Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

जो आपातकल में नहीं हुआ, वह ‘मोदी सरकार-2’ में हो रहा है!

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह

वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी जब आपातकाल लगाया था तो भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित पूरे देश और प्रदेश में कहीं भी न तो छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद बनाने का आदेश हुआ था, न ही छात्रसंघ के चुनाव पर कहीं रोक लगाई गयी थी, जबकि आपातकाल के पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन के संवाहक छात्रसंघ और छात्रनेता थे। लेकिन मोदी सरकार-2 के आते ही मानव संसाधन मंत्रालय के दबाव में 96 साल पुराने छात्रसंघ को विश्वविद्यालय प्रशासन ने इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया है। यह टेस्ट केस है। यदि यह इलाहाबाद में सफलतापूर्वक लागू हो गया तो इसे पूरे देश में लागु किया जायेगा।

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और संघटक कॉलेजों में अब छात्रसंघ के चुनाव के बजाय छात्र परिषद का गठन होगा। 96 साल पुराने छात्रसंघ को विश्वविद्यालय प्रशासन ने इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया है। यह महत्वपूर्ण फैसला शनिवार को विश्वविद्यालय के विधि संकाय में हुई कार्य परिषद की बैठक में किया गया। कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू की अध्यक्षता में हुई कार्य परिषद की बैठक में तय हुआ कि मौजूदा सत्र 2019-20 से ही इस निर्णय को लागू किया जाएगा। विश्वविद्यालय और संघटक कॉलेजों में इस बार छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद का चुनाव होगा। नई व्यवस्था में अब छात्र सीधे पदाधिकारी नहीं चुन सकेंगे, बल्कि छात्र कक्षा प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे और कक्षा प्रतिनिधि छात्र परिषद के पदाधिकारियों को चुनेंगे। विवि के रजिस्ट्रार प्रो. एनके शुक्ला ने इस संबंध में नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है।

एक ओर उत्तर प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश के जिला पंचायतों के अध्यक्षों का प्रत्यक्ष चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ रही है वहीं इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रत्यक्ष चुनाव के स्थान पर अप्रत्यक्ष चुनाव का विकल्प अपना रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में छात्रसंघ के स्थान पर छात्र परिषद के गठन का निर्णय लिया गया था, जिसे अंतिम मंजूरी 29 जून को प्रस्ताविक कार्य परिषद की बैठक में देकर 96 साल से चले आ रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ का समापन कर दिया गया। पूरब के ऑक्सफोर्ड के नाम से मशहूर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की परंपरा इतिहास के पन्नों में सिमटाने की कोशिश विश्वविद्यालय प्रशासन ने की है। विश्वविद्यालय प्रशासन की दलील है कि छात्रसंघ की वजह से कैंपस में आए दिन अराजकता का माहौल रहता था इसलिए इसे खत्म किया जा रहा है।

वर्ष २००७ में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने राज्य के सभी 29 विश्वविद्यालयों और 1100 डिग्री कॉलेजों में छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगा दिया था। 16 मार्च 2012 को पद व गोपनीयता की शपथ लेने के कुछ घंटे बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में छात्रसंघ बहाल करने की घोषणा कर दी थी और छात्रसंघ बहाल हो गए थे। छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष श्याम कृष्ण पांडेय के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में 1942 में जब कचहरी में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए जुलूस की शक्ल में लाल पद्मधर पहुंचे तो ब्रिटिश सिपाहियों ने उन्हें गोली मार दी थी और वे शहीद हो गए थे। इस वजह से विश्वविद्यालय में छात्रसंघ प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसकी बहाली के लिए एनडी तिवारी ने लम्बे समय तक आंदोलन चलाया था। तब चार साल बाद छात्रसंघ को बहाल किया गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

गौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीसीबी हॉस्टल में 14 अप्रैल को छात्रनेता रोहित शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए विवि प्रशासन, जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया। इस मामले में विश्वविद्यालय की ओर से गत शुक्रवार को रजिस्ट्रार प्रो. एनके शुक्ला पक्ष रखने पहुंचे थे। रजिस्ट्रार ने कोर्ट को हलफनामा देकर लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए बताया कि कमेटी ने दो तरीके से चुनाव कराने की बात कही थी।

पहला यह कि छोटे विश्वविद्यालय कैंपस जैसे जेएनयू, हैदाबाद विश्वविद्यालय में तो प्रत्यक्ष मतदान कराया जाए लेकिन जहां विश्वविद्यालय परिसर बड़ा है, छात्रों की संख्या काफी अधिक है और चुनाव कराने का माहौल नहीं है, वहां छात्र परिषद का गठन किया जाए। रजिस्ट्रार ने कोर्ट को बताया कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में साफ उल्लेख है कि विपरीत और अराजक माहौल पर छात्रसंघ चुनाव की जगह छात्र परिषद का मॉडल लागू किया जाना चाहिए। हालांकि इविवि प्रशासन ने इसकी पृष्ठभूमि पहले ही तैयार कर रखी थी। हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय का पक्ष सुना और विश्वविद्यालय को स्पष्ट निर्देश दिया कि परिसर में शांत वातावरण और पठन-पाठन बहाल करने के लिए जो भी ठोस कदम उठाना पड़े, वह उसके लिए उचित कार्रवाई करे। साथ ही विवि में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को सख्ती से लागू कराया जाए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव कराए जाएं या नहीं, इसे लेकर यूपीए सरकार ने पूर्व चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। 2006 में लिंगदोह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कई तरह के दिशा-निर्देश और सिफारिशें थीं। कमेटी ने छात्रसंघ उम्मीदवारों की आयु, क्लास में उपस्थिति, शैक्षणिक रिकॉर्ड और धनबल-बाहुबल के इस्तेमाल आदि की समीक्षा करते हुए कई सिफारिशें की थीं।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ पर लगाम लगाने की कोशिश कई बार हुई है। वर्ष 2005 में छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहे महामंत्री पद के प्रत्याशी कमलेश यादव की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद से छात्रसंघ चुनाव पर बैन लगा दिया गया था। 22 दिसंबर 2011 को छात्रसंघ चुनाव फिर से बहाल हो गया था। इसके बाद 2012-2013 में छात्रसंघ चुनाव हुआ।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अकादमिक परंपरा और छात्रसंघ का बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है। युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर, सामाजिक न्याय के पुरोधा वीपी सिंह, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, जनेश्वर मिश्र, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, गुलजारी लाल नंदा जैसे तमाम बड़े नेताओं ने राजनीति का ककहरा इसी विश्वविद्यालय में पढ़ा था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह का विश्लेषण.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement