ये आगरा पुलिस का जवाब है। ट्वीटर पर पोस्ट किया है रिप्लाई में।
एक पत्रकार अगर पुलिस, प्रशासन, शासन, नेता, मंत्री का पालतू नहीं है तो उसको पकड़ कर पीटने का लाइसेंस मिल जाता है पुलिस को!
पलिसकर्मियों से अभद्रता और सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप फ़र्ज़ी टाइप आरोप है जिसे उस किसी भी शख़्स पर लगाया जा सकता है जो पालतू न हो, जो सवाल खड़े करता हो, जो ग़लत के ख़िलाफ़ बोलता हो!
पत्रकार गौरव अग्रवाल उर्फ़ गौरव बंसल के ख़िलाफ़ पुराने मुक़दमे क्या हैं, ये तो नहीं पता लेकिन सामाजिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति और पत्रकार को अक्सर फ़र्ज़ी मुक़दमों से दो चार होना पड़ता है। इसे आधार बनाकर किसी को पीटने का लाइसेंस मिल जाता है क्या?
बहुत सारे चुनाव जीते और हारे माननीय कई कई मुक़दमे लिए बैठे हैं, उन्हें पकड़ने पीटने में तो पुलिस की पैंट ढीली हो जाती है। तो सारा ग़ुस्सा एक निरीह पत्रकार पर निकाल कर आगरा पुलिस किस क़िस्म की मर्दानगी दिखा रही है?
सच तो ये है कि पत्रकार गौरव उत्पीड़न कांड यूपी पुलिस की वर्दी पर एक धब्बा है जिसकी गूंज देर तक और दूर तक सुनाई पड़ेगी।
आगरा पुलिस के पास अपने कुकृत्य के लिए कहने को कुछ नहीं है, सिवाय लीपापोती के। पत्रकार गौरव अग्रवाल उर्फ़ गौरव बंसल के साथ जो सुलूक किया गया है वह निश्चित रूप से चौथे खंभे पर हमला है, अभिव्यक्ति की आज़ादी की गला घोंटने की कोशिश है जिस पर कोई भी रीढ़ वाला व्यक्ति चुप नहीं बैठ सकता।