Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

आज दो एक्सक्लूसिव खबरें – पहले हिन्दुस्तान टाइम्स और फिर द टेलीग्राफ की

अभिव्यक्ति की आजादी और असली-नकली गालीबाजों को मंच-माइक-स्टूडियो मुहैया कराना!

हिन्दुस्तान टाइम्स की एक्सक्लूसिव खबर – पेज 10 पर

आज हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर सबसे नीचे एक छोटी सी खबर है। तीन लाइन के शीर्षक और नौ लाइन की यह खबर दरअसल अंदर विस्तृत खबर होने की सूचना है। पर पहले पन्ने की खबर का शीर्षक हिन्दी में होगा, “चुनाव लड़ने का निर्णय तब किया जब कांग्रेस ने दिग्विजय को मैदान में उतारा : प्रज्ञा”। आप जानते हैं कि भाजपा का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से प्रज्ञा ठाकुर कुछ भी बोलती रही हैं और यह कहकर विवाद की शुरुआत की थी कि मुंबई हमले में शहीद होने वाले मशहूर पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मौत उनके श्राप से हुई थी।

मेरा मानना है कि ऐसे बयान छपने ही नहीं चाहिए और नहीं छपेंगे तो ऐसे बयान दिए ही नहीं जाएंगे या कम तो हो ही जाएंगे। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे बयान छापें और प्रचारित-प्रसारित किए जाते हैं और कई बार इनका मकसद होता है बयान देने वाले को बदनाम करना या उसकी खास किस्म की छवि बनाना। यह संपादकीय विवेक का गंभीर मामला है और इसीलिए अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर गाली देने वालों को मंच और माइक मुहैया कराया जाता रहा है। अब टेलीविजन स्टूडियो और फुटेज दिया जाता है। वरना कोई कारण नहीं है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर ऐसा दावा करें और यह पहले पन्ने पर छपे।

प्रज्ञा सिंह ठाकुर उदाहरण है और इस बहाने आज पहले इसी विषय पर चर्चा कर रहा हूं। आज ही के दैनिक भास्कर में पहले ही पन्ने पर खबर है कि एंटी इनकंबेंसी रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने 33 प्रतिशत सांसदों को टिकट नहीं दिया है। और यह भाजपा में ही नहीं है कांग्रेस में भी है। जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए जाते हैं यह पुरानी बात हो गई। और भाजपा में भी यह कोई पुरानी बात नहीं है। और तो और दलित नेता उदित राज को पिछली बार भाजपा ने उम्मीदवार बनाया और इस बार नहीं बनाया। लाल कृष्ण आडवाणी (कई अन्य दिग्गजों को भी) को टिकट नहीं मिला और उनकी जगह भाजपा अध्यक्ष स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं जबकि राज्यसभा के सदस्य हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसे में टिकट मिलना और चुनाव लड़ने का फैसला कर लेना – किसी उम्मीदवार के बूते की चीज नहीं है और उसमें प्रज्ञा ठाकुर का यह दावा कितना गंभीर है – इसे समझा जा सकता है। वह भी तब जब हेमंत करकरे वाले बयान के लिए माफी मांगने के बाद भी वे कई ऐसे बयान देती रही हैं जिनका कोई सिर पैर नहीं है। दिलचस्प यह है कि सब छपते रहे हैं और इसीलिए हिन्दुस्तान टाइम्स में आज यह ‘एक्सक्लूसिव स्टोरी’ है। द टेलीग्राफ के आज के एक्सक्लूसिव स्टोरी की चर्चा आगे है। यह अलग बात है कि आजकल एक्सक्लूसिव स्टोरी कितने दुर्लभ हो गए हैं उसपर चर्चा किए बिना मैं आज इस एक खबर की चर्चा कर रहा हूं।

अंदर के पन्ने पर इस खबर का विस्तार देखकर पता चला कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने उन्हें यह दावा करने का मौका खासतौर से दिया है। खबर बाइलाइन वाली है और दिल्ली से गई संवाददाता की है। इसलिए एक्सक्लूसिव होने के बावजूद फोटो समेत 16 सेंटीमीटर के दो कॉलम में निपट गई है। वरना मनमोहन सिंह का इंटरव्यू आज ही दैनिक भास्कर में लगभग आधे पन्ने पर छपा है। अखबार वाले (और नेता) ऐसी खबरों से अपना रूटीन काम करते हैं पर इनसे नेता बनते हैं। और इसमें जेएनयू के मामले का जिक्र किए बिना बात पूरी नहीं होगी। जेएनयू में अगर देश विरोधी नारे लगे थे, उसकी रिकॉर्डिंग थी तो एफआईआर होनी थी, सजा होनी थी। उसके मीडिया ट्रायल की कोई जरूरत नहीं थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

चार्जशीर्ट बाद में दायर हुई खबर छपती रही और तीन साल बाद भी बिना दिल्ली सरकार के अनुमति के चार्जशीट दायर किए जाने के कारण मामला आगे नहीं बढ़ा है उधर इसी कारण कन्हैया नेता बन गया और बेगूसराय से मजबूत दावेदार है – मेनलाइन मीडिया में अब कौन उसकी रिपोर्टिंग कर रहा है और कितनी रिपोर्टिंग हुई कम या ज्यादा हुई वह अलग विषय है। लेकिन साफ है कि सत्ता पक्ष के आरोपों के कारण कन्हैया चुनाव लड़कर भाजपा के कट्टर नेता को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में पहुंच गया तो अब उसे छोड़कर मीडिया नया नेता बनाने में लगा हुआ है।

भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने के बाद प्रज्ञा ठाकुर के बारे में जो सब छपा है उससे पता चलता है कि वे भी विश्वास के साथ झूठ बोलती हैं। विज्ञान, वैज्ञानिक तर्कों से कोई लेना-देना नहीं है, तर्कों से घृणा है, कैंसर होने और फिर उसे गोमूत्र से ठीक होने का फर्जी दावा किया और ये सब झूठे दावे अखबारों में (और टीवी पर भी) आए हैं उनमें पुलिस हिरासत में जबरदस्त यातना शामिल है। इसकी जांच हो चुकी है और केंद्र व राज्य में डबल इंजन की भाजपा सरकार होने के बावजूद साध्वी को यातना देने के मामले में किसी को सजा नहीं हुई है इससे भी साबित होता है कि आरोप में कितना दम है और आरोपों को प्रचारित प्रसारित करने वाले कैसी तर्क संगत बातें करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
आज द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर

इसके अलावा, आज द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर आधे में ईवीएम से संबंधित खबर छापी है। मुख्य शीर्षक है, “सिबल ने कहा, ईवीएम पर चुनाव आयोग ने अदालत को गलत जानकारी दी” उपशीर्षक है, चुनाव आयोग ने कहा, अदालत के पूछने पर जवाब दूंगा और दूसरी खबर का शीर्षक है, चुनाव आयोग की प्रेस विज्ञप्ति में आईएसआई की पूरी कहानी नहीं बताई गई। इस खबर में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने अगर अपनी विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से बताया होता कि मतदाता पर्चियों की गिनती के मामले में नमूने का आकार इंडियन स्टैटिसटिकल इंस्टीट्यूट ने दूसरी जगहों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर तैयार किया था तो विवाद के एक हिस्से से बचा जा सकता था।

कहने की जरूरत नहीं है कि यह टेलीग्राफ की एक्सक्लूसिव खबर है और सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी दलों द्वारा दायर की गई समीक्षा याचिका के संबंध में कांग्रेस नेता कपिल सिबल से बात चीत पर आधारित है। इसलिए दूसरे अखबारों में यह खबर होनी भी नहीं है लेकिन ईवीएम पर जो शोर मच रहा है और प्रधानमंत्री इसकी शिकायतों का जो मजाक उड़ा रहे हैं उसपर अखबारों का काम था कि वे पाठकों को स्थिति से वाकिफ कराते। वरना आरोप तो यहां तक है कि 2014 के चुनावों में ईवीएम की गड़बड़ी से ही भाजपा की जीत हुई थी और यह भी कि एक केंद्रीय मंत्री की मौत हो गई जिन्हें इसकी जानकारी थी और मंत्री की मंत्री दिल्ली शहर में सड़क दुर्घटना में हुई जिसमें उनकी कार कायदे से क्षतिग्रस्त भी नहीं हुई थी।

ऐसे में कांग्रेस नेता का आरोप है कि चुनाव आयोग ने 22 मार्च को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी जिसका शीर्षक था, वीवीपैट की पर्चियों की गिनती के नमूने के आकार पर आईएसआई ने चुनाव आयोग को अपनी रिपोर्ट दी। इससे लगता है कि यह काम आईएसआई ने अकेले किया है जबकि विज्ञप्ति में अगले ही पैरे में लिखा है कि यह काम आईएसआई के दिल्ली केंद्र ने किया है। मैंने चुनाव आयोग के साइट पर यह विज्ञप्ति ढूंढ़ने की कोशिश की पर यह हिन्दी में उपलब्ध नहीं है जबकि साइट पर लगभग 100 प्रतिशत विज्ञप्तियों का अनुवाद होने का दावा है। अगर वह विज्ञप्ति हिन्दी में होती तो मैं इस मामले को और विस्तार से बता पाता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट।

https://facebook.com/bhadasmedia/videos/2611475252256989/
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement