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सुख-दुख

शराब बंद किया तो शरीर भोजन के नशे की गिरफ्त में आ गया!

Yashwant Singh :  भोजन भी एक तरह का नशा होता है. शरीर मांगता रहता है. रोता रहता है खाने के लिए. खाने के तरह तरह के खुशबू खींचते रहते हैं, दिमाग में धमाचौकड़ी मचाए रहते हैं. शराब बंद हुआ तो महसूस किया कि खाने की लत लग गई है, भोजन के नशे की गिरफ्त में हूं. सुबह दोपहर शाम रात. और इसके बीच में भी चटर पटर मटर चालू. लगा कि ये तो मुझे संचालित कर रहा है. इससे भी मुक्ति जरूरी है. पूरा शरीर खाने और पचाने में फुल स्पीड से जुटा पड़ा है.

Yashwant Singh :  भोजन भी एक तरह का नशा होता है. शरीर मांगता रहता है. रोता रहता है खाने के लिए. खाने के तरह तरह के खुशबू खींचते रहते हैं, दिमाग में धमाचौकड़ी मचाए रहते हैं. शराब बंद हुआ तो महसूस किया कि खाने की लत लग गई है, भोजन के नशे की गिरफ्त में हूं. सुबह दोपहर शाम रात. और इसके बीच में भी चटर पटर मटर चालू. लगा कि ये तो मुझे संचालित कर रहा है. इससे भी मुक्ति जरूरी है. पूरा शरीर खाने और पचाने में फुल स्पीड से जुटा पड़ा है.

दो दिन से इस खाने पर नजर रख रहा हूं. सुबह चाय पीकर कमरे पर लौट आया. कुछ योग एक्सरसाइज कर पेट की चर्बी को एक्सीलरेट / मोबाइल किया और फिर कामकाज में उलझा तो शाम हो गई. मन को कह दिया था कि खाने की कोई जरूरत नहीं है, पर्याप्त कैलरी पेट में जमी है, उसी को पिघलाओ. फिर फील न आई. फिर भूख न लगी.

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शाम खाने को निकला तो टहलते टहलते मॉल पहुंच गया. रास्ते में छह रुपये की मूंगफली तोड़ता चलता रहा. फिल्म देखते पेप्सी और पापकार्न पाया. लौटते वक्त सड़क किनारे लगे ठेले पर तीस रुपये की दो सब्जी चार रोटी और दाल के रूप में डिनर किया. अच्छा महसूस कर रहा हूं. सही लग रहा है. शरीर मध्यम मार्ग में है. मन संतुष्ट है. कल का कल देखेंगे. लेकिन आज का सबक तो यही रहा कि शरीर को अगर मन से नियंत्रित किया जाए तो वह सुनता है, कहना मानता है.

मुझे याद आ रही है Anand Swaroop Verma जी की वो बात जो उन्होंने इंटरव्यू लेते वक्त बताई थी. उन्हें साइटिका का जबरदस्त पेन हुआ करता था. डाक्टरों को दिखा दिखा के थक गए, ठीक न हुआ. वे एक रोज अंधेरे कमरे में बैठे. दिमाग को आदेश दिया कि वह रीढ की हड्डी के ठीक नीचे पेन वाली जगह जाकर निर्देश दे कि यह दर्द बंद हो. हफ्ते भर बाद उनका दर्द नियंत्रित था और फिर खत्म हो गया.

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वे इसे अध्यात्म का नाम नहीं देना चाहते. शब्दों के फेर में मुझे भी नहीं पड़ना है. ये एक आंतरिक समझ है, आंतरिक संतुलन है, आंतरिक साधना है. वर्मा जी के ही मुताबिक- हमारा शरीर असीम संभावनाओं और अपार उर्जा का भंडार है. इसको साध लेने का गुण सीख लेना चाहिए, फिर जीवन में कोई तनाव-दिक्कत नहीं. #feelyash

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कल ‘बेफिकरे’ तो आज ‘कहानी-2’ देख डाली। कल नोएडा के मॉल ऑफ़ इंडिया पहली बार घूमा तो आज नोएडा के ही नए बने सिटी सेंटर वाले मॉल में पहली दफे चरण डाला। बेफिकरे दो बेफिक्र और बेखौफ युवक-युवती पर फिल्म है, जो अपने बिंदास अंदाज में जीवन को जीते / भोगते हैं जबिक कहानी-2 चाइल्ड एब्यूज पर एक शानदार पिक्चर है।

मॉल में फिल्म देखने पर खलता है केवल 280 रुपए वाला लार्ज पोपोकॉर्न पेप्सी कोम्बो खरीदना, वरना लगता है स्वर्ग कहीं है तो इन मालों में ही कैद है। सब सुखी सुंदर समृद्ध प्रसन्न डिजिटल नज़र आते हैं। सन्डे हो या मंडे, दिल्ली एनसीआर के ज्यादातर माल क्राउडेड दिखते हैं। वापसी में एक ठेले वाले के यहाँ 30 रुपये में दो सब्जी दाल और चार रोटी विथ प्याज हरी मिर्च दबा के खाया। दो अलग-अलग दुनियाओं का पैदल चक्रमण आनंद दायक रहा।

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से. संपर्क : [email protected]

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