पुष्य मित्र-
यह तस्वीर उत्तराखंड के सामाजिक सरोकार रखने वाले पत्रकार जगमोहन रौतेला और उनकी पत्नी की है। दो दिन पहले की। कल रात उनकी पत्नी रीता खनका ने इस दुनिया को छोड़ दिया। पूरे परिवार को मालूम था कि वे अब नहीं बचेंगी। वे जीना भी नहीं चाहती थीं। कैंसर से लड़ रहीं रीता जी ने एक हफ्ते पहले पोस्ट लिखा था कि उनके मित्र अब उनकी मृत्यु की कामना करें। उन्हें इस अंतहीन कष्ट से छुटकारा मिले। जब वे चली गईं तो रौतेला जी ने लिखा, आज बुलबुल की इजा का मुक्ति पर्व है।

इनकी मृत्यु से ठीक एक दिन पहले इन दोनों के चेहरे की जो मुस्कान है, वह सम्मोहक भी है और लंबे अरसे तक याद रखने वाली भी। जिस तरह से इस पूरे परिवार ने इनको विदा किया वह बात मेरे दिल से जा नहीं पा रही। हां, मृत्यु से पूर्व रीता जी ने अपनी पूरी देह एक मेडिकल कॉलेज को दान कर दी है।
बीमार और मृत्यु की तरह बढ़ते व्यक्ति के जीवन पर बनी फिल्में खास तौर पर आनंद मुझे काफी पसंद है। लोग अगर मुस्कुराते हुए मृत्यु का स्वागत करते हैं और मृत्यु से पहले का पूरा जीवन आनंद के साथ जीते हैं तो यह बात सहज आकर्षित करती है। मगर जो इनका जीवन है, इसमें जो सहजता है, परिवार का साथ और आनंद भरा जीवन है, वह आनंद फिल्म से आगे की बात लगती है। यह पूरी बात इन दोनों की फेसबुक टाइमलाइन से गुजरते हुए समझ आती है।
मनीष ओली-
उफ ! ये मुस्कुराहट। आज दिन भर आंखों के आगे यही तस्वीर तैरती रही। रीता भाभी तो आज इस दुनिया को अलविदा कह गई….
लेकिन जगमोहन दा से पूछूंगा कि अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले कोई इतनी प्यारी सी मुस्कान कैसे बिखेर सकता है, और वो भी तब जब उसे पता हो कि उसके पास कुछ चंद दिन, चंद घंटे या चंद सांसें ही शेष हैं….
दा से पूछने के लिए एक लंबी सवालों की लिस्ट है मेरे पास। पूछूंगा उनसे कि ऐसे संघर्ष के दिनों में भी आप लोग इतने शांत व सहज कैसे रहे पाए। कैसे कोई व्यक्ति अपने शारीरिक व मानसिक कष्टों को भूलकर मृत्यु शैया में दूसरों के भले के बारे में सोच सकता है, और अपनी देहदान का निर्णय ले सकता है…..
पांच दिन पहले रीता भाभी की फेसबुक पोस्ट ने सभी को हिलाकर रख दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था-
‘ अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिल सके… ’
… वास्तविकता को समझने के बावजूद शायद ही कोई ऐसी प्रार्थना कर पाया हो, लेकिन आज कैंसर ने आपको हम लोगों से हमेशा के लिए दूर कर दिया। लेकिन आप हमेशा एक संबल बन कर हम लोगों के दिलों में रहेंगी, इसी मुस्कुराहट के साथ….
सादर नमन……
श्याम सिंह रावत-
ऐसी करनी कर चली, तुम हँसी जग रोय ! मृत्यु शाश्वत सत्य है, संसार में जन्मे प्रत्येक प्राणी को एक समय अपनी नश्वर देह को त्यागना ही होता है लेकिन आदर्श मृत्यु वही है जो दूसरों के जीवन में रोशनी भर दे, मरते-मरते भी किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दे, दूसरे को जीवनदान दे। दुनिया को अलविदा कहने से पहले परोपकार का यही अनमोल योगदान कर चली गई रीता जिन्होंने अपनी शीघ्र मृत्यु की कामना इसलिए की कि उनका आइसीयू बेड किसी और के लिए जल्दी खाली हो सके।


पत्रकारिता और सामाजिक सरोकारों को समर्पित हल्द्वानी के हमारे साथी वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी रीता खनका रौतेला करीब ढाई साल तक कैंसर से जूझते हुए अंततः जीवन की जंग हार गईं। एम्स ऋषिकेश में महीनों तक इलाज कराने के बाद आशा बंधी थी कि वे दीर्घजीवी होंगी लेकिन उन्हें दोबारा इलाज के लिए हल्द्वानी स्थित डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
अभी एक सप्ताह पहले उन्हें अहसास हुआ कि अब उनकी जीवनलीला का पटाक्षेप होने ही वाला है, तो उन्होंने मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी को शोध हेतु अपना शरीर दान कर दिया था।
एक सप्ताह पहले फेस बुक पर लिखा उनका यह भावपूर्ण अंतिम संदेश उनके जीवट, मानवीय संवेदना से आपूरित उनके हृदय की कोमलता और मूल्यों के प्रति आस्था को दर्शाता है; पढ़िए—
“अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले। पिछले लगभग ढाई साल से मेरे कैंसर से बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं। मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लड़ने के लिए हौसला बढ़ाया है। इस सब के लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा।
“अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुँच गई है कि जहाँ से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है। लोग मौत से संघर्ष करते हैं, पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूँ। मुझे जीवन के साँसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए, ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूँ। किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते हैं। ऐसे में मेरी यह देह साँसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दुख तो होगा, पर वे इस दुख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे।
“जब मैं मौत का आलिंगन चाह रही हूँ तो मैंने अपनी देह को निर्जीव होने के बाद सात कुन्तल लकड़ी को समर्पित करने की बजाय, यहीं मेडिकल कॉलेज को देने का निर्णय भी कल 20 मई, 2023 को कर लिया है। यह निर्णय तो हम दोनों ने बहुत पहले कर लिया था, पर कागजी औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाए थे। कल 20 मई शनिवार को वह औपचारिकता भी पूरी कर ली है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी इस बारे में औपचारिक संकल्प पत्र सौंप दिया है।
“मेरे इस संकल्प को पूरा करने में मेडिकल कॉलेज में अध्यापक व मेरी ननद डॉ. दीपा चुफाल देउपा, देवर अंकुश रौतेला, बुलबुल के बौज्यू, देवर के मित्र ललित मोहन लोहनी और ननद के ही विभाग के दीप चन्द्र भट्ट का सहयोग रहा है। मैं इन सब के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ।
“मैं अब अपनी देह से जल्दी मुक्ति इस वजह से भी चाहती हूँ कि ताकि उसके बाद मेरे बैड पर आइसीयू में वह मरीज आए, जिसे जीवन के साँसों की बहुत आवश्यकता है। मेरे जीवन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। शादी के बाद मैंने अपनी भरपूर जिंदगी जी है। मैंने लिखना, पढ़ना और तर्क करना सीखा। सबसे बड़ी बात कि मैंने धाराप्रवाह कुमाउंनी भी शादी के बाद ही सासू ईजा और बुलबुल के बौज्यू के प्रेरित करने पर ही सीखी। अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मैं इस बात को मानती हूँ। अपने कुमाउंनी लोकजीवन के तीज-त्योहारों को मनाना और लोक की परम्परा का पालन करना भी मैंने शादी के बाद ही सीखा।
“मैं आज आइसीयू के बैड में इस स्थिति में नहीं हूँ कि खुद कुछ लिख सकूँ। यह पोस्ट मैं बुलबुल के बौज्यू से लिखवा रही हूँ। हो सकता है कि इस पोस्ट के शब्द हूबहू मेरे न हों, भावनाओं के शब्द पूरी तरह मेरे हैं।
“मैं अंत में एक बार फिर से आप सबसे अपनी इस देह से जल्द से जल्द मुक्ति में सहयोग चाहती हूँ। आप सब से मेरी प्रार्थना है कि अपने-अपने देवी-देवताओं, ईष्ट देवों से कहें कि मुझे इस नश्वर देह से मुक्त करें। आप सब ने पिछले ढाई साल में मेरे जीवन के लिए कामना की, अब आखिरी वक्त में देह से मुक्ति की प्रार्थना में बिना झिझक सहयोग करें। आप सब का प्यार, सहयोग मेरी बिटिया बुलबुल और उसके बौज्यू को आत्मबल ही देगा।
“आप सब लोगों का जीवन आरोग्यमय, प्रेम, प्यार व सहयोग से भरपूर रहे, यही कामना मेरी ओर से है।” ■
( प्रिय अनुज Jagmohan Rautela, बिटिया बुलबुल और सभी परिजनों के दुख की इस घड़ी में गहरी समवेदना के साथ शामिल होते हुए दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि)
बौज्यू = पिताजी
ईजा = माँ
ये है रीता जी की देह मुक्ति वाली पोस्ट-

अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले… पिछले लगभग ढाई साल से मेरे कैंसर से बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं. मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लड़ने के लिए हौसला बढ़ाया है. इस सब के लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा.
अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुँच गई है कि जहॉ से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है. लोग मौत से संघर्ष करते हैं, पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूँ. मुझे जीवन के सॉसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए, ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूँ. किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है. और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते हैं. ऐसे में मेरी यह देह सॉसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दुख तो होगा, पर वे इस दुख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे.
जब मैं मौत का आलिंगन चाह रही हूँ तो मैंने अपनी देह को निर्जीव होने के बाद सात कुन्तल लकड़ी को समर्पित करने की बजाय, यही मेडिकल कॉलेज को देने का निर्णय भी कल 20 मई 2023 को कर लिया है. यह निर्णय तो हम दोनों ने बहुत पहले कर लिया था, पर कागजी औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाए थे. कल 20 मई शनिवार को वह औपचारिकता भी पूरी कर ली है. मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी इस बारे में औपचारिकता संकल्प पत्र सौंप दिया है.
मेरे इस संकल्प को पूरा करने में मेडिकल कॉलेज में अध्यापक व मेरी ननद डॉ. दीपा चुफाल देउपा, देवर अंकुश रौतेला, बुलबुल के बौज्यू, देवर के मित्र ललित मोहन लोहनी और ननद के ही विभाग के दीप चन्द्र भट्ट का सहयोग रहा है. मैं इन सब के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ.
मैं अब अपनी देह से जल्दी मुक्ति इस वजह से भी चाहती हूँ कि ताकि उसके बाद मेरे बैड पर आईसीयू में वह मरीज आए, जिसे जीवन के सॉसों की बहुत आवश्यकता है. मेरे जीवन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. शादी के बाद मैंने अपनी भरपूर जिंदगी जी है. मेरे लिखना, पढ़ना और तर्क करना सीखा. सबसे बड़ी बात कि मैंने धारा प्रवाह कुमाउनी भी शादी के बाद ही सासू ईजा और बुलबुल के बौज्यू के प्रेरित करने पर ही सीखी. अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मैं इस बात को मानती हूँ. अपने कुमाउनी लोकजीवन के तीज-त्योहारों को मनाना और लोक की परम्परा का पालन करना भी मैंने शादी के बाद ही सीखा.
मैं आज आईसीयू के बैड में इस स्थिति में नहीं हूँ कि खुद कुछ लिख सकूँ. यह पोस्ट मैं बुलबुल के बौज्यू से लिखवा रही हूँ. इसमें हो सकता है कि इस पोस्ट के शब्द हूबहू मेरे न हों, भावनाओं के शब्द पूरी तरह मेरे हैं.
मैं अंत में एक बार फिर से आप सब से अपनी इस देह से जल्द से जल्द मुक्ति में सहयोग चाहती हूँ. आप सब से मेरी प्रार्थना है कि अपने-अपने देवी-देवताओं, ईष्ट देवों से कहें कि मुझे इस नश्वर देह से मुक्त करें. आप सब ने पिछले ढाई साल में मेरे जीवन के लिए कामना की, अब आखिरी वक्त में देह से मुक्ति की प्रार्थना में बिना झिझक सहयोग करें. आप सब का प्यार, सहयोग मेरी बिटिया बुलबुल और उसके बौज्यू को आत्मबल ही देगा.
आप सब लोगों का जीवन आयोग्यमयी, प्रेम, प्यार व सहयोग से भरपूर रहे, यही कामना मेरी ओर से है.




Comments on “वरिष्ठ पत्रकार की लेखिका पत्नी ने आईसीयू बेड से हंसते हुए मृत्यु माँगी, अगले ही दिन देह मुक्त हो गई! देखें तस्वीरें”
अद्भुत अदितीय समाज में दिशा प्रत्येक वक्त को प्रभु की खुशी के लिए जीवन जीने की दिशा दिखा गई आप
आपके आत्म को शान्ती प्रदान होवे
सत सत नमन
रीता जी का जाना ,बेहद दुखदहै ,
लेकिन प्रेरणादायी भी है।
मृत्यु अंतिम सत्य है पर सहज भाव से इसे स्वीकारना असहज है।
रीता जी,हंसते हुए गईं,शेष परिवार भी हंस कर, उनका जाना स्वीकर करें।