संजय कुमार सिंह
आज द टेलीग्राफ को छोड़कर मेरे सभी अखबारों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात और उससे संबंधित खबर लीड है। द टेलीग्राफ में यह सेकेंड लीड है। सुमद्री तूफान ‘दाना’ और इस कारण मौसम खराब होने की आशंका में हवाई अड्डे की सेवा प्रभावित होने की खबर यहां लीड है। दाना पर तो बात हो सकती है लेकिन शी जिनपिंग से मुलाकात के बहाने प्रचार और विश्वगुरू बनने की कोशिशों से संबंधित खबरों की चर्चा किसलिये करूं। लेकिन अखबार हैं कि मानते नहीं या कहिये कि प्रधानमंत्री हैं कि थमने का नाम नहीं ले रहे। आज उनका यह दावा इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है कि भारत वार्ता और कूटनीति का समर्थन करता है, न कि युद्ध का …. आतंकवाद पर कोई दोहरा मापदंड नहीं है। प्रधानमंत्री ने यह दावा तब किया है जब उनके पास विदेश मामलों का जानकार राजनीतिज्ञ या कोई घोषित और योग्य कूटनीतिज्ञ नहीं है। विदेश सेवा के रिटायर अधिकारी को विदेश मंत्री बना दिया जाना दुनिया भर की नजर में है। ऐसे में, हाल में कनाडा के साथ जो हुआ उसे भुलाने के लिए इस तरह का बयान उपयोगी माना गया होगा। हम जानते हैं कि आतंकवाद प्रधानमंत्री, यह सरकार और शायद संघ परिवार का भी प्रिय मुद्दा है। अभी तक की कार्रवाई और बातों से लगभग तय है कि सरकार की नजर में आतंकवाद वही होता है जो कोई मुसलमान करे या जिसकी जड़ें मुस्लिम देशों में हों, उससे जोड़ी जा सके।
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी से खास बातचीत के अंश को सेकेंड लीड बनाया गया है। शीर्षक है, हम तभी संतुष्ट होंगे जब दोषी को जिम्मेदार ठहराया जायेगा। इंटरव्यू में अमेरिकी राजदूत ने कहा कि अमेरिकी अधिकारी इस मामले में भारत की जांच और प्रगति से संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका चाहता है कि दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाए, न कि यह आश्वासन कि भविष्य में अपराध दोहराया नहीं जाएगा। गार्सेटी ने कहा कि अमेरिका किसी भी तरह से आपराधिक गतिविधि पर समझौता नहीं कर सकता, चाहे वह दुश्मन की तरफ से हो या करीबी दोस्त की तरफ से। उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि अमेरिका यादव के प्रत्यर्पण की कोशिश करेगा। उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण केवल उसके गिरफ्तार होने के बाद ही हो सकता है। आप जानते हैं कि भारत (सरकार) के लिए गुरपतवंत सिंह पन्नू भी आतंकवादी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अमेरिकी राजदूत से कनाडा में खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों और गुरपतवंस सिंह पन्नू की ओर से अमेरिकी धरती से जारी धमकियों के बारे में पूछे जाने पर गार्सेटी ने कहा कि वाशिंगटन वास्तविक धमकियों को गंभीरता से लेता है।
आप जानते हैं और नहीं जानते हैं तो जानना चाहिये कि एक बड़े आतंकवादी हमले के तहत 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क में दो बहुमंजिली इमारतें हवाई हमलों से गिरा दी गई थीं। उसके बाद से अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ ऐसा हल्ला बोला कि कोई दूसरी वारदात आज तक नहीं हुई है। इस चक्कर में दुनिया भर के लोगों को अमेरिका का वीजा मिलना मुश्किल हो गया है और जिन्हें मिलता है और जो जाते हैं उनकी भी ऐसी सुरक्षा तलाशी ली जाती है कि लोग याद करते हैं। कई किस्से चर्चा में हैं। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि उसके बाद कोई वारदात नहीं हुई। वहां की पुलिस (या सुरक्षा कर्मी) ज्यादती भी नहीं करते हैं और अगर कभी हुई है तो उसका भी उतना ही विरोध हुआ है और खिलाफ कार्रवाई भी हुई है। दूसरी ओर भारत है जो आतंकवाद खत्म करने और उसके खिलाफ कार्रवाई के हवा-हवाई दावे करता रहा है और यह नोटबंदी से ही खत्म हो जाना था, अभी तक नहीं हुआ। चुनाव के पहले खत्म होने और अंतिम सांसे गिनने का दावा किया गया पर असल में कुछ नहीं हुआ। कभी भी कहीं भी कोई वारदात हो जाती है, होती रही है।
ऐसे में आज प्रधानमंत्री ने यह दावा किया है और उसमें महत्वपूर्ण है दोहरे मापदंड नहीं अपनाने का दावा। मेरा मानना है कि वे जानबूझकर ऐसी बातें करते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि उनके सभी विरोधी दूसरे तमाम मुद्दों को छोड़कर उनके कहे पर चर्चा करने लगते हैं। 2013 में सत्ता में आने से पहले के झूठ पर यकीन किया जा सकता था क्योंकि तब कोई उन्हें जानता नहीं था। अब दस साल बाद उनका कहा, किया और बोला सब दर्ज है। अखबारों में छपा है और वीडियो हैं फिर भी वे वैसे ही दावे किये जा रहे हैं। दिलचस्प यह है कि मीडिया अभी भी उनके साथ है और यह लगभग वैसे ही है जैसे 2013 -14 में थे। आज भी टाइम्स ऑफ इंडिया की उपरोक्त खबर के साथ नवभारत टाइम्स डॉट इंडिया टाइम्स डॉट कॉम के शीर्षक में जोड़ा गया है, भारत के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी पन्नू के लिए अमेरिका का ये प्रेम तो देखिए। मोटे तौर पर गुरपतवंत सिंह सिखों के मामले में वही चाहता है जो भाजपा और उसके नेता हिन्दुओं से चाहते हैं या दूसरे धर्म के नेता अपने धर्म के लोगों से चाहते हैं। सही-गलत की बात मैं नहीं कर रहा। अगर हिन्दू राष्ट्र हो सकता है तो सिख राष्ट्र या खालिस्तान क्यों नहीं? अगर अपने धर्म के लिये काम करना ठीक है तो वह भी यही चाहता है। विरोध अगर करना है तो सबका कीजिये या किसी का नहीं। यहां दिलचस्प है कि भाजपा और संघ परिवार तो हिन्दू राष्ट्र की बात करता है लेकिन सिख राष्ट्र की मांग करने वाले से दिक्कत है। पन्नू की कथित आपराधिक गतिविधियों के कारण दिक्कत हो सकती है लेकिन दूसरे देशों को भी हो यह जरूरी नहीं है। वैसे भी, भारत जब शेख हसीना और तस्लीमा नसरीन को शरण दे सकता है और वहां के हिन्दुओं की भी चिन्ता करता रह सकता है तो पन्नू को शरण देने में क्या दिक्कत होनी चाहिये। अगर कोई दिक्कत है तो नियमानुसार कार्रवाई होनी चाहिये जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी या मेहुल चोकसी के खिलाफ चल रही है।
दोहरा रवैया नई बात नहीं है
भारत पर न सिर्फ सिख आतंकियों (या आंदोलनकारियों) के खिलाफ हत्या और हत्या की कोशिश का आरोप है बल्कि यहां हर सरकार विरोधी सिख को खालिस्तानी और आतंकवादी कहने का भी रिवाज या फैशन है। किसान आंदोलन के समय सिख किसान नेताओं के साथ सरकार, पुलिस और सरकार समर्थकों के रवैये ये यह सब साफ है फिर भी प्रधानमंत्री ने दोहरा मानदंड नहीं अपनाने का दावा किया है तो आइये कुछ पुराने मामले याद कर लें। 17 जून 2021 को अपने इसी कॉलम में मैंने लिखा था, दिल्ली दंगे के मामले में एक साल से भी ज्यादा से जेल में बंद तीन छात्रों को जमानत दिए जाने के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। द हिन्दू का शीर्षक था, दंगा मामले में तीन छात्रों (दो लड़कियां हैं) को जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट गई। … छात्रों और उनमें भी दो लड़कियों के खिलाफ यूएपीए लगाना और हाईकोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद पुलिस का सुप्रीम कोर्ट जाना असाधारण है। तब मैंने इसके मुकाबले समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले का जिक्र किया था और लिखा था कि फैसला 20 मार्च 2019 को सुनाया गया था, उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से “यह पूछे जाने पर कि क्या अभियोजन पक्ष इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेगा, कहा था नहीं, सरकार को क्यों अपील करना चाहिए? इसका कोई मतलब नहीं है। अदालत के फैसले में एनआईए की जांच और उसमें खामियों के साथ उसपर टिप्पणी भी थी।
राजनाथ सिंह ने इस मामले में नए सिरे से जाँच को भी ख़ारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था, “एनआईए ने इस मामले की जाँच की। इसके बाद ही उसने आरोप पत्र दाखिल किया। अब जबकि कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुना दिया है, उस पर भरोसा किया जाना चाहिए।” गौर करने वाली बात है कि आतंकवाद के मामले में (निचली) अदालत के फैसले पर भरोसा करना चाहिए और जमानत के मामले में दिल्ली पुलिस हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। दरअसल दिल्ली पुलिस नहीं, केंद्र की भाजपा सरकार गई थी। पुलिस राज्य के लिए ही काम करती है तथा राज्य का रवैया प्रज्ञा ठाकुर और केशवानंद के मामले में कुछ और होता है तथा नताशा नरवल और देवयानी कलीता के मामले में कुछ और। मेरी दिक्कत यह है कि अखबारों को मौके पर याद नहीं आता है।
मोदी के भारत में विरोध की कीमत
दिलचस्प यह है कि तब अख़बारों ने सरकारी भोंपू बनकर हाईकोर्ट के फ़ैसले का ही मीडिया ट्रायल कर दिया था। मेरा मानना है कि मीडिया के इसी समर्थन के कारण बहराइच में जो सब हुआ और कराया गया या होने दिया गया, के बावजूद प्रधानमंत्री ने दोहरे मापदंड नहीं अपनाने का दावा किया है। इससे देश की बदनामी भी हो रही है और न सिर्फ सरकार, व राजनीति बदनाम हो रही है, मीडिया भी कम बदनाम नहीं हुआ है। दूसरी ओर, इन्हीं सब कारणों से न्यूयॉर्क टाइम्स में पूरे एक पन्ने में छपी खबर और तस्वीरों का शीर्षक है, “ट्रायल बगैर चार साल जेल में : मोदी के भारत में विरोध की कीमत”। आप जानते हैं कि उमर ख़ालिद चार साल से भी अधिक समय से बिना ट्रायल जेल में हैं। कानून की खबरें देने वाले एक एक्स हैंडल से लिखा गया कि एक खास जज की बेंच में होने के कारण हाल में फिर सुनवाई टल गई या जाएगी तो सरकार का समर्थन करने वाले एक पोर्टल की रिपोर्ट के शीर्षक में उस समाचार संस्थान के मालिक के मुस्लिम नाम के साथ कहा गया था कि उसने गलत खबर दी है जबकि इन दिनों जब हिन्दुओं के लिए समाचार संस्थान चलाना और निष्पक्ष खबरें देना मुश्किल है तो किसी मुसलमान का समचार संस्थान सुप्रीम कोर्ट के किसी खास जज के खिलाफ गलत खबर कैसे दे पायेगा? और दे पाता तो निश्चित रूप से उसे सरकार का समर्थन हासिल होता। बाद में पता चला कि सरकार का समर्थन करने वाला हैंडल ही गलत था। संभव है, जजों को भी मीडिया का समर्थन मिल रहा हो पर वह मेरा मुद्दा नहीं है।
प्रदूषण में कोई कमी नहीं
बड़े-बड़े दावों और लाल आंखें दिखाने की सलाहों के बाद 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद दिल्ली स्मॉग के चादर में लिपटी हुई है। 11 जगह एक्यू आई 500 पाया गया है। इससे लोगों को आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही है। अमर उजाला की खबर के अनुसार, 23 अक्तूबर इस सीजन का सबसे प्रदूषित दिन रहा, एक्यूआई 364 दर्ज किया गया है। सबसे दिलचस्प है कि उत्तर भारत में पराली जलाने की 600 घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत जैसे देश में जहां विकल्पों की कमी होती है और जो मना किया जाय उसे करने पर जेल भेजने की सजा होती है तो नागरिकों का एक ऐसा समूह हो सकता है जो जेल जाने से न डरता हो और माने कि जितने दिन जेल में रहेगा उतने दिन खाने-पीने-सोने, शौचालय का इंतजाम नहीं करना पड़ेगा और तब भी अपने मौजूदा जीवन से बेहतर स्थिति में ही रहेगा। अमर उजाला में पहले पन्ने पर ही एक और खबर का फ्लैग शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने वालों पर मामूली जुर्माना लगाने पर पंजाब और हरियाणा सरकार को फटकारा, कहा – (मुख्यशीर्षक है) प्रदूषण मुक्त वातावरण मौलिक अधिकार। इसके साथ हाइलाइट किया हुआ अंश है, यह भी कहा – केंद्र ने पर्यावरण संरक्षण कानून को शक्तिविहीन बना दिया। आप समझ सकते हैं कि सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। अगर कुछ करेगी तो सुप्रीम कोर्ट के दबाव में।
विमान में बम की अफवाह का जिम्मेदार सोशल मीडिया
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज पहले पन्ने पर तीन कॉलम की खबर का शीर्षक है – कांग्रेस, उद्धव, पवार में 85-85-86 के बंटवारे पर सहमति, 33 सीटों का फैसला होना है। यही खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में भी है। द हिन्दू में सिंगल कॉलम की खबर है जो बताती है सहयोगियों में सहमति नहीं है और कांग्रेस ने इस योजना को स्वीकार करने से इनकार किया है। एशियन एज ने उपचुनावों में भाजपा, आरएसएस के बीच एकजुटता के लिए योगी और भागवत की बातचीत की। सत्तारूढ़ दल की चुनावी तैयारियां तो पूरी हैं। प्रधानमंत्री का छवि निर्माण का काम भी चल रहा है, इंडिया गठबंधन में फूट की खबर प्लांट हो गई है लेकिन हवाई जहाज में बम होने की फर्जी खबरें देने वालों का पता नहीं चला है। आज छपी खबरों के अनुसार सरकार ने विमान धमकियों के मामले में सोशल मीडिया संस्थानों से सवाल किया है और जानना चाहा है कि खतरनाक अफवाहें रोकने के लिये क्या किया। नवोदय टाइम्स के अनुसार, सूचना तकनालाजी मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स, मेटा और एयरलाइन कंपनियों के साथ वर्चुअल मीटिंग की। सरकार ने कहा है कि जो हालात है उनसे जाहिर होता है, आप जुर्म को बढ़ावा दे रहे हैं। इसी पर हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, आसमान में अराजकता के बीच विमान में बम की झूठी खबरों का केंद्र एक्स बना। यह खबर आज यहां सेकेंड लीड है। मुझे पूरा मामला इसी से समझ में आ रहा है। जहां तक समुद्री तूफान दाना की बात है, उड़ीशा की आधी आबादी के इससे प्रभावित होने की आशंका है। अखबारों में पहले पन्ने पर सरकार की तैयारियों, बचाव के उपायों की खबर नहीं है।