Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

क्यों मनाते हैं दिवाली?

शंभूनाथ शुक्ल :  भाई Siddharth Kalhans ने पूछा है क्यों मनाते हैं दीवाली? मेरी मोटी बुद्धि में जो समाया है, वह यह है कि …

<p>शंभूनाथ शुक्ल :  भाई Siddharth Kalhans ने पूछा है क्यों मनाते हैं दीवाली? मेरी मोटी बुद्धि में जो समाया है, वह यह है कि ...</p>

शंभूनाथ शुक्ल :  भाई Siddharth Kalhans ने पूछा है क्यों मनाते हैं दीवाली? मेरी मोटी बुद्धि में जो समाया है, वह यह है कि …

भारत में गर्मी एक परेशान कर देने वाला मौसम है इसीलिए भारत में वर्षा की धूमधाम से अगवानी की जाती है। भारत की समस्त ऋतुओं में वर्षा को रानी माना गया है। वर्षा के समाप्त होते ही शरद का आगमन होता है जो भारत में आने वाले लोगों के लिए सबसे मुफीद मौसम है। इसीलिए अक्टूबर से फरवरी तक भारत पर्यटकों को सबसे अधिक लुभाता है। इसी शरद की अगवानी का त्योहार है दीवाली। दियों और रोशनी का त्योहार, खुशियों और उल्लास का पर्व, मेलों-ठेलों का पर्व और वह भी कोई एक या दो दिन का नहीं पूरे पांच रोज का। दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज तक लगातार पांच दिन तक चलता है। पूरे देश में यह त्योहार समान रूप से मनाया जाता है और हिंदू, सिख, जैन तथा बौद्ध आदि सभी इसे मनाते हैं। यही कारण है कि दुनिया के अधिकांश देशों में इस दिन हिंदुओं को सरकारी तौर पर दीवाली की छुट्टी मिलती है। नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बर्मा, मारीशस, गयाना, थाईलैंड में तो खैर इस दिन राजकीय अवकाश रहता है और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सारे कामकाज बंद रहते हैं। लेकिन अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में इस दिन हिंदुओं को छुट्टी मिलती है। साल २००३से तो हर साल दीपावली के रोज अमेरिका के व्हाइट हाउस को भी रोशनी से सजाने की परंपरा चली आ रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

महिषासुर मर्दिनी को पूजो अथवा महिषासुर को या शत्रुघ्न को अपने मिथक में सम्मान दो या नरकासुर को। विशाल हिंदू समुदाय पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां आज से नहीं 19 वीं सदी और इसके पहले से ही इन असुरों का पूजक समाज रहा है। अगर बंकिम चंद्र चटर्जी और बाल गंगाधर तिलक ने क्रमश: दुर्गा पूजा और गणेशोत्सव के अनुष्ठान न कराए होते तो देवी दुर्गा शाक्त संप्रदाय की ईष्ट रही होतीं और गणेश जी शिव परिवार के एक सदस्य और विघ्न के देवता। विघ्नहंता का स्वरूप तो उन्हें बाद में मिला। हिंदू धर्म कोई विधिसम्मत धर्म नहीं है। यह संगमन का धर्म है जिसमें असंख्य आदिम आस्थाएं और प्रकृति पूजक जातियां मिलीं और जिनके आराध्य सुर-असुर, देवता-दैत्य-दानव-भूत व पिशाच आदि हैं। सनातन का अर्थ ही है लगातार एक सूत्र से पिरोया गया। यह सूत्र संगमन है। जो बनता है फिर टूटता है और फिर बनता है। इस धर्म का कोई नियामक नहीं कोई विधि सम्मत व्यवस्था नहीं। मैं एक सामान्य तौर पर हिंदू कहे जाने वाले समाज की बात कर रहा हूं हिंदुत्व के पैरोकार आरएसएस के लोगों के बारे में नहीं। यूं भी अहिंसा जैन परंपरा से सनातनियों में आया। जैन परंपरा हिंदू परंपरा के समानांतर बह रही एक पृथक परंपरा है और बौद्घ इसी परंपरा की उपज हैं। अगनित बार समाज सुधारकों ने इसे संवारा पर यह संगमन की महिमा है कि यह फिर वहीं पहुंच जाता है। यहां हर जाति के अपने ईश्वर हैं, अपने लोक देवता हैं और अपने ईष्ट हैं। कोई समाज सुधारक इसे बदलने की कोशिश करे अथवा कोई इसे छोड़ जाए, हिंदुओं को कोई बेचैनी नहीं होती। जो लोग कनवर्जन या लव जिहाद से घबराते हैं वे आरएसएस के लोग हैं और हिंदू धर्म के प्रवक्ता या ठेकेदार नहीं हैं, यहां तक कि वे शंकराचार्य भी नहीं जो अपने अजीबोगरीब बयान के लिए कुख्यात हो चुके हैं। शंकराचार्य दशनामी संन्यासियों के नेता तो हैं जो समग्र हिंदू समाज का मात्र पांच फीसदी है पर उस विशाल वैष्णव संप्रदाय के नहीं जिसमें सामंतवाद के उदय के साथ बर्बर आदिम दास व्यवस्था को खत्म करने के लिए आत्मा का आगमन हुआ और पशुपालक जातियों में शाकाहार का अभूतपूर्व उदय हुआ। असुरों का वध हुआ तो इस वजह से क्योंकि कृषि व्यवस्था के अनुरूप ये असुर नहीं थे और पशुपालक जातियां इनसे अनवरत भिड़ती रहीं। पर असुरों के वध के बाद भी असुर पूजा बनी रही। ब्राह्मणवाद और हिंदू धर्म के अंतर को भी समझना होगा। ब्राह्मणवाद यानी कि एक किस्म का श्रेष्ठतावाद जो आमतौर पर बाहरी लोगों में पाया जाता है। ब्राह्मण अपनी आनुष्ठानिक हैसियत के कारण समाज में अव्वल दरजा पाए थे पर सिर्फ इतना ही कि एक समाज में झगड़ा होने पर उसे कोई पार्टी नहीं बनाया जाता था और अगर वह उस झगड़े में शरीक नहीं है तो लोग उसे पीटते नहीं थे जबकि समाज के ब्राह्मणेतर लोग बिना कसूर पीटे जाते थे। पर वह न तो धर्म का नियामक था न ही रक्षक वह मात्र धर्म का अनुष्ठान कराने वाला पुरोहित था जिसकी राजकाज में ज्यादा दखल नहीं थी पर जिसका राज होता था वह अपनी सुविधा से ब्राह्मणवाद पैदा कर लेता था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. प्रमोद पाण्डेय

    May 21, 2019 at 7:45 am

    आपका ज्ञान सटीक नहीं लगा शुक्ला जी।
    अब ये मत कहना कि मैं आरएसएस का आदमी हूँ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement