रवीश कुमार-
के हमरा गांधी जी के गोली मारल हो
धमा धम तीन गो
कालुहे आज़ादी मिलल
आज चलल गोली
गांधी बाबा मारल गइले
देहली के गली
पूजा में जात रहलें बिरला भवन में
दुश्मन बैठक रहल पाप लेके मन में
अरे गोलिया चलाके बनल चाहल बली
धमा धम तीन गो
क़हत रसूल सूल सबका देके, कहां गइले मोर अनार के कली
धमा धम तीन गो
चंदन तिवारी ने गाया है। यह गाना रसूल मियाँ का लिखा हुआ है। भोजपुरी में है। रसूल मियाँ गोपालगंज के रहने वाले थे। राम और गांधी को लेकर लिखा करते थे।आज के दिन इसे सुनिए।
गांधी की हत्या कर दी गई। उनके विचार आज भी ज़िंदा है। लेकिन यह भी सही है कि गांधी की हत्या करने वालों के विचार भी ज़िंदा है। पहले से ज़्यादा ताकतवर है। आज गांधी के हत्यारों की भाषा टीवी से बोली जाती है। राजनीति से बोली जाती है। यह दौर गांधी की हत्या करने वालों के विचारों का है। मगर गांधी गांधी हैं। हर हत्या के बाद दिखाई दे जाते हैं। कहीं से जाते हुए तो कहीं से आते हुए।
नदीम एस अख़्तर-
आज 30 जनवरी की तारीख को ही राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी यानी बापू की हत्या की गई थी। इस लिहाज से आज का दिन किसी के लिए शहादत दिवस है, किसी के लिए बलिदान दिवस और किसी के लिए ‘शौर्य दिवस’। अपनी-अपनी श्रद्धा के हिसाब से लोग आज के दिन का महत्व आंकते हैं।
पर मैं यहां कुछ और कहना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि बापू अगर इतनी जल्दी इस दुनिया से ना गए होते तो हमारे आज़ाद देश की आज जो दशा और दिशा है, वो कुछ और होती। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हमारा संविधान वैसा नहीं होता, जैसा आज है और जिसकी बुनियाद पे हमने शासन का अपना गणतंत्र बनाया है। मुझे लगता है कि अगर बापू ज़िंदा होते तो हमारे देश की कार्यपालिका यानी ब्यूरोक्रेसी की तस्वीर वैसी बिल्कुल नहीं होती, जैसी आज है। गांधी जी हमेशा कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को और गाँवों को ताक़त देने की बात करते थे। स्वावलम्बन व स्वदेशी पे उनका ज़ोर था। पर हमने अपने संविधान में क्या किया? अंग्रेजों के बनाए सिविल सर्विस और पुलिस व्यवस्था को अपना लिया। इसका दुष्परिणाम आज देश भुगत रहा है क्योंकि बुनियाद ही भारतीयों का एक शासक वर्ग यानी नौकर-शाही खड़ी करके बनाई गई। इस व्यवस्था में जनता का कोई सेवक नहीं है। कलक्टर है, एसपी है। कलक्टर तो अंग्रेजों के लिए लगान वसूलता था, आज़ाद भारत में इसकी क्या ज़रूरत थी? और पुलिस के क्या कहिए। हमने 1861 का अंग्रेजों वाला पुलिस एक्ट अपना लिया, जो गोर अंग्रेजों ने काले हिंदुस्तानियों पे राज करने के लिए बनाया था। ऐसा ब्लंडर क्यों और कैसे हुआ, ये नहीं मालूम पर ये तय है कि अगर बापू ज़िंदा रहते तो हमारे आज़ाद देश में अंग्रेजों की पुलिस राज नहीं कर रही होती। हमारी पूरी ब्यूरोक्रेसी पूरी तरह भारतीय और जनसरोकारों से जुड़ी होती। गांधी जी बैरिस्टर थे, लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ी परिधान उतारकर लंगोट पहन ली। लोगों को डांटते थे कि अंग्रेज़ी में क्यों भाषण दे रहे हो, जब जनता इसे समझती ही नहीं। हिंदी और अपनी ज़ुबानों में जनता से संवाद करो।
एक कहानी सुनाता हूँ। एक दफा एक सेठ का बेटा तब अंग्रेजों की सिविल सर्विस की परीक्षा, जिसे हमने अपनाकर नाम बदलकर IAS कर दिया, वह क्वालीफाइ कर गया। बड़ी पार्टी दी गई। तब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे। उनको भी सेठ जी ने बुलाया। उन्होंने आग्रह किया कि उनके बेटे की सफलता पर गांधी जी भी कुछ बोलें। गांधी जी अनमने ढंग से बोलने के लिए खड़े हुए और फिर उन्होंने जो कहा, उससे पूरी सभा में सन्नाटा छा गया। बापू ने कहा कि अगर मैं सच बोल दूं, तो यहां मौजूद सभी लोग मुझे उठाकर खिड़की से बाहर फेंक देंगे। ये गांधी जी के शब्द थे। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को लताड़ा कि एक आदमी अंग्रेजों का अफसर बनके आपका शोषण करने जा रहा है और आप उसका जश्न मना रहे हैं! कितना अच्छा होता जो इस परीक्षा की तैयारी और कामयाबी के जश्न में लगे पैसों से देशहित का कोई काम होता।
लेकिन आज़ाद भारत ने क्या किया? अंग्रेजों की अफसरी की उसी व्यवस्था को IAS बनाकर अपना लिया, जिससे गाँधीजी को चिढ़ थी। वह देश में अफसर नहीं, जनता का हितैषी प्रतिनिधि बनाए जाने के पक्ष में थे। वह गाँव को सशक्त करना चाहते थे। उसके हाथ में ताक़त देना चाहते थे। लेकिन हमने क्या किया? आज़ाद भारत में गाँव और किसान ही सबसे ज्यादा उपेक्षित हो गए। ना हमने फसलों के भंडारण और किसानों की फसल के अच्छे दाम मिलने की भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की और ना गाँव का विकास किया। गांधी जी चाहते थे कि गाँव खुद में ही सशक्त हों, वहां रोजगार हो और इस तरह एक गांवों का समूह खुद में ही एक सफल economic zone हो। पर आज़ाद भारत में गांव और किसान ऐसे बना दिये गए कि खेती कर्ज़ में डूब जाने और घाटे का सौदा बन गयी। किसान आत्महत्या करते रहे, सरकारें सोती रहीं। हमने देश के भोले-भाले किसानों को सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया। बापू, किसानों को देश की ताकत बनाना चाहते थे, हमने किसानों को देश पर बोझ समझ लिया। क्या कारण था कि बापू ने भारत में अपना पहला आंदोलन बिहार में नील की खेती करने वाले किसानों की दुर्दशा पर आवाज़ उठाने से शुरू किया? कभी सोचा है आपने? सोचिएगा।
बापू की असामयिक हत्या से आज़ाद हिंदुस्तान का बहुत बहुत बड़ा नुकसान हो गया। उनसे एक गलती ज़रूर हुई कि उन्होंने नेहरू और जिन्ना की ज़िद के आगे भारत का बंटवारा हो जाने दिया पर आज़ाद भारत के हर आम आदमी तक उसका हक पहुँचाने के लिए भारत को बापू की ज़रूरत थी, उनके विज़न और मार्गदर्शन की दरकार थी। तभी भारत सच्चे अर्थों में आज़ाद हो पाता और हमारा संविधान देश की ज़रूरतों के मुताबिक बनता। अगर बापू ज़िंदा होते तो कम से कम भारत की विधायिका, कार्यपालिका और बेहद अहम न्यायपालिका आज वैसी नहीं होती, जैसी है। वह खुद कानूनविद थे, तो सोचिए देश का कैसा खांका बनवाते।
बापू के हत्यारे ने देश का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया। हम आज भी उसे जूझ रहे हैं। भारत की नौकरशाही, पुलिस और खुले बाज़ार की नीति ने देश में जो बनाया है, उसकी फसल हम सब काट रहे हैं और हमारी भावी पीढियां भी काटेंगी।
बापू को नमन। उनके अंतिम शब्द थे-हे राम! इन शब्दों में पूरा एक सागर छुपा हुआ है। उन्होंने मरते वक्त भगवान राम को पुकारा था। उस वक़्त उनके मन में क्या चल रहा था, देश के भविष्य को लेकर उनकी क्या भावना थी, हम कभी नहीं जान पाएंगे।
राष्ट्रपिता महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ बापू को श्रद्धांजलि! हम कभी जान ही नहीं पाए कि हमने क्या खो दिया।