Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

प्रिंट के लिए भेजे गए समाचार या लेख को महज ऑनलाइन कर देना ही डिजिटल पत्रकारिता है?

Ajay Brahmatmaj-

मुंबई में फ्रीलांसिंग के आरंभिक दिनों में नवभारत टाइम्स के तत्कालीन संपादक आदरणीय विश्वनाथ सचदेव जी ने मुझे एक असाइनमेंट दिया। जब मैंने उनसे पूछा कि कब तक करके देना है। उनका जवाब था ‘यह कल ही चाहिए था। तुम जितनी जल्दी दे सको उतना अच्छा।’

समय की पाबंदी और तत्परता का यह गुरुमंत्र मेरे करियर में बहुत काम आया। पृष्ठ प्रभारियों की हर मांग को समय पर पूरा करना ब्यूरो की जिम्मेदारी रहती है। अपने साथियों की मदद से मैं हमेशा अच्छी तरह से तैयार रहता था अगले हफ्तों की संभावित जरूरतों को लेकर। याद रहता था कि आने वाले हफ्तों के शुक्रवार को कौन-कौन सी फिल्में कब-कब रिलीज होने जा रही हैं। उन फिल्मों के निर्माता, निर्देशक और कलाकारों से बातचीत कर सामग्री तैयार रख ली जाती थी। मैंने अपने साथियों से भी यही अपेक्षा रखी और उन्होंने कभी निराश नहीं किया। मेरे एक प्रिय साथी जो थोड़े सुस्त और विलंबित थे। उनका जवाब बड़ा प्यारा लगता था ‘ऑलमोस्ट हो गया है सर!’ और यह ऑलमोस्ट डेडलाइन के समय जाकर पूरा होता था। अच्छी बात है कि उन्होंने कभी इतना विलंब नहीं किया कि उसकी वजह से कोई दूसरा लेख या इंटरव्यू देना पड़े।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पत्रकारिता में समय की पाबंदी मूलभूत आवश्यकता है। मेरी सक्रियता के समय तो फिर भी अगले दिन या अगले हफ़्ते की योजना होती थी। आज के युवा साथी विकट चुनौतियों के बीच काम कर रहे हैं। उन्हें तत्क्षण लिख कर देना होता है। इसके अलावा अपडेट भी करते रहना पड़ता है। डिजिटल पत्रकारिता ने यह विकट स्थिति पैदा की है। आजकल फिल्मी हस्तियों और पत्रकारों के बीच पीआर मैनेजर और टैलेंट कंपनियां भी आ गई हैं। मुख्य कार्यालय में बैठे अधिकारी और संपादक जमीनी वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हैं। हर मांग को तत्क्षण पूरा करने का दबाव मुंबई के फिल्म पत्रकारों पर बना रहता है। इस दबाव के अनुपात में उन्हें सुविधाएं और संपदा नहीं दी जाती। युवा साथियों की कर्मठता और सक्रियता मुझे हैरान करती है। अगर कभी कहीं लापरवाही दिख भी जाती है तो मैं विचलित नहीं होता हूं। मुझे उनकी मुश्किलों का ख्याल आता है।

समस्या यह है कि सभी मीडिया घरानों में डिजिटलाइजेशन के आरंभिक दौर में प्रिंट पत्रकारिता के पत्रकारों को ही डिजिटल पत्रकारिता की जिम्मेदारी सौंप दी गई। एक भ्रामक स्थिति रही कि प्रिंट के लिए जो समाचार या लेख भेजे जा रहे हैं, उनको महज ऑनलाइन कर देना ही डिजिटल पत्रकारिता है। डिजिटल पत्रकारिता के इस विभ्रम से अनेक गड़बड़ियां शुरू हो गईं जो आज भी जारी हैं। हिंदी, अंग्रेजी और तमाम भारतीय भाषाओं में कमोबेश समान स्थिति है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक धारणा विकसित हुई है कि अब पत्रकारिता के दिन लग गए। मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे लगता है कि यह संक्रांति की स्थिति है और जल्दी ही अनेक नए रास्ते खुलेंगे। फिल्म पत्रकारिता समेत बाकी पत्रकारिता में भी धार और चमक लौटेगी। भाषा बदली है आगे और बदलेगी। यह भाषा दृश्यात्मक होगी। यह दृश्यात्मकता प्रिंट, ऑडियो और वीडियो सभी में बढ़ेगी। युवा पत्रकारों को इसके लिए नए कौशल सीखने होंगे। इस मामले में एआई उनकी भारी मदद कर सकता है।

किसी भी कार्यक्रम में समय पर पहुंचने की वजह से कई बार ऐसा हुआ कि आयोजकों से पहले ही कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गया। सेवानिवृत्ति के छठे साल में भी ऐसा हो रहा है। युवा साथी बताते हैं कि अब चीजें बदल गई हैं। घोषित समय और वास्तविक समय में हमेशा फर्क रहता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement