वाराणसी : भंदहाकला, कैथी, वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्त्ता वल्लभाचार्य पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त को प्रेषित पत्र में कहा है कि प्रदेश में मौसम की मार से बेहाल अधिकांश किसानों का सब कुछ बर्बाद हो चुका है। आए दिन आत्महत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं। ऐसी विभीषिका की स्थिति हमारे प्रदेश में पहले संभवतः कभी नहीं आयी थी। शासन द्वारा घोषित राहतराशि किसानों तक कब तक आएगी, कुछ पता नहीं, अभी तो सर्वे कार्य ही चल रहा है।
ऐसे में एक अहम सवाल यह है जिन काश्तकारों के नाम खतौनी में खेत है, उन्हें तो नियमानुसार कम ज्यादा मुआवजा मिल जाएगा लेकिन वास्तव में जो लोग मेहनत मजदूरी करके खेत में काम करते हैं, उनके लिए क्या प्राविधान है। अनुमानतः प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत खेती का काम बटाई, लगान, अधिया, तीसरी, चौथी या मनी प्रक्रिया के तहत होता है। इस प्रकार दूसरे का खेत लेकर खेती करने वाले अधिसंख्य किसानों को कैसे मुआवजा मिल पायेगा, जबकि सही अर्थ में नुकसान तो उनका भी हुआ है, उनका सब कुछ बर्बाद हो गया।
दिन रात खेतों में जीवन खपाने वाले आज ऐसे लाखों किसान इस विभीषिका में असहाय बने हुए हैं। उन्हें मुआवजा देने की कोई व्यवस्था नही है। खेती में जो कुछ बच गया है, उसे घर में लाने के जुगाड़ में वे लोग लगे हुए हैं। बहुत जगहों पर स्थिति ऐसी है कि फसल की बर्बादी के कारण ‘लगान’ या ‘मनी’ पर खेती करने वाले अधिकांश किसान उतना अनाज भूस्वामी को नहीं दे पायेंगे, जितना उन्हें वादे के हिसाब से भूमि मालिक को देना था। उल्टे मुआवजा भी उसे नहीं मिलने वाला क्योंकि राजस्व रिकार्ड में कहीं इस बात का कोई जिक्र नहीं रहता कि खेत पर वास्तविक खेती कौन कर रहा है।
ऐसी स्थिति में शासन से निवेदन है स्थिति पर सहृदयता पूर्वक विचार कर ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित करे, जिससे उक्त किसानों को भी कुछ राहत मिल सके, इस कार्य के लिए हर खेत का सर्वेक्षण कार्य कृषि, सिंचाई और राजस्व विभाग के कर्मचारियों से करा कर भूमि पर वास्तविक खेती कार्य करने वाले किसानों को राहत दी जाए, जिससे उनके साथ न्याय हो।