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उत्तर प्रदेश

यूपी में जंगल राज : आप लोग इस यादव के खिलाफ कुछ लिखते क्यों नहीं?

Yashwant Singh : एक मेरे उद्योगपित मित्र कल मिलने आए. बोले- यार कुछ लिखते क्यों नहीं आप लोग इस यादव के खिलाफ?

मैंने पूछा- किस यादव के खिलाफ? उनका पूरा नाम पता तो होगा?

<p>Yashwant Singh : एक मेरे उद्योगपित मित्र कल मिलने आए. बोले- यार कुछ लिखते क्यों नहीं आप लोग इस यादव के खिलाफ?</p> <p>मैंने पूछा- किस यादव के खिलाफ? उनका पूरा नाम पता तो होगा?</p>

Yashwant Singh : एक मेरे उद्योगपित मित्र कल मिलने आए. बोले- यार कुछ लिखते क्यों नहीं आप लोग इस यादव के खिलाफ?

मैंने पूछा- किस यादव के खिलाफ? उनका पूरा नाम पता तो होगा?

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उन्होंने झुंझलाते हुए कहा- हां, यादव ही नाम है, क्योंकि आजकल यूपी में न चांदी न सोने का, बस यादवों का सिक्का चल रहा है. कोई विभाग हो, उसमें सर्वाधिक प्रभावशाली और सर्वाधिक वसूलीकारी कोई व्यक्ति / अधिकारी होगा तो वह यादव ही होगा. ऐसे ही एक यादव जी की बात कर रहा हूं. यूपी में जब समाजवादी पार्टी की सरकार होती है तो यादव कोई जाति या व्यक्ति नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की सबसे संगठित संस्था हो जाया करती है. इसी कारण कह रहा हूं कि इस यादव के खिलाफ क्यों नहीं लिखते?

मैंने पूछा- क्या अखिलेश यादव के खिलाफ?

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वो बोले- नहीं भई. वो बंदा तो सीएम है. उसके सारे पाप-अवगुण माफ क्योंकि वो सीएम है. सपा और बसपा में एक गजब की एकता है. दोनों एक दूसरे के सीएम के करप्शन की जांच नहीं कराते. क्योंकि अखिलेश अगर मायावती के करप्शन की जांच कराकर जेल भिजवाएंगे तो मायावती आते ही अखिलेश और उनके पिता चाचा मय खानदान को इकट्ठे घसीट कर करप्शन में जेल भेज देगीं. सो, भइया सीएम यादव जी की बात ही नहीं कर रहा हूं. पर उसके संरक्षण में जो दूसरे अधीनस्थ यादव बंधुओं ने चहुंओर महालूट मचा रखी है, उसी में से एक यादव शिरोमणि की बात कर रहा हूं. ये महोदय नोएडा में प्रदूषण नियंत्रण विभाग के मुखिया हैं और आजकल सारे फाइल कागज डील सीधे खुद करते हैं, किसी बाबू तक को इनवाल्व नहीं करते. यादव जी पूरा का पूरा ठेका ले लेते हैं अकेले ही. वह नोएडा से लेकर लखनऊ तक का सारा काम कराने का इकट्ठी डील कर लेते हैं. बीच में किसी को नहीं रखते. इतनी गहरी ‘पकड़’ है इनकी सिस्टम पर. अगर यादव जी को धन दे दिया गया है तो वह फर्जी रिपोर्ट तक तैयार करा देते हैं और सारा कागजी काम ओके कर देते हैं. अगर मनी मैटर बीच में नहीं है तो वह बड़ी तगड़ी जांच कंपनियों की कराते हैं और एक भी प्वाइंट पर कोई कमजोरी दिखी तो सख्त कदम उठा लेते हैं.

मुझे माजरा समझ में आ गया. वही पुरानी कहानी. यूपी में जंगल राज की कहानी. चाहें मायावती हों या मुलायम. जो आया, उसने जमकर पैसा बनाया और बनवाया. अपनी-अपनी जातियों के अफसरों को कपार पर चढ़ाया और आम जन को खूब पिसवाया.

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मैं बोला- मामले पर पर्याप्त प्रकाश फेंकें.

उद्योगति मित्र ने इसके बाद जो कुछ बताया उसका सार ये था कि अगर नोएडा के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुखिया की चल-अचल संपत्तियों की ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग अचानक छापामारी कर जांच ले व इनके जरिए उगाहे जा रहे पैसे के ओर-छोर को पता कर ले तो दूसरा यादव सिंह सामने आ जाएगा. वैसे मेरे एक लखनउवा क्रांतिकारी मित्र कह रहे थे कि यूपी में हर दूसरा अफसर यादव सिंह जैसा धन-संपदा रखने वाला है लेकिन इन्हें कोई नहीं पकड़ता क्योंकि इन सबको सत्ता, नेता, केंद्र, राज्य सबसे संरक्षण प्राप्त है. यादव सिंह इसलिए फंस गया क्योंकि वह मोदी सरकार के एक खास मिशन के लिए सबसे सटीक मोहरा पाया गया और उसे जकड़ लिया गया.

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उन उद्योगपति मित्र से मैंने कहा- क्या आप पीड़ित उद्योगपतियों में से कोई सामने आएगा? क्या कोई उन यादव जी का स्टिंग कराने के लिए तैयार हो जाएगा?

वो घबराते हुए बोले- अरे क्या कह रहे हो यार. धंधा बंद करवाना है क्या. साला वो ताला मरवा देगा फैक्ट्री पर अगर पता चल जाएगा कि मैंने यह सब करावाया छपवाया लिखवाया है तो.

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मैं थोड़ा अशंयत और उग्र होते हुए बोला- यार हद है गांडुओं की. क्रांति करने के लिए भगत सिंह पड़ोसी के घर में पैदा हों, अपने घर-खानदान में नहीं. यार ये सिद्धांत कब तक चलेगा. सारी दिक्कत इसीलिए है कि तुम लोग खुद को प्रोटेक्ट सेफ रखना चाहते हो और किसी दूसरे को चढ़ा उकसा कर उसे फांसी पर चढ़वाकर क्रांतिकारी घोषित करवाना चाहते हो. मैं तो तैयार हूं लिखने छापने स्टिंग करने कराने के लिए. लेकिन थोड़ा तुम लोग भी तो आगे बढ़ा. कोई एक तो खुलकर सामने आए.

वो बोले- देखते हैं मित्र. देखकर बताते हैं.

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उस दिन के बाद से उन मित्र का फोन नहीं आया और यादव जी का धंधा बदस्तूर जारी है. जय हो यूपी.

वहां इतना कायर कातर चिरकुट अराजक संदेश है!

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कि लोग खुद कह देते हैं- पक्का वो उत्तर प्रदेश है!!

भ्रष्टाचारियों की जाति नहीं होती. लेकिन जाति संरक्षित भ्रष्टाचार तो होता ही है. एक जमाने में बाभनों ठाकुरों लालाओं बनियों सवर्णों ने अपने अपने कुनबे जाति को संरक्षित कर खूब लूटा पीटा. अब नया जमाना नया सवेरा आया है तो दलितों पिछड़ों यादवों ने भी अपनी अपनी तिजोरी तेजी से भरने की दबंग शुरुआत कर दी है.. लगे रहो भाइयों…

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रुपया पैसा की लूट पड़ी है, लूट सके तो लूट…

अंत काल पछतावोगे, जब कुरसी जइहन छूट 😀

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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