पत्रकारों से पीएम मोदी की बदसलूकी : पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक न्यूज चैनल के लॉन्च पे चैनल के CEO से कहा कि आपने अपने यहां ऐसे-ऐसे लोगों को भर लिया है, जिनके ब्लड में है मुझे गाली देना। मोदी जी का इशारा मुख्य रूप से चैनल के दो वरिष्ठ संपादकों की तरफ था।
फिर क्या था! मोदी जी की बात से हड़बड़ाए चैनल के ceo ने कहा कि कुछ करते हैं सर! इस पे पीएम मोदी बोले-अरे! जीने दो बेचारों को!! Ha ha ha….
देश के पीएम के श्रीमुख से प्रेस के खिलाफ इतनी बड़ी बात निकल गयी लेकिन ना एडिटर्स गिल्ड और ना ही BEA यानी ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन ने इस बारे में मुंह खोला या पीएम के बयान की निंदा की। उनका ईमान वो जानें पर एक नागरिक की हैसियत से मैं पीएम मोदी के इस बयान की निंदा नहीं, कड़ी भर्त्सना करता हूँ।
मैं पीएम से कहना चाहता हूँ कि इस लोकतंत्र में कोई नागरिक अपने ही पीएम को गाली देकर खुद का अपमान नहीं करेगा। पर उसे ये अधिकार है कि वो आपकी हर बात पे, आपके हर कदम पे और आप की हर हरकत पे सवाल उठाए। आप देश के हर नागरिक के प्रति ज़िम्मेदार हैं प्रधासनमंत्री जी! सो सवाल तो पूछे जाएंगे कि 60 महीने में 18 महीने यानी पूरे डेढ़ साल आप विदेश दौरों पे क्यों रहे? इससे देश को क्या फायदा हुआ? जिस देश की 30 फीसद आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, वहां अपनी विदेश यात्राओं पे जनता के अरबों रुपये आपने क्यों बर्बाद किए? सरदार पटेल की मूर्ति ज्यादा जरूरी थी या आत्महत्या कर रहे किसानों की कर्ज़ माफी? नोटबन्दी से काला धन वापिस नहीं आया तो फिर इस गलती की सज़ा आपने अपने सलाहकारों और वित्त मंत्री को दी या नहीं?
जीएसटी की दरें बार-बार क्यों revise करनी पड़ीं, जिससे व्यापारियों में भयानक confusion फैला। इसके दोषी को आपने क्या सज़ा दी? रोज़गार क्यों नहीं मिले? आपने स्वास्थ्य और शिक्षा पे बजट क्यों घटा दिया? आप स्कूल और अस्पताल की बजाय अपने भाषणों में कब्रिस्तान और श्मशान की बिजली पे क्यों अटक गए? आपके मंत्री जयंत सिन्हा ने mob lynching के दोषियों (आरोपी नहीं) के गले में फूलमाला क्यों पहनाई? और अगर पहनाई तो आपने संविधान की अपनी शपथ की लाज क्यों नहीं रखी? क्यों नहीं उनको तुरन्त मंत्री पद से हटाया और पार्टी से निकालने की सिफारिश की? सवालों की पूरी झड़ी है पीएम साहब!
और सवाल पूछे जाएंगे। आप लोकतंत्र में पीएम हैं, राजा राम नहीं। और भगवान राम को भी जनता ने नहीं बख्शा था। सवाल पूछ लिया था, जिस चलते माता सीता को उन्होंने वनवास भेज दिया। सो सवाल पूछना, गाली देना नहीं है मोदी जी। मुझे बहुत दुख है कि एक पीएम होते हुए आपने दो वरिष्ठ पत्रकारों के लिए ऐसे अशोभनीय और बाज़ारू शब्द इस्तेमाल किए। ये तो वहां खड़े एक पत्रकार महोदय की शराफत थी कि इतना सुनने के बाद भी वो सिर झुकाकर आपके पीछे-पीछे चलते रहे। मैं होता तो उसी वक़्त आपकी बात का प्रतिकार करता और आपको माफी मांगने के लिए कहता। फिर ये पूछता कि आपको चैनल के पत्रकारों ने कौन-कौन सी गालियां दी हैं? ज़रा बताइये और दिखाइए कि किस प्लेटफॉर्म पे दी हैं। आलोचना करना गाली देना नहीं होता और एक पीएम को शब्दों की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। अब आप RSS के प्रचारक नहीं हैं, देश के पीएम हैं सो संस्कार तो दिखाइए! आरएसएस तो संस्कार में ही जान देता है! तो क्या आपकी ट्रेनिंग ठीक से नहीं हुई थी वहां!??
देश का पीएम होने के नाते आपको हर तरह की आलोचना झेलने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। आप राजा नहीं हैं, जनता के नौकर हैं। इसलिए पत्रकारों को भला-बुरा कहने से पहले ये याद कर लीजियेगा कि सत्ता 5 दिन की है। फिर आपको अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए इन्हीं पत्रकारों के पास जाना होगा। और इसका क्या मतलब है –जीने दो बेचारों को?? !! हां!!! इस देश की खुली हवा में उनको जीने का अधिकार संविधान ने दिया है। वो आपकी दया पे नहीं जी रहे हैं मिस्टर प्रधानसेवक!! जरा अपनी ज़बान को लगाम दीजिये वरना ऐसा ना हो कि जनता आपकी पार्टी को हवा में टांग दे और फिर पूछे कि 56 फ़ीट से नीचे फेंकूं या पटेल की मूर्ति जितनी ऊंचाई से! मोदी जी, लोकतंत्र का सम्मान करिए। इसी ने आपको पहले सीएम और अब पीएम बनाया है। जनता जितनी तेजी से चढ़ाती है, उससे दुगनी तेजी से नीचे भी उतारती है। ये देश और इसका हर नागरिक अपने पीएम का उतना ही सम्मान करता है, जितना अपने संविधान का। बस आप से एक विनती है। आप भी ज़रा लोकतंत्र और आलोचना करने वालों का सम्मान करना सीख लीजिए।
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लेखक नदीम एस. अख्तर कई अखबारों और न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर रहे हैं और अपने बेबाक लेखन के लिए जाने जाते हैं.
Dharmendra kumar Singh
April 4, 2019 at 5:59 pm
Nadim ka koi lekh modi k Support me ho to bataiyega. . …inke blood me hai ye baat sahi hai