रकारों के पक्ष में आया तो सरकार हाईकोर्ट चली गई जहां उसे फिर मुंहकी खानी पड़ी.
इसके खिलाफ बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी. यहां भी उच्च न्यायलय और कैट के फैसले को बरकरार रखा गया.
बावजूद इसके, सरकार ने फैसले को लागू नहीं किया. अब जाकर फिर से सुप्रीम कोर्ट ने ठोंक पीट कर सरकार को जगाया है.