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सुख-दुख

काश हर पत्रकार की किस्मत एडिटर्स गिल्ड के एडिटरों जैसी होती!

देश भर में सच्ची खबर लिखने वाले पत्रकार सताए जाते हैं. पुलिसिया उत्पीड़न के शिकार होते हैं. पर देखा गया है कि कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिल पाती. लेकिन एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया के पत्रकारों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा क्या लिख लिया, सीधे सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान ले लिया और राहत दे दी.

सुप्रीम कोर्ट ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के चार सदस्यों के खिलाफ मणिपुर में दर्ज दो मामले में गिरफ्तारी को लेकर लटकी तलवार हटा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पुलिस से कहा है कि वह एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामले के संबंध कोई सख्त कदम नहीं उठाए.

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एडिटर्स गिल्ड के चार सदस्यों ने अपने खिलाफ मणिपुर में दर्ज दो मामलों में पुलिस कार्रवाई को लेकर राहत की मांग की थी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका पर छह सितंबर को पारित आदेश के लागू रहने की अवधि शुक्रवार तक बढ़ाती है। इस मामले में आगे सुनवाई शुक्रवार से होगी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्यों को कुछ और समय के लिए सुरक्षा प्रदान की जा सकती है और इस मामले को अन्य मामलों की तरह मणिपुर हाई कोर्ट में भेजा जाए।

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने विरोध करते हुए कहा कि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ही होनी चाहिए क्योंकि फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के आधार पर FIR दर्ज की गई है।

इस पर पीठ ने कहा कि इस मामले में हम सुनवाई शुक्रवार को करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उस दिन राज्य सरकार के जवाब पर विचार किया जाएगा।

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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बीते चार सितंबर को बताया था कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और तीन सदस्यों के खिलाफ एक शिकायत के आधार पर मणिपुर पुलिस ने दर्ज किया है। उनके खिलाफ राज्य में हिंसा को भड़काने की कोशिश का आरोप है।

मणिपुर गई एडिटर्स गिल्ड की फैक्ट फाइंडिंग टीम पर ही दर्ज हो गया मुक़दमा!

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